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भारत की स्पेस इकॉनमी 40 अरब डॉलर के लक्ष्य हेतु अंतरिक्ष कार्यक्रम बजट को करना होगा दुगुना
चंद्रयान-3 ने पुरे विश्
भारत की स्पेस इकॉनमी 40 अरब डॉलर के लक्ष्य हेतु अंतरिक्ष कार्यक्रम बजट को करना होगा दुगुना
चंद्रयान-3 ने पुरे विश्व में भारत का परचम फिर से लहराया
महत्वपूर्ण बिंदु :
वर्तमान में ग्लोबल स्पेस इकॉनमी इंडेक्स में भारत देश की हिस्सेदारी महज 2 प्रतिशत
2040 तक भारत की स्पेस इकॉनमी 40 अरब डॉलर होने की सम्भावना
चांद के साउथ पोल पर अपनी पहुंच बनाने वाला पुरे विश्व में भारत पहला देश
चंद्रयान अभियान की कामयाबी चंद्रयान -३ मिशन के विक्रम लैंडर का चांद पर सफलतापूर्वक उतरना इसरो की भावी प्रगतिशील सम्भावनाओ को व्यक्त करता है ,इससे यह उजागर हो गया है की इसरो की तकनिकी क्षमता और हमारे वैज्ञानिको में कितनी बौद्धिक क्षमता है। कुल मिलकर यह इसरो की बेहतर गुणवत्तापूर्ण तकनीकी क्षमताओं का प्रभावी प्रदर्शन है। चंद्रयान-3 ने आज पुरे विश्व में भारत का परचम फिर से लहरा दिया है। पूरी दुनिया की नजर भारत के चंद्रयान-3 मिशन पर थी। अब भारत पुई दुनिया में प्रथम ऐसा देश बना गया है, जिसने चांद के साउथ पोल पर अपनी पहुंच बना दी है । इस उत्कृष्ट सफलता के लिए इसरो की जितनी तारीफ की जाए वो कम है। चंद्रयान-3 की चांद पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कर भारत ने इतिहास तो रच दिया है। इसरो को, इस मिशन में लगी पूरी टीम को ही नहीं देश की पूरी वैज्ञानिक युवा रिसर्चर टेक्निकल टीम को इसके लिए जितनी बधाई दी जाए कम है। यह वास्तव में भारत देश की उस वैज्ञानिक चेतना और सूक्ष्म दृष्टि का कमाल है, जो तमाम बाधाओं के बावजूद पिछले 61 साल से हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम आगे बढ़ता रहा है। हमने पहले चांद पर पानी खोजा और अब चांद के दूसरे सिरे पर भी पहुंच गए। निश्चित रूप से यह एक अभूतपूर्व सफलता है और अंतरिक्ष अनुसंधान के अगले चरण में इसका फायदा पूरी दुनिया को मिलेगा। इस मौके पर अपनी इस असाधारण, अभूतपूर्व उपलब्धि पर गर्व करते हुए उन बाधाओं पर भी एक नजर डाल लेना उचित होगा, जिनके बावजूद हमने यह लक्ष्य हासिल किया और जिनके हटने से आगे हमारी रफ्तार कई गुना तेज हो सकती है। इस लिहाज से पहला फैक्टर तो बजट ही दिखता है। आज यह समय की दरकार है की केंद्र सरकार ने जिस तरीके से अर्थव्यवथा को बेहतर बनाने के लिए जीएसटी ,नोटबंदी पर एक कमिटी बनाकर डिसीजन लिए थे उसी प्रकार अंतरिक्ष कार्यक्रम रिसर्च डेवलपमेंट हेतु उचित बजट बढ़ाने की घोषणा की जाये और साथ ही निजी क्षेत्र में कार्यरत कम्पनियो को प्रोत्साहन के लिए विशेष आकर्षक पालिसी तैयार की जाये ताकि भारत पुरे विश्व में 2040 तक अपना लोहा अंतरिक्ष कार्य्रकम में और बेहतर प्रदर्शन सम्भावनाये वाले क्षेत्र में तीव्र गति से कर सके।2023-24 में अंतरिक्ष कार्य नियोजन हेतु आवंटित बजट 12,544 करोड़ रुपये रखा गया , जो पिछले वर्ष यानी 2022-23 के मुकाबले 8 प्रतिशत कम है। अगर देखा जाये तो , इसरो की कमाई का मुख्य जरिया इसके सैटलाइट लॉन्चर्स हैं,परन्तु इस क्षेत्र को कमाई से न तोलकर देश के युवाओ की साइंस तकनीक स्पेस क्षेत्र में रूचि बनी रहे,उसके लिए आवश्यकता है ,बजट को और अधिक बढ़ाने की। अगर परिणामो की बात की जाये तो जुलाई 2023 तक इसरो ने 36 देशों के 431 सैटलाइट लॉन्च किए हैं। जुलाई 2022 तक विदेशी सैटलाइट की लॉन्चिंग से इसरो को कुल 22.3 करोड़ डॉलर की कमाई हुई है। वह भी तब, जब भारत रॉकेट लॉन्च करने की क्षमता से लैस टॉप 10 देशों में शामिल है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर तुलना की जाये तो ग्लोबल स्पेस इकॉनमी इंडेक्स में भारत देश की हिस्सेदारी महज 2 प्रतिशत है। एक अनुमान के अनुसार हम लगभग 8 से 10 प्रतिशत तक हमारी हिस्सेदारी बड़ा सकते है ,जो की स्पेस अनुसन्धान के क्षेत्र का बजट बढ़ाने और इस संदर्भ में निजी क्षेत्र की भागीदारी हेतु और लचीली आकर्षक पालिसी से ही संभव होगा। जिस गति से भारत उपलब्धिया प्राप्त कर रहा है उससे लगता है की 2040 तक भारत की स्पेस इकॉनमी 40 अरब डॉलर की होगी। हम अक्सर इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि हमारे वैज्ञानिक कितने कम खर्च में शानदार काम कर रहे हैं। देखा जाये तो कि चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचाने की लागत हॉलिवुड की हाल में रिलीज हुई कई फिल्मो की लागत से कम है .अगर वही सम्भावनाओ पर गौर किया जाये तो पुरे विश्व में भारत ऐसा देश है जिसमे 2040 तक 100 अरब डॉलर से ऊपर की स्पेस इकॉनमी में क्षमता प्रदर्शन की पावर है। जाहिर है, यही वक्त है जब इसरो को अपनी महत्वाकांक्षाओं को फिर से नापने की और सरकार को इस काम में उसकी हर संभव मदद करने की जरूरत है। हालिया अभूतपूर्व सफलता से अंतरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रमों की राह में लगातार बेहतर और बेहतर अवसर आना तय है ,परन्तु सवाल और मंथन योग्य प्रश्न है की 140 करोड़ जनसंख्या से सम्पूरित 50 करोड़ से अधिक युवा जनसख्या वाले देश में और पुरे विश्व में सर्वाधिक साइंस और इंजीनियरिंग प्रशिक्षित युवा भारत के समक्ष सवाल यह है कि क्या इसरो और भारत उन अवसरों का सही इस्तेमाल करने की स्थिति में होगा?
✍️लेखक नयन प्रकाश गाँधी चर्चित स्तम्भकार ,प्रबंधन विश्लेषक एवं स्वतंत्र सोशल पत्रकार के रूप में सक्रिय है एवं ग्लोबल एक्सीलेंसी फोरम नई दिल्ली के नेशनल वाईस प्रेजिडेंट (यूथ अफेयर्स ) भी है ,समसामयिक मुद्दों पर वे लगातार सक्रिय रहते है .