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गोवा का 65 वा स्वतंत्रता दिवस

गोवा का 65 वां स्वतंत्रता दिवस

रिपोर्टर - भगवानदास शाह ✍️
जिला बुरहानपुर मध्यप्रदेश

भारत की आजादी 1947 के बाद भी पुर्तगाली गोवा छोड़ने को तैयार ही नहीं थे।
*गोवा 25 नवंबर 1510 से 19 दिसंबर 1961 तक 451 वर्ष पुर्तगालियों का गुलाम रहा है!*
*20 मई 1498 का दिन भारत के पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र से लगे हुए गौमांतक प्रदेश जिसका वर्तमान नाम गोवा हैं, के बंदरगाह पर विशेष चहल-पहल थी। पुर्तगाल से एक जहाजी बेड़ा आया था। गौमांतक के लोग जहाज के लोगों को आश्चर्यजनक नेत्रों से देख रहे थे।जहाज पर सवार विचित्र वेशभूषा लाल - लाल गोरा मुंह और अनबूझ भाषा यह पुर्तगाल के वास्कोडिगामा की पहली भारत यात्रा थी। तब वास्कोडिगामा ने कालीकट के राजा से केवल व्यापार करने की अनुमति मांगी थी।इसके पश्चात वह वापस चला गया सन 1502 में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया इस बार वह एक व्यापारी के रूप में नहीं बल्कि संधि तोड़ने वाले आक्रमणकारी लूटरे के रूप में भारत आया। और फिर 25 नवंबर 1510 को वास्कोडिगामा के नेतृत्व में पुर्तगालियों नेभारत पर कब्ज़ा जमाया!*
*गोवा के आजादी हेतु 15 जुलाई 1583 को वहां के निवासीयों द्वारा पहला विद्रोह एवं 1788 से समय - समय पर छोटी-छोटी रियासतों एवं भारत भर के लोगों ने आजादी के लिए आंदोलन किए थे। 1940 से छोटे स्तर परअहिंसक सत्याग्रह आंदोलन भी प्रारंभ किया गया। पुर्तगाली सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ*
*18 जून 1946 को राम मनोहर लोहिया ने गोवा क्रांति की घोषणा की!*
*गोवा आजादी के लिये राजाभाऊ महाकाल,मधु लिमये,मोहन रानडे सहित हजारों सत्याग्रही ने अपना योगदान दिया है।*
*गोवा स्वतंत्रता आन्दोलन 02 अगस्त 1955 का दिन हमारे लिए कभी ना भूलने वाला दिन था।हम (गोपाल दास टीकमदास गुजराती बुरहानपुर एवं अशोक मोहन बनर्जी कलकता का निवासी )26 जुलाई 1955 को पुणे गए थे ।*
*पुणे केसरी कार्यालय में गोवा मुक्ति के लिए आने वाले अलग-अलग गांव, शहरो, राज्यों से 58 सत्याग्रही एकत्रित हुए थे। केसरी कार्यालय पुणे में हमें गोवा आजादी क्यों, कैसे ,किस बाबत जानकारी केसरी कार्यालय के पदाधिकारी सहित सभी राजनीतिक पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने दी । हमें बताया गया कि सत्याग्रह स्थल पर किसी पर हमला करना या मारना नहीं है। अपितु शांतिपूर्वक गोवा आजादी हेतु धरना आंदोलन चलाना है। साथ ही साथ पुलिस की मार लाठी,गोली से अपना सर एवं शरीर बचाना है। मध्य प्रदेश से सी.पी.एम.बरार नागपुर सहित 7 ,गुजरात प्रांत के 7,पश्चिम बंगाल के 7, मध्य भारत के 3 तथा मालाबार के 4 कुल 28 व्यक्तियों का एक दल तथा अन्य क्षेत्रों के 30 व्यक्तियों का दूसरा दल ट्रेन द्वारा पहले बेलगांव बाद में ट्रक द्वारा बेलगांव से सामंतवाड़ी वहां से बारांदरा होते हुए गोवा सीमा पर पहुंचे थे। हम पहले दल के 28 व्यक्तियों में से थे।हमारे दल का नेतृत्व श्री बाबूराव केशव थोरात चंद्रपुर महाराष्ट्र और महतोष नंदी पश्चिम बंगाल के द्वारा किया गया। जिनके हाथ में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा था । गोवा सीमा पर मूल रूप से गोवा निवासी गाईड दिया था। 2 अगस्त 1955 के दिन जितनी टुकड़िया गई थी उन सबके लीडर निरंजन शर्मा जम्मू कश्मीर थे। हमारी टुकड़ी के गोवा की सीमा में प्रवेश होते ही गोवा सीमा पर तैनात पुर्तगाली पुलिस द्वारा हमारे दल को रोका गया एवं राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मांगा गया हम सत्याग्रहीयों द्वारा जोश ,उत्साह आजादी की उमंग में राष्ट्रीय ध्वज गोवा की पुलिस को नहीं दिया गया।सभी सदस्यों ने श्री बाबूराव थोरात और श्री महतोष नंदी जिनके हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था।अपने सुरक्षा गोल घेरे के बीचों बीच में कर लिया। पुर्तगाली पुलिस से राष्ट्रीय ध्वज को छीनने से बचाने हेतु मानव श्रृंखला का एक बड़ा गोला घेरा तथा अंदर एक छोटा गोल घेरा बनाकर हम पुर्तगाली पुलिस से राष्ट्रीय ध्वज को बचाते हुए गोवा आजादी का नारा लगाते आगे बड़ने लगे। तभी झाड़ी के अंदर छिपे हुए पुर्तगाली पुलिस द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के धोखे से हमारे दल पर रायफलों एवं स्टेनगनों से गोली चालन कर दिया गया। एक गोली श्री महतोष नंदी के पैर में घुटने पर लगी उसके बाद गोली की बौछार में से एक गोली श्री बाबूराव थोरात के चेहरे पर लगी एवं उनका जबड़ा उड़ गया । सत्याग्रही गोपालदास गुजराती ने हिंदी एवं मराठी दोनों भाषा में समस्त साथियों को तुरंत जमीन पर लेट जाने को कहां । तभी एक गोली श्री कोथलकर की पीठ को छूकर निकल गई । एक गोली नित्यानंद शाह पश्चिम बंगाल के पेट से घुसकर पीठ के रास्ते सुराख करते आर- पार हो गई।इसके बाद भी गोवा की तत्कालीन पुलिस द्वारा किसी प्रकार की चिकित्सा सहायता नहीं दी गई और सत्याग्रहियों के बार-बार कहने पर भी जमीन पर ही लेटे रहते किसी भी प्रकार के शरीर में हरकत नहीं करने दी गई । इस दौरान सत्याग्रहीयो के 30 सदस्यों के दूसरे दल ने पुर्तगाली पुलिस चौकी पर कब्जा करके वहां पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लगा दिया।जम्मू कश्मीर राम राज्य परिषद के पांच तथा मुंबई लोकसत्ता पेपर के संपादक सहित 42 सदस्यों का तीसरा दल को बेलगांव, बारांदरा मार्ग में प्रवेश पर रोक लगाने के कारण कारवार मार्ग से प्रवेश कराया गया। उन्हें बताया गया की सीमा के अंदर प्रथम दल पर गोली चलाई गई है । इस तीसरे दल को पुर्तगाली पुलिस द्वारा रोका नहीं गया ।15 मिनट की बातचीत के पश्चात पुलिस अधिकारी द्वारा भारत सीमा की ओर वापस ले जाने का कहा गया। इसके बाद सारे सत्याग्रही भारत सीमा में 2 अगस्त 1955 को दोपहर 12:00 बजे के लगभग वापस आए। गोपालदास गुजराती घायल बाबूराव थोरात को कंधे पर लादकर भारतीय सीमा तक लाये ।भारतीय सीमा पर सुबह विदाई देने आये लोग वहीं पर मौजूद थे। उपलब्ध साधनों द्वारा घायल ,जख्मी सत्याग्रहियों को सावंतवाड़ी अस्पताल पहुंचाया। उपस्थित जनता में बहुत ज्यादा रोष पैदा हो गया था। अस्पताल में बाबूराव थोरात मृत घोषित कर दिए गए।महतोष नंदी बंगाल के पैर में लगी गोली निकाली गई। नित्यानंद शाह बंगाल का घाव देखते हुए उन्हें बेंगलुरु अस्पताल ले जाते समय वह रास्ते में मृत होकर शहीद हो गए । दोनों शहीदों की बेलगांव में अंतिम क्रिया 3 अगस्त को की गई। महतोष नंदी एवं कोथलकर का उपचार सावंतवाड़ी अस्पताल में किया गया। प्रत्येक दिन गोवा आजादी के लिए सत्याग्रह के कुल तीन दल भेजे जाते थे उस दिन का यह दल प्रथम होकर कुल 11 वे नंबर का दल था। प्रथम दल के शेष सदस्य अपने-अपने क्षेत्र वापस चले गये।*
*गोवा विमोचन मुक्ति समिति द्वारा स्वर्गीय बाबूराव थोरात के घर चंद्रपुर-महाराष्ट्र तथा नित्यानंद शाह पश्चिम बंगाल के यहां दो - दो व्यक्ति अस्थि कलश लेकर भेजे गए ।इस घटना का इतिहास गोवा सरकार द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों में दर्ज है ।इसके बाद भी दल भेजे जाते रहे। 15 अगस्त 1955 को सम्पूर्ण भारत से एकत्रित 4000 सत्याग्रहीयो का दल भेजा गया था।इस दल पर भी पुर्तगाली पुलिस द्वारा गोली चालन किये जाने के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोरारजी भाई देसाई की सरकार ने सत्याग्रहों के दल भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था । स्थानीय गोवा, दीव ,दमन क्षेत्र के लोग भी गोवा आजाद करने के प्रयास में काफी संख्या में मारे गए थे।पकड़े गये सत्याग्रही को काफी तो अमानवीय यातनाऐं दी जाती थी। मारे जाने एवं अमानवीय यातनाओ के कारण यह आंदोलन कमजोर हो गया था। भारत में कांग्रेस की सरकार होने से गोवा ,दमन ,दीव के लोगों ने अन्य पार्टीयों से भारतीय जनता का सहयोग मांगा था ।जिस कारण समस्त विपक्षी पार्टियों ने सहयोग का आश्वासन देकर सत्याग्रह आंदोलन में सहयोग किया था।भारत सरकार की ओर से प्रतिबंध के पश्चात भी सन 1956 तक सत्याग्रह चलता रहा ।गोवा की पुर्तगाली पुलिस द्वारा सत्याग्रहीयो के सिर में बेत एवं लाठियां मारे जाने से कई लोग ब्रेन हेमरेज का शिकार होकर शहीद हो गए। अनेकों के हाथ एवं पैरों में चोटे आई।जीवित पकड़े गए सत्याग्रही को माचिस की जलती तीली से चटके लगाए गए। अनेकों सत्याग्रहीयो की आंखें फोड़ दी गई। विभिन्न प्रकार से यातना देकर अत्याचार किया गया ।गोवा पुलिस द्वारा सत्याग्रही को पकड़ना पुलिस अभीरक्षा में रखना पुलिस अधिकारी द्वारा सजा सुनाना इसके बाद ट्रक में बैठा कर पुर्तगाली पुलिस द्वारा चलते ट्रक से सत्याग्रहीयो के हाथ पैर पकड़कर ,लात मार कर सीमा पर धक्का दे देना सजा के तौर तरीके थे। इस आंदोलन के चलते अत्याचारों की घटनाओ को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 17-18-19 दिसंबर 1961 को थल सेना, वायुसेना की संयुक्त सैनिक कार्रवाई द्वारा 451 वर्ष के पुर्तगाली शासन का अंत करते हुए गोवा को आजाद कराया।
यह संक्षिप्त जानकारी स्वयं गोपालदास टीकम दास गुजराती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोवा मुक्ति सेनानी बुरहानपुर द्वारा हस्तलिखित होकर परिवारजन से प्राप्त है!
गोवा को भगवान परशुराम की भूमि माना जाता है।
गोवा आजाद के पश्चात् केंद्र शासित प्रदेश होकर 30 मई 1987 को भारत का 25 वां राज्य बना।

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