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-विकास दुबे मुठभेड़ कांड: आईजी लक्ष्मी सिंह करेंगी मामले में जांच

कानपुर। बीते दिनों बिकरू गांव की घटना ने पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान छोड़ दिया है, जिसने न केवल खाकी.अपराध के गठजोड़ का खुलासा किया, बल्कि सिस्टम पर भी कालिख पोत दी। डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों का हत्यारा विकास दुबे अभी पकड़ से दूर है। उसे आसमान निगल गया या धरती, किसी को कुछ पता नहीं है। एसटीएफ और 40 थानों की फोर्स गली.गली और बीहड़ से लेकर नेपाल बॉर्डर तक सर्च अभियान चला रही है।

 उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि, ‘चूक नहीं हुई, बल्कि अफसरों से लेकर स्थानीय थाने की मिलीभगत है। इस बीच पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। मुठभेड़ में शहीद डीएसपी देवेंद्र के भाई कमलकांत का कहना है कि, ‘जिस अफसर ने विकास दुबे पर कोई कार्रवाई नहीं की, अब वही एसटीएफ का हेड है। ऐसे में जांच का हश्र क्या होगा..?’  लेकिन शासन ने पुलिस की भूमिका पर उठते सवालों को देखते हुए आठ पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले की जांच कानपुर आईजी से छीन ली है। अब इस मामले की जांच आईजी लखनऊ करेंगी।  ’आईजी कानपुर कर रहे थे मामले की जांच: बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में कानपुर के आईजी मामले की जांच कर रहे थे, लेकिन इसी बीच सीओ देवेन्द्र के भाई ने पुलिस की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि, ‘जिस अफसर ने विकास दुबे पर कोई कार्रवाई नहीं की, अब वही एसटीएफ का हेड है ऐसे में जांच कैसी होगी, यह तो समय ही बताएगा।’ 

आला अफसरों ने सीओ के भाई की बात को संज्ञान में लेते हुए इस मामले की जांच कानपुर आईजी से लेकर लखनऊ आई लक्ष्मी सिंह को दे दी है। 


 लक्ष्मी सिंह पहुंचीं बिल्हौर: विकास दुबे मुठभेड़़ कांड में पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले में लखनऊ आयीं आईजी लक्ष्मी सिंह आज बिल्हौर में जांच के लिए पहुंची। यहां उन्होंने पहले सीओ कार्यालय का निरीक्षण किया उसके बाद घटनास्थल पर जाकर गांव की नब्ज टटोलने की कोशिश की। यहां गांव के लोगों से उन्होंने पूछतीछ की।  

तत्कालीन एसएसपी अनंतदेव पर उठे सवाल: 
 शहीद डीएसपी देवेंद्र के भाई कमलकांत का कहना है. कानपुर के तत्कालीन एसएसपी अनंतदेव अब एसटीएफ के डीआईजी हैं। विकास दुबे के खिलाफ जांच एसटीएफ कर रही है। अनंत देव दो साल से अधिक समय तक कानपुर में एसएसपी रहे। मुठभेड़ में मारे गए डीएसपी देवेंद्र मिश्र ने उन्हें चौबेपुर थानेदार विनय तिवारी और विकास दुबे पर कार्रवाई के लिए 13 मार्च को पत्र लिखा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। कानपुर का पूरा खाकी सिस्टम इस बात से परिचित था कि, विकास दुबे के अपराध की फेहरिस्त कितनी लंबी है, लेकिन किसी के कानों में जूं नहीं रेंगी। अब बिकरू गांव में हुई वीभत्स घटना होने के बाद वहीं के अधिकारी मामले की जांच में जुटे हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जांच का हश्र क्या होगा..?’

  थाने में घुसकर मर्डर, मगर किसी पुलिसवाले नहीं दी गवाही : 
 विकास दुबे ने वर्ष 2001 में राजनाथ सिंह सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ल का शिवली थाने में घुसकर मर्डर कर दिया था। इसके बाद उसने इस हत्याकांड में कोर्ट में सरेंडर किया। घटना के समय 20 पुलिसकर्मी थाने पर मौजूद थे, लेकिन सभी गवाही के समय मुकर गए। नतीजा कुख्यात बदमाश विकास दुबे जमानत पर बाहर आ गया। इसके बाद भी किसी अधिकारी ने मामले में कोई पैरवी नहीं की। साफ था कि पुलिस कर्मी उसे बचाने में जुटे थे।’ 
 

मुकदमा दर्ज करवाने वाला राहुल तिवारी लापता :  छह बीघा जमीन को लेकर जिस राहुल तिवारी ने गैंगस्टर विकास दुबे पर एफआईआर दर्ज करवाई थी। एनकाउंटर के बाद से ही वह लापता है, लेकिन पुलिस उसको भी अभी तक खोज नहीं पाई। आखिर राहुल तिवारी कहां है या राहुल तिवारी को किसी ने छुपा रखा है। जब पुलिस राहुल तिवारी को नहीं खोज पा रही, तब कुख्यात बदमाश को कैसे खोज सकती है..? फिलहाल सवाल उठ रहे हैं कि, विकास दुबे तक पहुंचने और पुलिस की मिलीभगत की पोल न खुल जाए इसके लिए पुलिस ने राहुल तिवारी को छुपा दिया है।’ 

 डीएसपी ने मांगी थी पीएसी :
 डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्र ने एसएसपी से फोन करके दबिश के लिए पीएसी मांगी थी, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। बताया जा रहा है कि, ऐसा नहीं था। आठ पुलिस कर्मी शहीद हो गए। जांच का हवाला दिया जा रहा है। विकास दुबे से साठगांठ होने के आरोपों के तहत चौबेपुर थाने के प्रभारी रहे विनय तिवारी और तीन अन्य को सस्पेंड किया जा चुका है, लेकिन क्या कानपुर के उच्च अफसर इस वारदात के लिए जिम्मेदार नहीं हैं..? क्या उनको इसका जिम्मेदार नहीं माना जाएगा..? वहीं ना जाने कितने और घर के भेदी बैठे हैं, जिन पर जांच की आंच तक नहीं पहुंच रही है।

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