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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 दिसंबर को एक मुस्लिम महिला, डॉ. नुसरत परवीन, का हिजाब खींचा, जब उन्हें नियुक्ति पत्र दिया जा रहा था। लेकिन इस ग

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 दिसंबर को एक मुस्लिम महिला, डॉ. नुसरत परवीन, का हिजाब खींचा, जब उन्हें नियुक्ति पत्र दिया जा रहा था। लेकिन इस गंभीर मामले पर अब तक जदयू के विधायक एवं बिहार सरकार के मंत्री ज़मा ख़ान और बिहार अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष मौलाना ग़ुलाम रसूल ख़ान बलियावी — दोनों में से किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
मौलाना सभाओं में तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और खुद को क़ौम का सच्चा रहनुमा बताते हैं, मगर आज उनकी रहनुमाई कहाँ चली गई? वही मौलाना आज गूँगे बन बैठे हैं, जिन्होंने कभी हमारे झारखंड के संताल परगना इलाक़ों में देवबंदी, बरेलवी और वहाबी के नाम पर फ़साद फैलाया था और पसमांदा मुसलमानों को आपस में बाँटने का काम किया था।
ज़मा ख़ान भी खामोश हैं, जो कहते नहीं थकते थे कि “नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए सब कुछ किया।” दोनों पठानों का गर्म खून आख़िर ठंडा क्यों पड़ गया जब एक महिला के साथ खुलेआम दुर्व्यवहार किया गया, उसकी अनुमति के बिना उसके गिरहबान पर हाथ डाला गया?
ये वही अशराफ़ तबका है जो अपने आपको क़ौम का रहनुमा बताता है, लेकिन जब बोलने का समय आता है, तो गूँगा बन जाता है। क्योंकि इनका मक़सद क़ौम की भलाई नहीं, बल्कि अपनी जाति और निजी मफ़ाद को बचाए रखना है। जब तक इनकी रोज़ी-रोटी चलती रहे, इन्हें किसी और की फ़िक्र नहीं होती। इसलिए क़ौम के नाम पर दलाली करने वालों, क़ौम को बरगलाना बंद करो। बड़ी-बड़ी तकरीरों और भाषणों से न तो पेट भरता है, न मसले हल होते हैं।

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