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स्वचछता के जनक पूजनीय श्री संत गाडगे महाराज जी की जयंती मनाई - नरेंद्र
*_बाड़ी_*
*संत गाडगे रजक सेवा समिति बाड़ी द्वारा पूजनीय माननीय श्री संत गाडगे महाराज की जयंती मनाई गई इस कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दिवाकर ने बताया की उनका वास्तविक नाम देबूजी झिंगरजी जानोरकर था. महाराज का जन्म 23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक धोबी परिवार में हुआ था. गाडगे महाराज एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे और दुनियां में सबसे पहले स्वच्छता के प्रति समाज को जागरूक किया करते थे दुनियां बाबा को स्वच्छता का जनक मानती है, समाजसेवी जगदीश सिंह जी ने बताया वे पैरों में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे और यही उनकी पहचान थी. समाजसेवी गोपाल जी ने कहा जब वे किसी गांव में प्रवेश करते थे तो गाडगे महाराज तुरंत ही गटर और रास्तों को साफ़ करने लगते और काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगों को गांव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे, अशोक जी ने कहा सन्त गाडगे महाराज जो कहते थे कि शिक्षा बड़ी चीज है. पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरत के लिए कम दाम के कपड़े खरीदो, टूटे-फूटे मकान में रहो पर बच्चों को शिक्षा दिए बिना न रहो. पूरन जी ने बताया की आधुनिक भारत को जिन महापुरूषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें राष्ट्रीय सन्त गाडगे बाबा का नाम सर्वोपरि है. मानवता के सच्चे हितैषी, सामाजिक समरसता के द्योतक यदि किसी को माना जाए तो वे थे लवकुश जी ने कहा गांव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और बाबाजी उन पैसों का उपयोग सामाजिक विकास और समाज का शारीरिक विकास करने में लगाते. लोगों से मिले हुए पैसों से महाराज गांवों में स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल और जानवरों के निवास स्थान बनवाते थे. शंतो जी ने बताया की गांवों की सफाई करने के बाद शाम में वे कीर्तन का आयोजन भी करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण का प्रसार करते थे. अपने कीर्तनों के समय वे लोगों को अन्धविश्वास की भावनाओं के विरुद्ध शिक्षित करते थे. अपने कीर्तनों में वे संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे ,संत गाडगे महाराज लोगों को जानवरों पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नहीं मानते थे और लोगों के इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे. महेश जी ने बताया की गाडगे महाराज लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे. उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा, उन्हें सम्मान देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 2000-01 में 'संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान' की शुरुवात की और जो ग्रामवासी अपने गांवों को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है. महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से वे एक थे. भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये. इतना ही नही बल्कि अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है. देवेन्द्र जी ने कहा कि संत गाडगे महाराज भारतीय इतिहास के एक महान संत थे. 20 दिसम्बर, 1956 को महाराज जी चल बसे लेकिन सबके दिलों में उनके विचार और आदर्श आज भी जिंदा हैं. इस कार्यक्रम में जगदीश जी, अशोक जी ,केदार जी, गोपाल जी, महेश जी, अंतराम जी, लवकुश जी देवेन्द्र जी, रंजीत जी, सुरेश जी, कैलाशी जी, पूरन जी, शन्तो जी, बर्फी जी आदि मौजूद रहे*