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लंगर खाना अपराध नहीं। अपराध—आत्मा गिरवी रखना। गीता सुनना दोष नहीं। दोष—कृष्ण भूलकर गुरु को कृष्ण बनाना।

सेवा का चक्र: सत्ता की ओर
कांग्रेस से अनेक दल बने, फिर आपस में लड़े।
सनातन की यही हालत आज।
सेवा → सत्ता → पंथ → राजनीति।
राष्ट्रपति, पीएम, न्यायाधीश सब 'सेवा-शांति' के नाम पर मंच पर।
सेवा नहीं—नेटवर्किंग।

क्रम साफ़: सेवा → चंदा → संगठन → अनुयायी → पंथ → सत्ता।
आज सेवा, कल वोट, परसों पार्टी।

हम बनाम तुम—हर नए धर्म की जन्मकथा।2. अगली लड़ाई: भीतर की
हिंदू vs हिंदू, संप्रदाय vs संप्रदाय, गुरु vs गुरु, मठ vs मठ।

घर में आग लगे, पड़ोसी पानी नहीं—मौका देखे।

मुगल आए—फूट और अंधविश्वास से।
अंग्रेज़ आए—विवेक-मृत्यु से।
इतिहास बोला: "उन्होंने लूटा।"

सच: दरवाज़ा हमने खोला।

3. असली पतन: आत्मा का सौदा
लंगर खाना अपराध नहीं। अपराध—आत्मा गिरवी रखना।
गीता सुनना दोष नहीं। दोष—कृष्ण भूलकर गुरु को कृष्ण बनाना।
कृष्ण: स्वयं जागो।
पंथ: मेरे नीचे आओ।
धर्म vs पंथ—यही फर्क।

4. अंतिम गुलामी: संस्कृति का अंत
अब देश टूटा तो वेद, गीता, उपनिषद मिटेंगे।
संस्कृति फेस्टिवल बन जाएगी।
भीतर से पश्चिमी, ऊपर से धार्मिक लेबल।
सांस्कृतिक स्किज़ोफ्रेनिया—यह धर्म नहीं।

5. सेवा-व्यापार: पुण्य-लूट

देश सेवा से नहीं, सेवा-व्यापार से बर्बाद।
पुण्य के नाम लूट, आशीर्वाद से अंधकार।
भगवान-शास्त्र ढाल—लक्ष्य: खुद भगवान बनना।
धर्म का नहीं, आत्मा का विनाश।6. अंतिम सत्य
जहाँ तुम खड़े—वहीं राम, कृष्ण, बुद्ध, शिव।
सेवा ज़रूरी, संस्था=नया पंथ।
आज दान दो, कल संतान उसी से लड़ेगी।
गुरु के माथे पर नहीं लिखा:

अंतिम सत्य।✦ सनातन का अर्थ ✦

सनातन धन-सत्ता-संस्था पर नहीं—आत्मा-सत्य पर खड़ा।
गुप्त सेवा=शक्ति। प्रदर्शन=विनाश।

गीता: निष्काम कर्म—बिना दिखावे।✦ अंतिम पुकार ✦

धर्म के नाम आत्मा मत खरीदो।

इंसान को झुकाओ मत—नर ही नारायण।
जगाओ, बेहोश मत बनाओ।

भीड़-दान-प्रसिद्धि न मिले—फिर भी सत्य बोलो।

उदार बनो, भगवान मत
𝓐
Philosophy that transforms Spirituality into a Simple Science
Vedanta 2.0
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲

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