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युद्धों का पर्यावरण पर प्रभाव

आज संपूर्ण विश्व में जिस प्रकार से युद्ध की स्थिति भयावह होती जा रही है उससे यह प्रतीत होता है कि इन युद्धों का विनाशकारी प्रभाव पर्यावरण पर पड़ना स्वाभाविक है । युद्ध होते नहीं थोप जाते हैं कभी-कभी किसी मुद्दे को लेकर दो पड़ोसी देश भीड़ जाते हैं तो कभी बाहरी शक्तियों युद्ध के मैदान में कूद कर स्थिति को और गंभीर बना देते हैं देखते-देखते यही नहीं युद्ध के दूरगामी प्रभाव भी पढ़ सकते हैं जिसमें पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचती है इससे न केवल मनुष्यों बल्कि वनस्पतियों पशु पक्षियों एवं सूक्ष्म जीवों के अलावा देश की मिट्टी को भी युद्ध की विभीषिका झेलनी पड़ती है क्योंकि युद्ध के रणनीति में पर्यावरण की चिंता का कोई स्थान नहीं रहता उनका लक्ष्य केवल विजय है वह चाहे सीमित क्षेत्र में हो या विस्तृत क्षेत्र में ,इस तरह कहा जा सकता है कि पर्यावरण सदा से युद्ध की बलि चढ़ता रहा है किंतु इसे कभी स्वीकार नहीं किया गया कि युद्ध का अर्थ है पर्यावरण पर आक्रमण या पर्यावरण की क्षति या पर्यावरण का विनाश। युद्ध पर्यावरण को तहस-नहस कर देता है। तोपों के हमलों, राकेटों और बारूदी सुरंगों से प्रदूषक निकलते हैं, जिनसे जंगल तबाह हो जाते हैं और कृषि भूमि बेकार हो जाती है। सूडान में गृह युद्ध, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और इजराइल-हमास युद्ध समेत दुनिया में इस वर्ष छह में से एक व्यक्ति संघर्ष से प्रभावित हुआ है।ईंधन के दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से, सेनाओं का वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 5.5% योगदान है, 2022 के अनुमान के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा नया टैब खोला गया है। एक तरह से कहा जाए तो युद्ध का दौर लौट आया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से संघर्षों का दौर चरम पर है। मौतें 28 साल के उच्चतम स्तर पर हैं। युद्ध से जानमाल को होने वाले नुकसान का आकलन करते समय हमें इससे हुए दूसरे नुकसानों को अनदेखा नहीं करना चाहिए, जिसमें पर्यावरण को क्षति शामिल है। सशस्त्र संघर्ष पर्यावरणीय क्षति जैसा गहरा असर छोड़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे और अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। रासायनिक और अन्य हथियारों से होने वाला प्रदूषण जहर के तौर पर पर्यावरण में बना रहता है। विस्फोटकों से जो यूरेनियम प्रदूषक निकलते हैं, वे काफी समय तक लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं जबकि सेना की आवाजाही और बुनियादी ढांचे की क्षति से परिदृश्य और खराब हो जाता है। संघर्षों से हुआ नुकसान आपके अनुमान से कहीं अधिक समय तक रह सकता है। फ्रांस में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वर्दुन की खूनी लड़ाई ने एक समय उपजाऊ मानी जाने वाली कृषि भूमि को प्रदूषित कर दिया था। आज उस युद्ध के एक सदी से अधिक समय के बाद भी कोई भी उस क्षेत्र में नहीं रह सकता, जिसे अब रेड जोन कहा जाता है। जैसे-जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध आगे बढ़ रहा है, गंभीर वायु प्रदूषण, वनों की कटाई और मिट्टी का क्षरण बढ़ गया है। युद्ध के अंत में, हथियार अक्सर समुद्र में फेंक दिये जाते हैं। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर 1970 के दशक तक, यूनाइटेड किंगडम में पुरानी युद्ध सामग्री और रासायनिक हथियार समुद्र में फेंक दिए गए थे। यह एक आसान समाधान लग सकता है, लेकिन इससे पैदा हुआ खतरा खत्म नहीं होता। उत्तरी आयरलैंड और स्कॉटलैंड के बीच एक प्राकृतिक समुद्री खाई के तल पर 10 लाख टन से अधिक युद्ध सामग्री बिखरी हुई है। इनसे कभी-कभी पानी के अंदर विस्फोट हो जाता है, जबकि रासायनिक हथियार बहकर समुद्र तटों पर आ जाते हैं। कुल मिलाकर हम अब युद्ध और पर्यावरणीय नुकसान के बीच विनाशकारी संबंध को नजरअंदाज नहीं कर सकते। युद्ध जलवायु परिवर्तन से निपटने की हमारी क्षमता को बदतर बनाते हैं, और संघर्ष से होने वाला पर्यावरणीय नुकसान जलवायु परिवर्तन को और बदतर कर देता है।

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