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मिथिला संस्कृति एक सांस्कृतिक पहचान ।

"जनकनंदिनी की पावन भूमि, जहाँ कला ने लिया आकार,
मधुबनी की तूलिका बोले, संस्कृति का मधुर सार"


बिहार के उत्तरी भाग में स्थित मिथिला क्षेत्र,(विशेषकर दरभंगा,मधुबनी,समस्तीपुर)जिसे प्राचीन काल में विदेह के नाम से जाना जाता था, केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का एक जीवंत, अद्वितीय और मधुर केंद्र है। माता सीता की जन्मभूमि होने के कारण यह भूमि अत्यंत पवित्र मानी जाती है। मिथिला की संस्कृति अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण पूरे विश्व में एक खास स्थान रखती है ।
मिथिला संस्कृति की सुंदरता उसकी कला, दर्शन और जीवन-शैली में गहराई से समाई हुई है, जो इसे अन्य संस्कृतियों से विशिष्ट बनाती है:


1. विश्व प्रसिद्ध पहचान:-मिथिला (मधुबनी) पेंटिंग इसकी सबसे बड़ी पहचान है। यह कला शैली मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाई गई है।

2. कला का आधार:-इन चित्रों में प्रकृति, देवी-देवताओं (जैसे राम-सीता, राधा-कृष्ण), लोक कथाओं और दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाया जाता है। ये पेंटिंग प्राकृतिक रंगों (हल्दी, चावल का पेस्ट, नील, सिंदूर आदि) और बाँस की कूची का उपयोग करके बनाई जाती हैं।
3. दार्शनिक गहराई:-ये पेंटिंग केवल सजावट नहीं हैं, बल्कि ये धार्मिक अनुष्ठानों और महत्वपूर्ण अवसरों का हिस्सा होती हैं, जो श्रद्धा और भक्ति को प्रदर्शित करती हैं।
4. विद्वानों की भूमि:-यह भूमि महान कवि विद्यापति, दार्शनिक याज्ञवल्क्य, और मंडल मिश्र जैसे विद्वानों की कर्मभूमि रही है।
5. मैथिली भाषा:-यहाँ की बोली "मैथिली" है, जो अपनी मधुरता और समृद्ध साहित्य के लिए जानी जाती है। विद्यापति की रचनाएँ (जैसे पदावली) आज भी मैथिली साहित्य का गौरव हैं।
6. न्याय दर्शन का केंद्र:-मिथिला ने भारतीय दर्शन के क्षेत्र में विशेष रूप से न्याय दर्शन को महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
7. सात्विक और स्वादिष्ट:-मिथिला का खान-पान अत्यंत स्वादिष्ट और आमतौर पर सात्विक होता है।
8. खास व्यंजन:-यहाँ के "मखाने" (फॉक्स नट्स) विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें जीआई टैग भी प्राप्त है। "माछ-भात" (मछली और चावल), "दही-चूड़ा", "तिलकोर के पकौड़े", और "अचार" (विशेष रूप से आम और नींबू का) यहाँ के खास पकवान हैं।


मिथिला संस्कृति को एक "अद्वितीय पहचान" देने वाली सबसे खास बातें हैं:

नारी शक्ति का सम्मान:-यह संस्कृति "सीता" की भूमि होने के कारण महिलाओं को अत्यंत उच्च स्थान देती है। मिथिला पेंटिंग का महिलाओं द्वारा विकसित होना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ विवाह और अन्य अनुष्ठानों में महिलाओं की भूमिका केंद्रीय होती है।

यहाँ के पर्व-त्योहारों में "मांगने की प्रथा" (जैसे सामा-चकेवा में भाई से माँगना) है, जो समाज के हर वर्ग को उत्सवों में शामिल करने की एक अनोखी सामाजिक समरसता दर्शाती है।

अद्वितीय पर्व-त्योहार "जुड़-शीतल" (नए साल का त्योहार, शीतलता का महत्व), "मधुश्रावणी" (नवविवाहितों का त्योहार), सामा-चकेवा (भाई-बहन का त्योहार) जैसे पर्व, अन्य भारतीय क्षेत्रों से पूरी तरह अलग और विशिष्ट हैं।

सरलता और मिठास मिथिला के लोगों की बोली और व्यवहार में एक सहज "सरलता और मिठास" होती है। 'पान' यहाँ की संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो आतिथ्य और प्रेम का प्रतीक है। |

'पाग' (मिथिला की पगड़ी) और 'दोपटा' यहाँ के पारंपरिक वेशभूषा का हिस्सा है,

मिथिला संस्कृति परंपरा और कला का एक अद्भुत संगम है। इसकी पहचान केवल पेंटिंग या पाक कला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरल जीवन, उच्च विचार, नारी सम्मान और अटूट भक्ति के मूल्यों पर आधारित है। यह हमें सिखाती है कि कैसे सादगी, कलात्मकता और दार्शनिक गहराई से जीवन को सुंदर और सार्थक बनाया जा सकता है।

"ई सब जाने के लेले अन्हा एक बेर मिथिला के धरती पर आऊ, अन्हा के स्वागत अईछ"

मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT

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