एक सोच [शीर्षक : ज़रा सोचो तो...]
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[आराध्या 'अरु' अम्बाला(हरियाणा)]
किसी निः शंक के जुल्मों को अब सहना ब
एक सोच [शीर्षक : ज़रा सोचो तो...]
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[आराध्या 'अरु' अम्बाला(हरियाणा)]
किसी निः शंक के जुल्मों को अब सहना बंद करना होगा !
बनकर कायर और कमज़ोर ,
अब रहना बंद करना होगा !
आज कोई एक हुआ है शिकार कैसे बेकार में,
इस अँधे बहरे सांप्रदायिकता के भरे बाजार में!
अब जहाँ से विरोध के स्वर उठेंगे,
समझो अगला नंबर उसका है!
समझ नहीं आता वो धर्म निरपेक्ष भारत देश अब किसका है!
कोई पूछो जाकर हत्यारों से किस खातिर ये खेल रचा था!
क्यू हत्या करने से पहले यह बेमतलब का मेल रचा था!
इस घोर अराजकता के समय में मानवता को बचाना है,
अल्लाह, ईश्वर, गुरु और भगवान एक ही है, ये सबको बताना है!