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पड़ोसी मुल्क से रिश्तों की सच्चाई इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में विचार व्यक्त करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो टूक क

पड़ोसी मुल्क से रिश्तों की सच्चाई

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में विचार व्यक्त करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो टूक कहा कि, 'भारत और चीन के बीच की स्थिति नाजुक एवं खतरनाक है, क्योंकि दोनों देशों की सेना एक दूसरे से काफी नजदीक तैनात हैं।'

विदेश मंत्री ने बिल्कुल सही कहा। असल में चीन जिस बात का एहसास नहीं कर रहा है वह यह है कि इस एलएसी को लेकर विश्व की राजनीति में भी ध्रुवीकरण हो रहा है। गत सप्ताह अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन जेफ मर्कले और डेमोक्रेट बिल हैगट्री द्वारा इस आशय का प्रस्ताव लाना कि,'चीन एलएसी पर दादागिरी करता है और वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता, अरुणाचल प्रदेश पर उसका दावा गलत है' इसलिए अमेरिका चीन के दावे को गलत मानता है', सामान्य बात नहीं है। जिस तरह दक्षिण चीन सागर, जापान के द्वीपों और आस्ट्रेलिया के साथ दादागिरी के मुद्दे को लेकर प्रभावित देश क्वाड बना लिए उसी तरह निकट भविष्य में एलएसी पर चीन की दादागिरी के खिलाफ गुटीय कूटनीति अमेरिका और पश्चिमी देश कर सकते हैं। उन्हें तो चीन को निशाना बनाने का अवसर चाहिए, कंधा किसी का भी हो। भारत की विदेश नीति में इतना स्थायित्व है कि वह जल्दी किसकी तरफ झुकती नहीं। यही कारण है कि चीन विरोधी ताकतों के प्रयास के बाद भी भारत ने अपने पड़ोसी देश से शीतयुद्ध की स्थिति से निपटने में सफलता हासिल की है।

दरअसल चीन अपनी विस्तारवादी रणनीति के तहत नो मैन्स लैंड पर ही कब्जा कर सेना की अस्थाई चौकियां बना लेता है और भारतीय सेना की आपत्ति के बाद वे वापस तो चले जाते थे, किन्तु जब दोनों देशों के बीच फ्लैग मीटिंग होती थी तो वे दावा करते थे कि हमारी सेना उस प्वाइंट तक थी, यानि अवैध रूप से कब्जाई जगह पर दावा करते थे।

2020 में भी चीनी सेना ने पश्चिमी लद्दाख में यही किया था, किन्तु भारतीय सेना ने उनकी चालाकी समझ ली थी, इसलिए नो मैन्स लैंड पर जितना बढ़कर चीन की सेना ने अपने जवानों की तैनाती की, उतना ही बढ़कर भारतीय सेना ने भी अपनी सैन्य टुकड़ी तैनात कर दी। परिणाम यह हुआ कि दोनों सेनाएं बिल्कुल आमने-सामने खड़ी हो गई हैं। टकरावपूर्ण स्थिति से बचने के लिए ही दोनों देशों की सरकारों ने समझौता किया था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के सैनिकों की तैनाती एक निश्चित दूरी पर होना आवश्यक है। यही कारण है कि दोनों सेनाओं के बीच एक पट्टी का निर्धारण था, जो बफर जोन कहलाता था। इस बफर जोन का दोनों देशों की सेनाएं सम्मान करती थीं, किन्तु चीन ने हमेशा की तरह 2020 में टकराव की नीति अपनाई और अपनी सेना एलएसी पर आगे बढ़ाकर तैनात कर दी। भारत की सेना की तैनाती बहुत नजदीक यानि बिल्कुल सामने तक होने की चीन सरकार और सेना दोनों को उम्मीद नहीं थी। किन्तु चीन की विश्वसनीयता शून्य होने के कारण भारत सरकार और सेना ने परिणामों की परवाह किए बिना ही चीन को उसी की भाषा में जवाब देना आवश्यक समझा।

असल में चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों में स्थायित्व इसलिए नहीं होता क्योंकि फ्लैग मीटिंग में जब भी किसी बात पर सहमति बनती है तो वहां की सरकार और सेना उसका पालन ही नहीं करती। लगता है कि चीनी हर बैठक में सहमति बनाते ही हैं भारतीय सेना के साथ विश्वासघात करने के लिए। चीनी सहमति बनाकर जो समय अर्जित करते हैं, उसी दौरान वे ऐसी साजिशें रचते हैं, जिससे कि भारतीय सेना को चकमा दे सकें, किन्तु भारतीय सेना अपने शत्रु सेना पर बिल्कुल भरोसा ही नहीं करती और उनके साथ जैसे को तैसा की रणनीति अपनाती है।

बहरहाल चीनी और भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख से पश्चिमी लद्दाख तक और पेंगांग झील पर एक दूसरे से निपटने के लिए हमेशा तैनात हैं। यही कारण है कि एलएसी पर स्थिति संवेदनशील और खतरनाक है।












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