
ऊउफ ......यह कोरोना वीर ?
आज स्थानीय समाचार पत्रिका में प्रकाशित खबर पढकर ऐसा लगा जैसे किसी ने दुखती रगों पर हाथ रख दिया हो। जिसे कोरोनो वीर कह कर बुलाया जाता रहा............ जिनका ताली, थाली और पुष्प वर्षा से स्वागत किया जाता रहा वो इतने डरपोक और अपनी जिम्मेदारियों से भागते नजर आयेंगे ऐसे तो सोचा भी ना था । सच में बहुत पीड़ा होती है जब कोई इस तरह से व्यवहार करता है और उस की लापरवाही की वजह से किसी की जान पर आ बनती है या कभी कभी जान ही चली जाती है। देश विकट परिस्थितियों के दौर से गुजार रहा है। ऐसे में मददगार लोग अनदेखी करे तो वाजिब है इंसानीयत पर प्रश्न चिन्ह का खड़ा होना। जहाँ एक ओर कोरोना ने सब को भयभीत कर रखा है तो दूसरी तरफ ऐसे भायवह हालात में आम आदमी देश की सरकरो और सक्षम लोगो की तरफ मुह ताकता है ताकि उसको कुछ राहत मिल सके लेकिन बदकिस्मती से जिन से उम्मीद होती है वो ही लोग जम कर दुहने में लगे पड़े है। इस कोरोना काल और अव्यवस्थाओ के चलते मैंने अपने पिता को खोया है। सरकारी अस्पताल चले जाओ तो वहां की स्थितिया मूंह चिडाती नजर आती है। कई स्थानों पर तो डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं होते है और जहाँ होते भी है वहां डॉक्टर साब को अस्पताल में से ढूंढना निकलना किसी भगवान को ढूँढ निकालने से कम भी नहीं होता। आपके अथक प्रयासों से अगर मिल भी जाये तो वह मरीज को देखने से कतराते है। बीमार की गम्भीरता से जाँच किये बिना ही निश्चित दूरी से दावा लिख कर इति श्री कर लेते है। मेरे शहर का हाल भी कुछ ऐसा ही है। जब मैं अपने पिताजी को लेकर सरकारी अस्पात पंहुचा तो वहां पर उपस्थित कर्मचारी से मैंने व्हीलचेयर की मांग की ताकि अपने पिताजी जो कि बीमारी के कारण चलने में असमर्थ थे को डॉक्टर तक आराम से ले जाकर दिखा सकू लेकिन मेरी लाख कोशिशो के बाद भी मुझे व्हीलचेयर नहीं मिली आखिरकार बड़ी मुश्किल से जैसे तैसे ड्यूटी डॉक्टर के बारे में पता कर डॉक्टर साब को ढूँढने लगा कि आखिर वो भगवान कहे जाने वाले है किधर? कुछ देर की मशक्कत के बाद डॉक्टर साब मिले तो लगा की अब कुछ राहत मिलेगी लेकिन राहत की उम्मीद धूमिल नजर आने लगी जब ड्यूटी डॉक्टर ने कोरोना चल रहा है का हवाला देते हुए कुछ सामान्य जाँच और एक दर्द निवारक इंजेक्शन लगा कर वापस घर ले जाने की सलाह दे डाली। जाँच और दावा लेकर वहां से निकला तो लगा की पिताजी को किसी अन्य निजी अस्पताल ले जाकर वहां उपस्थित डॉक्टर को दिखाउ ताकि उनका इलाज हो सके लेकिन कोरोना का कहर हर अस्पताल पर कायम था जिसके चलते निजी अस्पतालों में भी भगवान कहे जाने वाले नदारद मिले आखिर थक हार कर अपने पिताजी को वापस घर ले आया... कुछ मिलने वालो को फोन कर के एक जाँच जो अस्पताल में नहीं हो सकी उसे करने के लिए बुलाना चाहा मगर किसी ने शहर से बाहर हूँ तो अधिकांश कोरोना का बहाने बनाने में कामयाब हो गए ..आखिरकार मेरी हर कोशिश नाकामयाब रही और अन्तत मेरे पिताजी ने नश्वर शरीर त्याग दिया .. . बड़ा गुस्सा आया इन भगवान कहे जाने वालो पर........ इन कोरोनो वीरो पर...... शर्म आती है ऐसे कर्मवीरो पर जो सक्षम होते हुए भी किसी की जान नहीं बचा सकते। माना कि जो आया है उसे जाना निश्चित है लेकिन जिन्हें हम भगवान के सामान तमका देते है गर उसकी लापरवाही की वजह से कोई संसार छोड़ दे तो बहुत ठेस पहुचती है इस मन को। खैर........इस देश का दुर्भाग्य भी है की यहाँ मूर्खताओ की वजह से बड़ी चहल पहल है। जिन्हें मुट्ठीया बंद कर सरकारों और सक्षम लोगो से सवाल पुछने चाहिए थे आज वो ही लोग अपने निजी स्वार्थ के चलते जय जयकार करने में मग्न है। यहाँ अपनी जिम्मेदारीयो से भागने वाले को सम्मान पत्र देकर उन्हें सम्मानित किया जाता है। कुछ कोरोना वारियर्स तो वीरता का तमका लिये ऐसे दिखाई पड़ते है जैसे युद्ध जीत आये हो लेकिन इन कथा कथित कोरोना वारियर्स को कौन समझाये की युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और जब युद्द चल रहा है तो फिर किस बात का सम्मान ? क्यू और किसे सम्मान ? शर्म आनी चाहिए ऐसे सम्मान देने और लेने वाले दोनों को ही।....संजय भाटी, ब्यावर राजस्थान 988778549