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प्रकृति का नियम परिवर्तन


परिवर्तन इस संसार का शाश्वत सत्य है। कोई भोर ऐसी नहीं जिसकी संध्या ना हो और कोई संध्या ऐसी भी नहीं जिसकी भोर ना हो। यहाँ कोई रात ऐसी नहीं जिसके गर्भ से प्रभात का जन्म ना हो।

हम उन वस्तुओं को सँभालने के प्रयास में लगे हैं जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती। हमारी अवस्था भी नित्य बदल रही है। जैसे हम कल थे वैसे आज नहीं हैं और जैसे आज हैं वैसे कल नहीं रहेंगे।

जीवन बड़ा अनिश्चित है इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो शीघ्र कर लेना। मानव मस्तिष्क के विचार भी प्रतिक्षण बदल रहे हैं। सदैव नयें विचार, नयें उद्देश्य, नईं प्रतिस्पर्धाएं जन्म ले रही हैं।

तुम स्वयं अपने भीतर हो रहे परिवर्तन के साक्षी हो। नवीनता के लिए जीवन का परिवर्तन भी आवश्यक हो जाता है। जब तक पुराना नहीं जाता तब तक कुछ नयें आने की संभावना भी नहीं के बराबर है। आज का पतझड़ ही कल का बसंत भी है!

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