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छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री आवास योजना बनी मज़ाक



शहरी-ग्रामीण दोनों योजनाओं का भुगतान ठप, गरीबों की नींद उड़ी**

छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी एवं ग्रामीण) इन दिनों पूरी तरह से अव्यवस्था और लापरवाही का शिकार हो चुकी है। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत गरीबों को पक्का मकान देने का सपना अब अधूरा और कागज़ी साबित होता दिख रहा है।

प्रदेश के हजारों लाभार्थी आज भारी परेशानी में हैं।
किसी के खाते में केवल एक किस्त आई, जिसके भरोसे लोगों ने मकान निर्माण शुरू कर दिया, लेकिन दूसरी किस्त महीनों से अटकी हुई है। नतीजा—

> अधूरे मकान, कर्ज में डूबे परिवार, और सिर पर छत का संकट।



स्थिति इससे भी ज्यादा चिंताजनक है।
कई ऐसे पात्र हितग्राही हैं जिनके खाते में आज तक एक भी किस्त नहीं आई, जबकि उनके नाम स्वीकृत सूची में दर्ज हैं। अधिकारियों के चक्कर काट-काट कर लोग थक चुके हैं, लेकिन न समाधान मिल रहा है, न जवाब।

ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी बदतर हैं—
अधबने मकानों में रहना मजबूरी बन गई है।
ईंट, सीमेंट, मजदूरी के पैसे उधार लेकर काम शुरू करने वाले गरीब परिवार अब साहूकारों और ठेकेदारों के दबाव में आ गए हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि—

जब पहली किस्त दी गई, तो दूसरी क्यों रोकी गई?

क्या गरीबों के सपनों की कोई कीमत नहीं?

कब तक जनता सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती रहेगी?


स्थानीय स्तर पर अधिकारी बजट नहीं आया, ऊपर से आदेश नहीं है, जैसे बहाने बनाकर पल्ला झाड़ रहे हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि गरीब खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर हो रहा है।

प्रधानमंत्री आवास योजना, जो कभी गरीबों की उम्मीद थी, आज छत्तीसगढ़ में सरकारी उदासीनता का सबसे बड़ा उदाहरण बनती जा रही है।


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