
एक तरफ राज्यकर्मियों को बोनस तो दूसरी तरफ संविदाकर्मियों को समय से मानदेय तक नहीं*
सरकारें कैसे इतनी संवेदनहीन हो सकती हैं। सरकारों के लिए तो सारे कर्मचारी एक से हैं, फिर चाहे वह नियमित हों या संविदा पर। एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश सरकार नियमित राज्य कर्मचारियों को दीपावली पर बोनस देने जा रही है तो वहीं दूसरी ओर अनुदेशक-शिक्षामित्र को समय से क्रमश: 9000-10000 का मानदेय नहीं दिया जाता है। बोनस तो दूर की बात है। पर्व तो सबके लिए एक जैसा होना चाहिए फिर चाहे वह गरीब हो या अमीर, फिर चाहे वह नियमित कर्मचारी हो या संविदा कर्मचारी।
क्या इस सरकार में अनुदेशकों- शिक्षामित्रों को इतना भी अधिकार नहीं है कि उनको भी बोनस दिया जाए ? क्या खुशियों में शामिल होने का अधिकार केवल नियमित कर्मचारी को है, संविदा कर्मचारियों को नहीं।अगर जिस तरह राज्य कर्मचारियों को सरकार 7000 का दीपावली बोनस देने जा रही है, क्या उसी तरह का बोनस सरकार प्रदेश के सभी संविदा कर्मियों को नहीं दे सकती ?
दीपावली का त्यौहार लोग हंसी-खुशी के साथ मना सकें इसके लिए प्राइवेट कंपनियां भी अपने कर्मचारियों को बोनस देती हैं। लेकिन यहां है कि, प्रदेश के करीब 10 लाख संविदाकर्मियों को उत्तर प्रदेश की सरकार बोनस योग्य भी नहीं समझती। क्या प्रदेश की अर्थव्यस्था में केवल नियमित कर्मचारियों का ही योगदान, संविदाकर्मियो का नहीं? इस प्रश्न का उत्तर सरकार को देना चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार नियमित कर्मचारियों को 46% का महंगाई भत्ता और 7000 रुपए का बोनस देकर दीपावली गिफ्ट दिया है। महंगाई भत्ता वृद्धि का लाभ करीब 10 लाख राज्यकर्मियों, आठ लाख शिक्षकों और पेंशनरों को मिलेगा।
उत्तर प्रदेश की सरकार जिस तरह की घोषणा नियमित कर्मचारियों के लिए की है? क्या उसी तरह की घोषणा सरकार संविदा कर्मियों (अनुदेशकों-शिक्षामित्रों व अन्य विभागों ) के लिए नही कर सकती है।अभी दीपावली आने में कुछ दिन बचे हैं। अगर सरकार संविदाकर्मियों के लिए बोनस की घोषणा करती है तो निश्चित रूप से वह प्रशंसा की पात्र होगी।
इस विषय पर अनुदेशक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम सिंह कहते हैं कि, पता नहीं सरकार हमसे किस गुनाह का बदला ले रही है। एक तरफ नियमित कर्मचारियों को बोनस दिया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर हमको समय से मानदेय नहीं मिल पाता। क्या खुशियों में शामिल होने का अधिकार हमको नहीं है ? सरकार हमारे साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है, समझ से परे है।
कहीं दिया जले, कहीं दिल जले। कहीं बोनस बटे तो कहीं समय से मानदेय न मिले।"