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ओ मेरी जाने जां, ऐसे ना अब तड़पा..

पढ़ता हूँ तेरी आँखों को,

इनमे छिपे कुछ राज़ हैं।

हाल-ए-दिल बयां करती हैं,

दिल के सब जज़्बात हैं॥

तेरे लिए कुछ भी कर जाऊंगा,

दुनिया से भी भिड़ जाऊंगा।

इश्क़ मेरा, मेरे लिए जैसे खुदा।

ओ मेरी जाने जां ऐसे न अब तड़पा।

आ जा, अब अभी न जा ना।
याद हैं, वो पहली बारिशें,

मेरी शरारतों पर तेरा शरमाना।

हाथों में हाथ ले,

थोड़ी दूर साथ चले।

घबराकर तेरा मुझसे लिपट जाना।

ओ मेरी जाने जां, ऐसे न अब तड़पा।

आ जा, अब अभी न जाना।
                                           -विदित भरतकुमार शाह ‘अंतिम’
                                             झाबुआ (मध्य प्रदेश)

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