*विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग, लोकभाषा प्रचार समिति एवं डॉ प्रभातदास फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वावधान में पांच दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर उद्घाटित*
*विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग, लोकभाषा प्रचार समिति एवं डॉ प्रभातदास फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वावधान में पांच दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर उद्घाटित*
*शिविर में प्रो जीवानन्द, डॉ कृष्णकांत, डॉ चौरसिया, डॉ संजीत, डॉ धीरज, डॉ ममता, डॉ मोना, डॉ सोमेश्वर, शिवम, अमित ने रखे विचार*
*कार्यक्रम में संस्कृत अध्ययन केन्द्र के सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कोर्सों में नवनामांकित छात्रों का हुआ वर्गोंरंभ एवं दी गई पांच पुस्तकें*
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, लोकभाषा प्रचार समिति, बिहार प्रान्त एवं डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में पांच दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का उद्घाटन सत्र पीजी संस्कृत विभाग में अध्यक्ष डॉ कृष्णकान्त झा की अध्यक्षता में आयोजित की गई, जिसमें सीएमबी कॉलेज, घोघरडीया के प्रधानाचार्य प्रो जीवानन्द झा- उद्धाटक, संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन-विभागाध्यक्ष डॉ धीरज कुमार पांडेय- मुख्य अतिथि, सीएम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ संजीत कुमार झा- मुख्य वक्ता, विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही- स्वागत कर्ता, संस्कृत अध्ययन केन्द्र के अधिकारी डॉ आर एन चौरसिया- धन्यवाद कर्ता एवं शिविर प्रशिक्षक अमित कुमार झा- संचालन कर्ता के साथ ही संस्कृत-प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा एवं शिवम कुमार आदि ने विचार रखें। शिविर में कुमकुम कुमारी ने संस्कृत में स्वागत गीत गाया, जबकि वैदिक मंगलाचरण- डॉ सोमेश्वर नाथ दधीचि तथा पौराणिक मंगलाचरण- शोधार्थी सुधांशु कुमार ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर शोधार्थी- अनिमेष मंडल एवं सोनाली मंडल, छात्र- ईशान, दीपेश कुमार, रीमा कुमारी, जूही कुमारी, रंजना कुमारी, रागनी कुमारी, विमलेश कुमार झा, कृष्णा पासवान, रोशन कुमार तथा दयानंद कुमार आदि ने सक्रिय योगदान किया। कार्यक्रम का उद्घाटन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जबकि अतिथियों का स्वागत पाग एवं चादर से किया गया। इस अवसर पर शिविर प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने सहभागियों का प्रारंभिक वर्ग लिया।
उद्घाटन संबोधन में प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि इस शिविर से संस्कृत अध्ययन-अध्यापन में लोगों की रुचि बढ़ेगी। यदि 10- 20% छात्र भी संस्कृत बोलना सीखेंगे तो यह शिविर सफल माना जाएगा। उन्होंने छात्रों से संस्कृत भाषा में संवाद करने, लिखने, पढ़ने तथा समझने का आह्वान करते हुए कहा कि संस्कृत पढ़ने वाले एवं बोलने वाले व्यक्ति कभी भी, कहीं भी भूखे नहीं रह सकते हैं। मुख्य अतिथि डॉ धीरज कुमार पांडेय ने संभाषण शिविर हेतु छात्रों की उपस्थिति पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत सबसे प्राचीन एवं अन्य भाषाओं की जननी है। संस्कृत आदिकाल का हमारा इतिहास भी है और मूल्यपरक भाषा भी। उन्होंने कहा कि संस्कृत में मानवीय सम्मान, आचरण एवं मानवीय गुणों आदि का विस्तृत वर्णन है। इसमें मूल्य का संरक्षण किया गया है। मुख्य वक्ता डॉ संजीत कुमार झा ने कहा कि संस्कृत में बोलना छात्रों एवं शिक्षकों के लिए सम्मान की बात है। इसमें निहित ज्ञान के कारण ही आज संस्कृत की प्रासंगिकता पुनः बढ़ रही है। संस्कृत बोलने से छात्रों का आत्मबल बढ़ता है। उन्होंने निरंतर अभ्यास कर संस्कृत संभाषण सीखने का आह्वान करते हुए कहा कि संस्कृत परिवर्तन का वाहक है। छात्र ही शिक्षकों का वास्तविक परिचय होता है।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ कृष्णकान्त झा ने कहा कि देवभाषा कही जाने वाली संस्कृत प्राचीन काल में लोकभाषा थी। विदेशी आक्रमण के कारण इसका काफी क्षय हुआ। कई उदाहरण देते हुए कहा कि आज कई मुस्लिम लोग भी संस्कृत में संभाषण करते हैं। संस्कृत की उन्नति एवं लोकप्रियता दिनानुदिन पुनः बढ़ती जा रही है। संस्कृत सीखने से अन्य भाषाएं भी जल्दी सीखी जा सकती है। उन्होंने छात्रों से संस्कृत में आवेदन लिखने का आह्वान करते हुए कहा कि संस्कृत बहुत कठिन भाषा नहीं है, पर व्यवहार में न होने के कारण लोग इसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं। संस्कृत बोलने के लिए व्याकरण या शास्त्रीय ज्ञान आवश्यक नहीं है, बल्कि निरंतर अभ्यास की जरूरत है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ आर एन चौरसिया ने संस्कृत ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों को बेहतरीन जीवनशैली बताते हुए कहा कि शिविर में संकेतों, चित्रों, वस्तुओं, उदाहरणों, प्रश्नोत्तरों तथा वार्तालापों आदि के माध्यम से सरल संस्कृत संभाषण सिखाया जाएगा। शिविर में किसी भी उम्र के, कोई भी छात्र-छात्रा या पुरुष-महिला निःशुल्क रूप से भाग ले सकते हैं। शिविर के समापन के अवसर पर आगामी 23 दिसंबर को सभी सहभागियों को प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। स्वागत संबोधन में डॉ ममता स्नेही ने संस्कृत संभाषण के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। वहीं डॉ मोना शर्मा ने मानव जीवन में संस्कृत भाषा के महत्वों पर विस्तृत चर्चा की। शिवम कुमार मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर संस्कृत अध्ययन केन्द्र के नामांकित छात्रों का वर्गारंभ भी हुआ, जिन्हें अतिथियों द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा तैयार पांच पुस्तकें प्रदान की गई। कार्यक्रम का समापन शांति मंत्र पाठ से हुआ।