साइलेंट हार्टअटैक से बचाव में सहायक है नाड़ीशोधन प्राणायाम:- योगाचार्य महेश पाल
योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राण+आयाम से प्राणायाम शब्द बनता है। प्राण का अर्थ जीवात्मा माना जाता है, लेकिन इसका संबंध शरीरांतर्गत वायु से है जिसका मुख्य स्थान हृदय में है। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब बह मृत्यु को प्राप्त होता है तो पूर्णत: श्वास छोड़ देता है। तब यह सिद्ध हुआ कि वायु ही प्राण है। आयाम के दो अर्थ है- प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार करना, योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि योगग्रंथ हठयोग प्रदीपिका के अनुसार मानव शरीर में 72000 नस - नाड़ियों का जाल बिछा हुआ है नाड़ीयो के शुद्धिकरण का कार्य नाड़ी शोधन प्राणायाम द्वारा किया जाता है, नाड़ी' शब्द का अर्थ है, 'मार्ग' या 'शक्ति का प्रवाह' और 'शोधन' का अर्थ होता है, 'शुद्ध करना'। नाड़ी शोधन का अर्थ हुआ, वह अभ्यास जिससे नाड़ियों का शुद्धिकरण हो। नाड़ी शोधन प्रभावी प्राणायाम है जो मस्तिष्क, ह्रदय, शरीर और भावनाओं को सही रखता है नाड़ियाँ मानव शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा चैनल हैं जो विभिन्न कारणों से अवरुद्ध हो सकती हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम एक साँस लेने की तकनीक है जो इन अवरुद्ध ऊर्जा चैनलों को साफ़ करने में मदद करती है,तनाव के कारण नाड़ियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं
भौतिक शरीर में विषाक्तता के कारण भी नाड़ियों में रुकावट आती है शारीरिक और मानसिक आघात के कारण नाड़ियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं अस्वस्थ जीवन शैली के कारण भी देखे जाते हैं, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना मानव शरीर में सबसे महत्वपूर्ण नाड़ियों में से तीन हैं। जब इड़ा नाड़ी सुचारू रूप से काम नहीं करती है या अवरुद्ध हो जाती है, तो व्यक्ति को सर्दी, अवसाद, कम मानसिक ऊर्जा और सुस्त पाचन एवं बायां नासिका अवरुद्ध होने का अनुभव होता है। जबकि जब पिंगला नाड़ी सुचारू रूप से काम नहीं करती है या अवरुद्ध हो जाती है, तो व्यक्ति को गर्मी, तेज गुस्सा और जलन, शरीर में खुजली, शुष्क त्वचा और गला, अत्यधिक भूख, अत्यधिक शारीरिक या यौन ऊर्जा और दाहिनी नासिका अवरुद्ध हो जाएगी।नाड़ी शोधन हठ योग के अंतर्गत ध्यान या धारणा प्रारम्भ करने के पूर्व कम से कम तीन माह तक चारो संध्याओं( प्रातः काल, दोपहर, संध्याकाल, अर्धरात्रि) में किया जाने वाला प्राणायाम है। नाड़ियों के शोधन हो जाने से ध्यान ऊर्जा के उर्ध्वगमन में बाधा समाप्त हो जाती है।नाड़ी शोधन में सांस लेने में जितना समय लगता है उससे अधिक समय सांस रोकने और छोड़ने में लगता है सांस लेते समय सांस की गति इतनी धीमी होनी चाहिए की सांस लेने की आवाज स्वयं को ही आए नाड़ी शोधन प्राणायाम करने के लिए कमर गर्दन सीधी कर ले सुखासन पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाए फिर ज्ञान मुद्रा का चयन करें उसके पश्चात बांयी नासिक से सांस ले और फिर कुछ देर रोक कर रखे फिर धीरे-धीरे दांयी नासिक से सांस छोड़ दें उसके पश्चात दांयी नासिक से सांस ले और बांयी नासिका सांस से छोड़ दें जैसा कि अनुपात के माध्यम से बताया जा रहा है प्रारंभ में स्वास का अनुपात 1:1:1,उसके पश्चात 1:2:2, अभ्यस्त होने के बाद 1:4:2 के अनुपात में अभ्यास किया जाता है अर्थात अगर आप 15 सेकेंड साँस लेते है तो 60 सेकेण्ड रोक कर रखे और 30 सेकेण्ड तक छोड़े ये प्रक्रिया 10 मिनिट तक दोहराएं, नाड़ीशोधन प्राणायाम से हृदय, फेफड़ें व मस्तिष्क के स्नायु को बल मिलता है, जिससे वो स्वस्थ बने रहते हैं ।साथ ही यह मन को शांत और एकाग्र करने वाला है। इसके अभ्यास से तनाव, क्रोध, चिंता, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, हाई ब्लड प्रेशर, माइग्रेन, नींद न आना, अंगों में कम्पन, मल्टिपल सिरॉसिस आदि मन-मस्तिष्क के विकारों में लाभ पहुंचता है। यह हमारे भीतर शान्ति व धैर्य को बढ़ाकर संकल्प शक्ति, निर्णय शक्ति, और संतुलन शक्ति का विकास करता है।नाड़ी शोधन प्राणायाम साइलेंट हार्ट अटैक से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, साइलेंट हार्ट अटैक काफी खतरनाक है। इसकी पहचान कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई बार साइलेंट अटैक के लक्षणों को लोग ऐसे ही नज़रअंदाज कर बैठते हैं। छाती में हल्का दर्द या अचानक सांस फूलने को साधारण बात समझकर नज़रअंदाज कर देते हैं। एक स्टडी के मुताबिक करीब 45 प्रतिशत लोगों को हार्ट अटैक के कोई लक्षण नहीं होते हैं। जिसे साइलेंट हार्ट अटैक माना जाता है। जैसा कि नाम से जाहिर है कि ऐसे हार्ट अटैक में बिना किसी लक्षण के अटैक आता है। ये ज्यादा खतरनाक माना जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों को पहले हार्ट अटैक का पता नहीं चल पाता है। लोग सही इलाज भी नहीं करवाते हैं और फिर दूसरा अटैक खतरनाक साबित हो जाता है। साइलेंट हार्ट अटैक एक गंभीर बीमारी है जिसका हमें पता भी नहीं चलता और यह हमें मृत्यु की ओर ले जाती है कोरोना काल के पश्चात पूरे देश में साइलेंट हार्ट अटैक के कैस बढ़ते जा रहे हैं जिसमें देखा जा रहा है कि 9 साल से लेकर 50 साल तक के बच्चों युवाओं और बुजुर्गों में यह अटेक गंभीर रूप से चिंता का विषय बनता जा रहा है, साइलेंट हार्ट अटैक का मतलब है कि आपके दिल को ऑक्सीजन नहीं मिल रही है। इससे दिल को आघात पहुंचता है.आमतौर पर, रक्त का थक्का कोरोनरी धमनियों में से एक के माध्यम से रक्त के प्रवाह को रोककर दिल के दौरे का कारण बनता है। कोरोनरी धमनी की ऐंठन रक्त प्रवाह को रोक देती है जिससे साइलेंट हार्ट अटैक की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से शुद्ध ऑक्सीजन ह्रदय तक पहुँचती है जिसके माध्यम से कोरोनरी धमनी के अवरोध दूर हो जाते है धमनी और शिराओं के अवरोधों को दूर कर रक्त का थक्का जमने से रूक जाता है जिससे साइलेंट हार्ट अटैक से बचा जा सकता हैं यह प्राणायाम नस- नाड़ियों (धमनी, शिराओं) के शोधन का कार्य करता है साइलेंट हार्ट अटैक आने के कई कारण होते हैं जिसमें मधुमेह, मोटापा, जेनेटिक, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, योग व्यायाम की कमी, मादक पदार्थों का सेवन, जंकफूड का सेवन,योग प्राणायाम का महत्व बढ़ रहा है वैज्ञानिक समुदाय के लिए यह अधिक स्वीकार होता जा रहा है छंदोग्य उपनिषद के अनुसार प्राण एक आंतरिक मैट्रिक्स(सूक्ष्म ऊर्जा) है और वायु एक बाहरी मैट्रिक्स(स्थूल ऊर्जा) है योग के अनुसार स्थूल शरीर(अन्नमय कोष)का पोषण सूक्ष्म शरीर (प्राणमय कोष) द्वारा होता है जिसमें चक्र और नाड़ीयाँ होती हैं यह नाड़ीयां प्राण को ले जाती हैं जो चक्र को उत्तेजित करती हैं और इस तरह विभिन्न अंगों और प्रणालियों को पोषण देती है और मानव शरीर में सभी शारीरिक गतिविधियों को प्रभावित करती हैं एक शोध के अनुसार नाड़ी शोधन प्राणायाम के 20 मिनट के अभ्यास का प्रभाव श्रवण प्रतिक्रिया समय में महत्वपूर्ण परिवर्तन के साथ-साथ हृदय गति परिवर्तनशीलता को कम करने के लिए पाया गया और कार्डियोरेस्पिरेटरी मापदंडों में सुधार देखा गया जो कार्डियोरेस्पिरेटरी दक्षता में वृद्धि का संकेत है यह खोज इंगित करती है कि नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास रक्तचाप को कम करता है और आवश्यक उच्च रक्तचाप वाले रोगियों में प्रतिक्रिया समय में सुधार करता है,हमें हमारे शरीर में साइलेंट हार्ट अटैक के संकेत मिलते ही तुरंत सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और इस प्रकार के अटैक से बचाव के लिए दैनिक दिनचर्या में सुधार कर योग प्राणायाम को आवश्यक रूप से शामिल करे एवं सात्विक भोजन को अपनी आहारचर्या मैं शामिल करना चाहिए