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आर्थिक असमानता लोकतंत्र को कमजोर कर रही है: अभिषेक गोयल एडवोकेट

खतौली। देश में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए समाजसेवी एवं अधिवक्ता अभिषेक गोयल ने रविवार को एक विस्तृत प्रेस बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि नवीनतम वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 के आंकड़े भारत में आर्थिक असंतुलन की भयावह तस्वीर पेश करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के सबसे अधिक असमानता वाले देशों में शामिल है, जहां देश की कुल संपत्ति का लगभग 65 प्रतिशत और कुल आय का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा केवल शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास सिमटा हुआ है, जबकि देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी को मात्र 15 प्रतिशत आय पर ही संतोष करना पड़ रहा है। अभिषेक गोयल ने कहा कि संपत्ति और आय का इस तरह कुछ ही हाथों में केंद्रित होना सामाजिक विभाजन को गहरा करता है और गरीबी को स्थायी रूप देने का काम करता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि आर्थिक असमानता लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती है, समाज में असंतोष और अस्थिरता को जन्म देती है तथा विकास की गति को भी प्रभावित करती है। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक ताने-बाने के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि भले ही देश में तीव्र आर्थिक विकास की बात की जा रही हो, लेकिन इसका लाभ समाज के निचले तबके तक नहीं पहुंच पा रहा है। निम्न आय वर्ग के लोगों को आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके चलते उनकी प्रतिभा और क्षमता का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। यह स्थिति किसी प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम नहीं, बल्कि नीतिगत खामियों, एकाधिकार और मुनाफाखोरी जैसी प्रवृत्तियों का नतीजा है, जिन्हें मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरिए सुधारा जा सकता है। प्रेस बयान में उन्होंने कर व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि देश में करों का बोझ अपेक्षाकृत गरीब और मध्यम वर्ग पर अधिक है। जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा निचले 50 प्रतिशत लोगों से आता है, जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत वर्ग का योगदान अपेक्षाकृत कम है। यह व्यवस्था असमानता को और बढ़ाने का काम कर रही है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातकों के लिए भी सम्मानजनक रोजगार के अवसर सीमित होते जा रहे हैं, जिससे आय का अंतर और अधिक गहराता जा रहा है। अभिषेक गोयल ने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बेहद कम है, जिसके कारण निजी स्वास्थ्य सेवाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। इसका नतीजा यह है कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा अब आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है और अमीरों के लिए एक तरह की विलासिता बन गई है। गरीब और निम्न मध्यम वर्ग को इलाज के लिए या तो कर्ज लेना पड़ता है या फिर वे इलाज से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में आर्थिक असमानता आज एक बड़ी राष्ट्रीय चुनौती बन चुकी है, जिसे वैश्विक रिपोर्टें बार-बार उजागर कर रही हैं। सरकार को चाहिए कि वह केवल आंकड़ों तक सीमित न रहकर ठोस कदम उठाए। कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने, सार्वजनिक खर्च बढ़ाने और संरचनात्मक सुधारों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिल सकें और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके। अभिषेक गोयल ने मध्यम वर्ग की स्थिति पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अवसरों की कमी, बेरोजगारी और लगातार बढ़ती महंगाई के कारण मध्यम वर्ग धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है। वहीं, महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी लगभग 15.7 प्रतिशत के आसपास बनी हुई है, जो देश के आर्थिक सशक्तिकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक विकास के बावजूद युवाओं के लिए स्थायी और सम्मानजनक रोजगार की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आधुनिक तकनीक तक पहुंच की कमी के कारण ग्रामीण और गरीब आबादी विकास की दौड़ में पीछे छूट रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में गरीब परिवार गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। देश की एक बड़ी आबादी अब भी पिछड़ी कृषि प्रणालियों पर निर्भर है, जहां आय बेहद कम है और जोखिम अधिक। अंत में उन्होंने विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि इस बढ़ती खाई को पाटने के लिए शिक्षा और कौशल विकास में बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। साथ ही मैन्युफैक्चरिंग जैसे अधिक रोजगार सृजन करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा देना, छोटे और मध्यम उद्योगों को मजबूत करना और अमीरों पर “सुपर टैक्स” जैसे प्रगतिशील कराधान उपाय अपनाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आर्थिक असमानता देश की सामाजिक स्थिरता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।

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