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शंकराचार्यों द्वारा राममंदिर में भगवान राम की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी
शंकराचार्यों द्वारा राममंदिर में भगवान राम की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाने से कोई आश्चर्य नहीं है... अब ये स्वयं अपनी गद्दी के संघर्ष के लिए ज्यादा चर्चा और विवाद में रहते हैं... आदि शंकराचार्य प्रभु ने जिस उद्देश्य से पीठों की संकल्पना की होगी क्या उस पर न्यायोचित कार्य किया जा रहा है...
🔸जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब पितामह भीष्म चुप्पी साधकर बैठे थे...
...जब कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी को दिवाली के दिन पूजा करते समय घसीटते हुए गिरफ्तार किया था, तब शेष तीनों शंकराचार्य मौन थे।
🔸जब पांडवों को वनवास और अज्ञातवास पर भेजा जा रहा था, उन्हें लाक्षागृह में भस्म करने का प्रयास किया जा रहा था, तब भी भीष्म पितामह चुप थे।
...जब कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार और निष्कासन हो रहा था, तब सभी शंकराचार्य चुप थे।
🔸महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा और प्रतिष्ठा को धर्म के ऊपर रखा और अस्त्र-शस्त्र लेकर अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े हो गए...
...आज जब हिंदू विरोधी सेनाएँ कुरुक्षेत्र (राम-मंदिर) के मैदान में खड़े होकर हमारे ऊपर तीर पर तीर छोड़ रही हैं तब शंकराचार्य अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखकर अधर्मियों के पक्ष में खड़े होकर तीर चला रहे हैं।
🔸भीष्म पितामह हस्तिनापुर के समर्पित योद्धा थे, ज्ञानी थे सच्चरित्र थे लेकिन अन्याय को मौन समर्थन दिया इसलिए वह शरशय्या के अधिकारी बने, सिंहासन के नहीं...
...शंकराचार्य भी कितने ही ज्ञानी हों धर्माचार्य हों (जो कि शायद ही हों) लेकिन अन्याय के समय मौन रहने और युद्ध के समय अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े होने के अपराध में उन्हें भी शरशय्या पर लेटना ही होगा।
जब श्री राम टाट के टेंट में थे, ये चारों शंकराचार्य सोने के सिंघासनो पर चढ़ कर हाथी की सवारी करते थे, कोई योगदान नहीं था, इन का रामजन्मभूमि के आंदोलन में.. अब क्रुद्ध हो रहे हैं... केवल इसलिये कि इनसे प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जा रही, और कराई भी क्यों जाए, पता नहीं इन्हें कितना ज्ञान है?
जिज्ञासु मन का अति विनम्रता से एक प्रश्न:
1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें ?
वैसे इन बातों से ऊपर एक बात यह है कि जो हो रहा है वो अति विशेष घटना है... उसका आनंद उठाएं! जो जितना भी विरोध कर रहे हैं बस ये जाने लें कि उसका कोई लाभ नहीं क्योंकि...
होई है सोई जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा।।