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मिथिला के इतिहास पर लिखित"मिथिला मिसलेनिया " पुस्तक का लोकार्पण।


दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के जुबली हाॅल में प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर द्वारा रचित "मिथिला मिसलेनिया" पुस्तक का लोकार्पण समारोह प्रोफेसर नैयर आजम, विश्वविद्यालय इतिहास विभागाध्यक्ष की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। मैथिली गायिका डाक्टर ममता ठाकुर के मंगल गान एवं स्वागत गान के साथ लोकार्पण समारोह की शुरुआत हुई।
स्वागत भाषण प्रोफेसर प्रभास चंद्र मिश्र जी ने दिया और मंच संचालन डाक्टर अमिताभ कुमार ने किया। मंचस्थ विद्वानों का स्वागत पाग, चादर और बुके से किया गया।
इस पुस्तक में संकलित आलेखों पर विस्तृत प्रकाश प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर ने डाला। कार्यक्रम में मिथिला के पूर्व मध्य काल के इतिहास पर विशेष जानकारी दिया। मिथिला चित्रकला, मिथिला की ज्ञान परम्परा, मिथिला की साझी संस्कृति के उभरते आधार, मिथिला की राजनीतिक व्यवस्था की चर्चा की। मिथिला में उभरी सामंती व्यवस्था और मिथिला की आर्थिक उभार के आधार पर मिथिला के इतिहास का स्वर्णिम काल यही काल रहा है। इस पुस्तक के विभिन्न आलेखों में मिथिला के इतिहास के इन्हीं पक्षों को रेखांकित किया गया है, जो भविष्य के शोधकर्ताओं के लिए यह पुस्तक आधार के रूप में उपयोगी होगा। वैसे यह संकलन त्रिभाषिक है, फिर भी अधिकांश आलेख अंग्रेजी के हैं और किसी भी क्षेत्र के पाठकों को मिथिला के इतिहास में रुचि जागृत करने में सहयोगी होगा।
प्रोफेसर विद्यानाथ झा ने प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर के छात्र और शिक्षक जीवन और इनके संघर्ष और योगदान से सभा को परिचित कराया।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर संजय झा, प्राचार्य, आर बी काॅलेज, दलसिंहसराय और मिथिला इतिहास संस्थान के सचिव ने इस लोकार्पण समारोह को इतिहासकारों का संगम कहा और पुस्तक को आने वाले विद्वानों का मार्ग दर्शन करने में सक्षम सिद्ध होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इस लोकार्पण समारोह में प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर को प्रथम मिथिला इतिहास सम्मान से मिथिला इतिहास संस्थान के सचिव प्रोफेसर संजय झा और मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने सम्मानित किया।
अपने उद्बोधन में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शशिनाथ झा ने प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर के संकलन के लिए धन्यवाद दिया और समाज के लिए उपयोगी पुस्तक बताया। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने उद्बोधन में इस तरह के पुस्तक को स्थानीय इतिहास को समझने में एक आवश्यक कदम बताया। पुस्तक लेखन लेखक को अमरत्व प्रदान करता है और समाज को मार्गदर्शन, प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर जी ने उस अमरत्व को इस पुस्तक के माध्यम से प्राप्त किया है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नैयर आजम ने प्रोफेसर कुमर के प्रकाशित पुस्तक को क्षेत्रीय इतिहास लेखन में मील का पत्थर बताया।
धन्यवाद ज्ञापन डाक्टर अमिताभ कुमार ने किया।

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