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जब तक मत्स्य पालक स्वयं जागरूक और समय के साथ ढलने वाला नहीं बनेगा, उसका आर्थिक एवं व्यवसायिक विकास नहीं होगा- एजाज नक्वी,स्टेट नोडल प्लानिंग

जब तक मत्स्य पालक स्वयं जागरूक और समय के साथ अपने को ढालने वाला नहीं बनेगा , उसका।आर्थिक और व्यवसायिक ग्रोथ नहीं हो पाएगी।
1- अनुदान जिस पर आप ने लिखा है , सरकार खुद pmkssy योजना के अंतर्गत परफॉर्मेंस ग्रैंड की तरफ आ गई है, अनुदान आटे में नमक की तरह है,ओर वास्तविकता है कि जो अनुदान के लिए सेक्टर में आया उसका मत्स्य व्यवसाय अल्प समय तक ही चला। सरकार अनुदान के माध्यम से लोगों का काम।करने को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती है,की।उसका बिजनेस सेट अप हो सके। इसका दुरुपयोग ओर सदुपयोग करने का दायित्व किसान का भी है। सरकार रोजगार पहुंचने का प्रयास करती।है।

2- सरकार ओर वैज्ञानिक आप को तकनीकी से अवगत करा सकते है, अनुपालन और पालन स्वयं मत्स्य पालक को ही करना है।
इस ग्रुप पर मैंने देखा है कि क्विक रिस्पांस आता है। मैंने भी किसान बन के अपनी समस्या इस ग्रुप पर लिखी ,फोटो डाले , एक घंटे में वैज्ञानिकों ने मेरे से संपर्क करा, डॉ प्रधान जी ने निजी तौर पर मुझको फोन करा। ओर दुआ देने के साथ साथ , दवाओं का भी बताया।

3- मत्स्य पालक प्रतिस्पर्धा में मानक से अधिक मत्स्य बीज का संचय करते हैं,यह सोच के की calulator बेसिस पर एक मछली का संचय से लेकर उत्पादन तक का आंकलन कर के आय लेने की सोचता है, जो उसको प्राइवेट कंपनी अपना बच्चा ओर दाना बेचने के लिए समझा देते है, उसको भी वहीं समझ में आता है, इस टाइम किसान ना तो विभाग से न वैज्ञानिकों से स्टैंडर्ड प्रोसेसर और मानक को नहीं पूछता। अधिक संचय ओर फीड देने से ओवरलोड बढ़ता है, पानी की क्वालिटी खराब होती है,मछली को अनुकूल वातावरण न मिलने के कारण मछली की वृद्धि प्रभावित होती है और धीरे धीरे मछली स्ट्रेस में आ के बीमारी की चपेट में आ जाती है। पुनः कंपनी किसान को दावा डलवाने पर मजबूर करती है। इसलिए जब तक हम मानक के अनुसार संचय, फीडिंग ओर पानी की क्वालिटी नहीं रखेंगे, जब तक किसान को उचित लाभ नहीं होगा।
4 - विभाग हर साल पोर्टल खोलता है,कितने लोग आगे आए की मत्स्य सुविधा केंद के लिए आवेदन करें, मात्र कुछ ही गिनती के आवेदन आय, सरकार ने अब को स्वीकृत किया, सरकार ने आप के बीच के लोगों को ही चयन कर , एक दो साल में किसान को जागरूक होना चाहिए,ओर इनका फायदा लेना चाहिए।
5- सरकार ने मत्स्य परिसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए गत ५ वर्षों में ३८०० यूनिट स्थापित की जिनकी लागत १४३ करोड़ है, यह सब किसानों के बीच से ही हैं।

रही बात चंदौली मंडी की तो बड़ा प्रोजेक्ट शुरू होने में वक्त लगता है, ओर कुछ नया करने में हर तरफ से guildlines, मानक आदि बनते हैं, जिसमें वक्त लगता है, कम से कम इसका शुक्र होना चाहिए कि कुछ न होने से कुछ हुआ और एक उच्च गुणवत्ता युक्त संसाधन जो देश की अच्छी मंडी में से एक होने वाली है वोह हमारे प्रदेश में है। मुझे यकीन ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि भाविश में यह एक अच्छा व्यापार करने की जगह होगी और किसानों को उचित लाभ मिलेगा।
17-18 December में nbfgr लखनऊ में ही मत्स्य पालन के विभिन्न आयाम जिसमें आप द्वारा जो processing ओर मार्केटिंग का जिक्र किया ,उसमें इनवेस्टर को कैसे लाया जाए ,कैसे व्यापार को उच्च गुणवत्ता युक्त ओर एक्स्पोर्ट क्वालिटी का रखा जाए पर गहन चिंतन ओर मनन किया,जिसमें कई बड़ी कंपनी स्पेंसर, लुलु मॉल, बिग बास्केट, लिशियस, व्हाइट फीस, फिश फ्रेश, आदि और अन्य प्रदेशों की प्रोसेसिंग कंपनीज ने प्रतिभाग किया , ओर कल ही कल में लगभग 100 करोड़ का इन्वेस्टमेंट देने का वादा किया है। हम अपना अधिक से अधिक प्रयास कर सकते है , कंपनी को बुला सकते हैं,लेकिन व्यापार उसे स्थानीय किसानों से सामंजस्य स्थापित करते हुए ही मानक स्थापित करते हुए करना पड़ेगा।।


6- और मेरा हमेशा प्रयास रहा है कि जब भी में किसानों के बीच किसी कार्यक्रम में, ट्रेनिंग में जाता हु,तो पानी की गुणवत्ता, मानक के अनुसार संचय/ फीडिंग के साथ साथ बीमारी ओर उस के उपचार का ही किसानों को चल चित्र, पावर प्वाइंट के माध्यम से समझने की कोशिश करता हु।

यह मैसेज किसी को या किसी के मैसेज की काट /या किसी अन्य भावना से नहीं किया गया, बस अपने विचार ओर सरकार ओर वैज्ञानिकों को पक्ष रखने मात्र का है,क्योंकि राज्य स्तर पर में योजनाओं , बीमारियों के लिए स्टेट नोडल ओर प्रोसेसिंग ग्रुप के लिए प्लानिंग का नोडल नामित हु।

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