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योगी के 80 बनाम 20 प्रतिशत के बयान के सियासी निहितार्थ... हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने

योगी के 80 बनाम 20 प्रतिशत के बयान के सियासी निहितार्थ...

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बयान दिया था कि यह विधानसभा चुनाव 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत के बीच होगा। सियासी हल्कों में योगी आदित्यनाथ के इस बयान को लेकर बवंडर मच गया। आम तौर पर उनके शब्दों का यही अर्थ निकाला गया है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के अंदर 19-20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखते हुए ही कहा कि 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत का चुनाव होगा। 80 प्रतिशत सकारात्मक दृष्टि से भाजपा का समर्थन देंगे और 20 नकारात्मक दृष्टि से पहले भी विरोध करते रहे हैं, आगे भी करेंगे लेकिन सरकार भाजपा की बनेगी। हम किसी के भीतर झांक कर तो नहीं देख सकते कि अंदर क्या चल रहा है।

दरअसल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना था कि सत्ता में हमने बिना भेदभाव के सबका विकास किया है लेकिन किसी का तुष्टिकरण नहीं किया है। जैसा हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के पूर्व शासन पर मुसलमानों के तुष्टिकरण यानी उनको विशेष प्राथमिकता और बढ़ावा देने का आरोप हो रहा है और यह प्रमाणित हुआ है। उन्होंने कहा कि कोईं इसे हमारी कमजोरी मानता है तो माने। राष्ट्रवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। अपनी प्रखर एवं ओजस्वी वाणी के माध्यम से तथा बिना किसी  लाग लपेट के स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कहने के लिए प्रतिबद्ध योगी आदित्यनाथ का कहना था कि जो राष्ट्र विरोधी हैं हिन्दू विरोधी हैं वे हमें नहीं मानेंगे। उनका इसी में कहना था कि मोदी जी और योगी जी अपने गर्दन काटकर तश्तरी में सजा देंगे तब भी वो वर्ग हम पर विश्वास नहीं करेगा। इसी के आगे उन्होंने 80 प्रतिशत और 20 प्रतिशत वाली बात की थी।

यद्यपि, उनके पूरे वक्तव्य को साथ मिलाकर देखा जाए तो उनका निहितार्थ यही था कि हमने सरकार होने के नाते सबके लिए काम किया है, न किसी को विशेष प्रोत्साहन दिया न किसी की उपेक्षा की और यही करेंगे, लेकिन कुछ लोग हैं जो हम पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने इसमें राष्ट्र विरोधी, हिन्दू विरोधी शब्द प्रयोग किया और राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता जताईं। हां, उन्होंने विश्वास करने या समर्थन करने की अपील नहीं की। योगी आदित्यनाथ अपनी स्पष्टवादिता और प्रखरता के लिए चर्चित रहे है। वो गोल-मोल शब्दों में बात नहीं करते। उनकी सरकार में माफिया और दागी नेताओं के विरुद्ध जैसी कठोर कार्रवाईं हुईं है उसकी कल्पना शायद ही किसी को रही हो। इसमें मुसलमानों की संख्या बहुत है। लेकिन क्या जितने बड़े अपराधियों, माफियाओं, गैंगस्टरों के विरुद्ध कार्रवाईं हुईं है उनके बारे में पहले से पता नहीं था? इनमें कौन है जिनके बारे में कहा जाए कि वे बेगुनाह थे और सरकार ने जानबूझ कर मुस्लिम होने के कारण बड़े-बड़े मुकदमे करके उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया? वे सारे साधनसंपन्न हैं और अदालतों में जितना चाहे खर्च कर सकते हैं, कर भी रहे हैं। जाहिर है कि पहले की सरकारें उन पर हाथ डालने से बचती थी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने निर्भीकता के साथ उनके खिलाफ एक्शन लिया।

योगी ने कहा कि ऐसी शक्तियां मोदी जी और योगी जी को क्यों वोट देंगे? उनके कहने का एक अर्थ यही था कि जो सकारात्मक दृष्टि से विचार करेंगे वो हमको वोट देंगे लेकिन नकारात्मक सोच रखने वाले न पहले दिया है न आगे देंगे। इसे कोईं मुस्लिम विरुद्ध कार्रवाईं कहे तो उससे पूछा जा सकता है कि क्या अपराधियों के विरुद्ध भी यह देखकर पुलिस काम करेगी कि यह किस समुदाय के हैं? उत्तर प्रदेश की सियासत की जानकारी रखने वाला कोईं भी व्यक्ति स्वीकार करेगा कि मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, आजम खान आदि के विरुद्ध एक्शन को इस रूप में प्रचारित किया गया है कि सरकार मुसलमान होने के कारण इन्हें परेशान कर रही है। बहुत सारे मुसलमान मानते हैं कि ये बाहुबली व अपराधी हैं, इन्होंने सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग किया है लेकिन बहुत बड़े वर्ग के अंदर इसे लेकर विपरीत धारणा है। मुसलमानों का बहुमत भाजपा को आज भी अपना विरोधी मानता है तथा उसे हराने के लिए रणनीतिक मतदान करने वाला है। 

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ या ऐसे अनेक नेताओं की हिदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता है। कितु सरकार के रूप में उन्होंने मुस्लिम विरोधी काम किया है इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हां, जिन मुद्दों को पहले की सरकारें छूने से बचती थीं इन्होंने उन पर खुलकर काम किया है। दूसरी सरकार होती तो अयोध्या का फैसला आने के बाद भी मंदिर निर्माण के दिशा में आगे बढ़ने से बचती।

जहां तक योगी आदित्यनाथ के मुस्लिम विरोधी होने की बात है तो कोई जरा गोरखपुर के मुसलमानों से पूछे। वहां के ​मुस्लिम समुदाय के लोग योगी आदित्यनाथ की तारीफें करते नहीं थकते। अखिलेश यादव की बात करने पर उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी ने तो मुसलमानों का सिर्फ इस्तेमाल किया है। अखिलेश यादव सिर्फ घर पर बैठकर ट्विट करते रहते हैं। अब चुनाव आ गए तो मुसलमानों के रहनुमा बनते फिरते हैं। यदि उनमें दम है तो गोरखपुर में महाराज जी के खिलाफ चुनाव में खड़े होकर देख लें। उन्हें यहां से चुनाव में खड़े होने से किसने मना किया है..? उन्हें खुद पता चल जाएगा कि यहां पर कितने मुसलमान उनको वोट देते हैं, उनका समर्थन करते हैं। यहां के मुसलमान बाबा योगी आदित्यनाथ को ही अपना रहनुमा समझते हैं। उनका कहना है कि महाराज योगी आदित्यनाथ के यहां दरबार लगता है। जहां किसी भी भेदभाव से परे, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान सबको इंसाफ मिलता है।

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