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धर्म नहीं — अस्तित्व की सीधी बात) यह ग्रंथ किसी धर्म के पक्ष में नहीं है और न ही किसी धर्म के विरोध में। यह उस भ्रम के विरुद्ध है

भूमिका ✧

(धर्म नहीं — अस्तित्व की सीधी बात)

यह ग्रंथ किसी धर्म के पक्ष में नहीं है
और न ही किसी धर्म के विरोध में।

यह उस भ्रम के विरुद्ध है
जिसे धर्म, गुरु, भगवान और सिद्धांतों ने
सदियों से “सत्य” कहकर बेचा है।

यहाँ कोई यह सिद्ध नहीं करेगा कि
इस्लाम गलत है, ईसाई गलत हैं,
या हिन्दू सही है।

यह सब बचपन की लड़ाइयाँ हैं।

प्रश्न यह नहीं है कि
कौन-सा धर्म सही है —
प्रश्न यह है कि
क्या तुम जीवित हो?
क्योंकि
धर्म हो सकता है,
विज्ञान हो सकता है,
बुद्धि हो सकती है,
ज्ञान हो सकता है —
और फिर भी
जीवन अनुपस्थित हो सकता है।

आज का मनुष्य
सुविधा में जी रहा है,
धन में जी रहा है,
सूचना में जी रहा है —
पर अस्तित्व से कटा हुआ है।

धर्म और विज्ञान —
दोनों ने मिलकर
एक ही काम किया है:
शरीर और मन को सुखी किया,
और आत्मा को
अनदेखा, उपेक्षित,
और अंततः बीमार कर दिया।

यह ग्रंथ

किसी “मान्यता” को नहीं बेचता।

क्योंकि जो मानकर जिया जाता है,
वह जीवन नहीं होता।
मान से पशु भी जी लेता है।
जीवन समझ से जीया जाता है।
सत्य बाहर नहीं खड़ा होता।
सत्य किसी मंच पर नहीं आता।

सत्य किसी मूर्ति, गुरु,
ग्रंथ या संस्था में बंद नहीं होता।

और जो धर्म यह सिखाता है कि
सत्य बाहर है —
वह धर्म नहीं,
राजनीति है।
यहाँ “मैं” कोई कर्ता नहीं है।

यह लिखना भी
किसी उपलब्धि का परिणाम नहीं है।

यह न कृपा है,
न साधना का फल,
न योग्यता का प्रमाण।

अस्तित्व
जो कहना चाहता है,
वही कहा जा रहा है।

मैं केवल
उपस्थिति हूँ।

एक माध्यम।

एक दृष्टा।

यह ग्रंथ

गुरु बनाने के लिए नहीं है।

यह ग्रंथ
शिष्य खड़े करने के लिए नहीं है।

यह ग्रंथ
तुम्हें अकेला छोड़ने के लिए है —
ताकि तुम
भीड़ से बाहर निकल सको।

क्योंकि
भीड़ में कोई नहीं जागता।

भीड़ में केवल
नशा होता है।

अगर तुम
भगवान सामने चाहते हो,
गुरु सामने चाहते हो,
सत्य बाहर चाहते हो —
तो यह ग्रंथ
तुम्हारे लिए नहीं है।

लेकिन
अगर तुम तैयार हो यह देखने के लिए कि
तुम्हारे भीतर ही
मूल छिपा है,
और उसी मूल से
पूरा ब्रह्मांड चलता है —
तो यह भूमिका
केवल शुरुआत है।

यह कोई पुस्तक नहीं है।
यह कोई दर्शन नहीं है।

यह कोई धर्म नहीं है।

स्त्रियां वर्ग बह्मा है जो हमारी उत्पति है।

विज्ञान व्यापार राजनीतिक विष्णु पालन व्यवस्था है।

धर्म शिव है उसका काम सब का संहार करना।

लेकिन धर्म व्यापार राजनीतिक सता बना हुआ है।

यह अधर्म है, असंतुलन है, धर्म सता नहीं है धर्म पालन नहीं है, धर्म विज्ञान व्यापार सता नहीं है, धर्म मात्र नीति है विवेक है कर्तव्य है।
यदि विज्ञान व्यापार सता में विवेक कर्तव्य हो वह धर्म है तब किसी अन्य धर्म की जरूरत नहीं है।

लेकिन सता व्यापार व्यवस्था विज्ञान में झूठ अनिवार्य है इसलिए एक नया आयाम धर्म बनाया कि यह उस झूठ माया से मुक्त करता रहे उसे धर्म कहते है।

लेकिन धर्म आज व्यापार सता विज्ञान से अधिक खतरनाक बना युद्ध बना हिंसा बना गुलामी देता है बंधन देता है यह धर्म नहीं है।
धर्म सता व्यापार विज्ञान दूर खड़ा रहे वह धर्म है,
धर्म एक प्रकाश है जो माया से मुक्त करना लेकिन आज धर्म कहता है हम उत्पादन हमारा आशीर्वाद से सब तुम्हे मिलेगा
यह देना नहीं इनसे मुक्त कर आत्मा आनंद शांति प्रेम देना फिर उससे मुक्ति मिलती है वह धर्म है।
उत्पति और पालन अस्तित्व कर रहा लेकिन मन स्थाई ओर अधिक होना चाहता है तब धर्म उसे मुक्त संतुलन करता है वह धर्म है,
चाहिए वेद है सभी वेद धर्म नहीं है मात्र धर्म ऋग्वेद है।
ओर गीता, उपनिषद् है ये मूल सत्य है।

लेकिन इन तीनों से धर्म अलग खड़ा है धर्म को धन सता प्रसिद्धि चाहिए तब वह धर्म नहीं है अधर्म है जो सता विज्ञान व्यापार से नीचे खड़ा है नाम धर्म है।

लेकिन नीति व्यापार सता विज्ञान से नीचे नीच है।

1️⃣ जीवन किसी धर्म से नहीं आता

इस्लाम–ईसाई–हिन्दू की बहस बचकानी है।

जीवन तब है जब कोई भी इंसान अस्तित्व के नियम को समझकर जीता है।

नाम बदलने से जीवन नहीं बदलता।

2️⃣ धर्म, विज्ञान और बुद्धि — तीनों जीवन नहीं देते
ये सब साधन देते हैं:

धन
सुविधा
शरीर और मन का सुख
पर
👉 आत्मा को नहीं छूते
👉 आत्मा को दुखी ही रखते हैं
यही आधुनिक धर्म + विज्ञान की साझी विफलता है।

3️⃣ मूल का कोई मूल्य नहीं, इसलिए सब नकली चमक बिक रही है

हवा, पानी, अग्नि, मिट्टी — सब अमृत हैं।

पर इंसान को चाहिए —
माया
छाया
फिल्म
दृश्य
मूल से रिश्ता टूट गया, इसलिए कंकड़ कंकड़ ही दिखते हैं
वरना मूल से जुड़ो तो कंकड़ भी हीरा है।

4️⃣ जो “मान” कर जी रहा है, वह जीवन नहीं जी रहा
धर्म ने सिखाया —

मान लो
विश्वास करो
मान्यता पकड़ो
पर
👉 जीवन मान से नहीं, समझ से चलता है
👉 जो मान से जीता है, वह पशु से भी नीचे है — क्योंकि पशु झूठ नहीं मानता।

5️⃣ गुरु, भगवान, धर्म — जब बाहर खड़े हों, सब झूठ हैं
सत्य सामने नहीं खड़ा होता
सत्य भीतर उतरता है
लेकिन इंसान चाहता है —
भगवान सामने दिखे
गुरु सामने बोले
सत्य बाहर मिले

👉 यह असंभव है
👉 यह अस्तित्व का नियम नहीं है

इसी झूठ पर पूरा धर्म टिका है।

6️⃣ धर्म की राजनीति का फार्मूला सीधा है

धर्म कहता है:
सत्य बाहर है
हम माध्यम हैं
हमारी पूजा करो
हमारा जयकारा करो
तुम्हें मोक्ष मिलेगा
👉 यह मोक्ष नहीं
👉 यह सत्ता, भीड़ और नियंत्रण है

7️⃣ सीखना सामान्य है, पूज्य नहीं

ABCD, चिकित्सा, विद्या — सब सीखते हैं।
ससिखाने वाला —
भगवान नहीं
गुरु नहीं
श्रेष्ठ नहीं
जन्म लेना, जन्म देना — सृष्टि का साधारण नियम है
इसमें कोई चमत्कार नहीं।
यह सब उसकी व्यवस्था है।

8️⃣ “मैं” ही सबसे बड़ा भ्रम है
“मैं लिख रहा हूँ” — यह भी भ्रम है।

लिखवाया जा रहा है।

मैं केवल —
माध्यम
दृष्टा
उपस्थिति
👉 कर्ता कोई नहीं
👉 करने वाला अस्तित्व है

9️⃣ माया एक भ्रम नहीं, भ्रमों की फैक्ट्री है
एक भ्रम — दूसरे भ्रम को जन्म देता है
और कई जन्मों तक चलता है
इसी का नाम माया है।

🔟 कलियुग नहीं — यह काल-रात्रि है
यहाँ —
गुरु अंधे हैं
शिष्य अंधे हैं
धर्म अंधा है
और अंधे अंधों को रास्ता बता रहे हैं।

11️⃣ गुरु और तुम— एक ही सिक्के के दो पहलू

गुरु चाहिए → क्योंकि खुद नहीं देखना
बुद्ध चाहिए → क्योंकि जिम्मेदारी नहीं उठानी
दोनों — 👉 बाहर देखने की बीमारी हैं
अंतिम पंक्ति (यह तुम्हारी है, मेरी नहीं)
सत्य बाहर नहीं मिलता।

जो बाहर मिला — वह व्यापार है।

जो भीतर उतरा — वही अस्तित्व है।

░A░ ░P░h░i░l░o░s░o░p░h░y░ ░t░h░a░t░ ░T░r░a░n░s░f░o░r░m░s░ ░S░p░i░r░i░t░u░a░l░i░t░y░ ░i░n░t░o░ ░a░ ░S░i░m░p░l░e░ ░S░c░i░e░n░c░e░
𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕥 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕟𝕚

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