logo

पुराने अच्छे दिन (Good Old Days)

आज सोशल मिडिया पर एक गरीब की व्यथा सुनी, जो गरीबी रेखा के माप पर बात कर रहा था की लगभग 13 सौ रूपये प्रति माह कमाने वाला गरीब नहीं होता है भले की ये 13 सौ उसके दो बच्चों के लिए आधार लीटर दूध भी नहीं महीना भर ना दिला पाए। फिर रोटी भी चाहिए और हाँ संतुलित भोजन की पूर्ति भी करनी है नहीं तों देश का भविष्य कुपोषित रहेगा। फिर, अपना मकान का सपना तो सपना ही होगा। जब देश 175 वाँ अमृत महोत्सव मना रहा होगा तब तक तो शायद इस अगरीब को घर मिल जायेगा। बात उसके दर्द की थी तो लगा की अपनी ही कहानी है - रोटी महंगी, कपड़ा महंगा, महंगा घर संसार रे, शिक्षा महंगी स्वास्थ महंगा महंगा ये बाज़ार रे, न वो गरीब है और ना वो भर पेट खुश है, सपनों के सौदागरों की बस वो एक वोट है।

137
6349 views