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धर्म को कभी न छोड़े । धर्म के सार को सुनो और सुनकर उसे धारण करो। अपने प्रतिकूल जो व्यवहार है उसको दूसरों के लिए भी आचरण में मत लाओ ...

🌷धर्म को कभी न छोडे🌷*

महाराज भर्तृहरि ने कहा है―

*निदन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु*
*लक्ष्मी: समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।*
*अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा*
*न्याय्यात्पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा: ।।*
―(नी० श० ७९)

*भावार्थ―* चाहे नीति-निपुण व्यक्ति हमारी निन्दा करें और चाहे स्तुति करें, लक्ष्मी अर्थात् धन-सम्पत्ति रहे चाहे न रहे, आज ही मरना हो चाहे एक युग के पश्चात् मरना हो, धीर पुरुष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते।

*न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्में त्यजेज्जीवितस्यापि हेतो: ।*
*धर्मो नित्यो सुख-दु:खे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्य: ।।*
―(महाभारत)

*भावार्थ―* मनुष्य को चाहिए कि वह कभी भी काम, भय, लोभ और यहाँ तक कि प्राणों की रक्षा के लिए भी, धर्म को न छोड़े। धर्म नित्य है और सुख-दु:ख अनित्य हैं। जीव नित्य है और उसके साधन अनित्य है।
*एक एव सुह्रद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति य: ।*
*शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यद्धि गच्छति ।।*
―(मनु० ८/१७)

*भावार्थ―* धर्म ही एक ऐसा मित्र है, जो मृत्यु के पश्चात् भी जीवात्मा के साथ जाता है। शरीर के नष्ट होते ही सब-कुछ नष्ट हो जाता है।
महर्षि वेदव्यास ने कहा है―

*श्रूयतां धर्मसर्वस्व श्रुत्वा चैवावधार्यताम् ।*
*आत्मना प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।।*

*भावार्थ―* धर्म के सार को सुनो और सुनकर उसे धारण करो। अपने प्रतिकूल जो व्यवहार है उसको दूसरों के लिए भी आचरण में मत लाओ।

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