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पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी बिल’ : जिसे कभी विफलता का स्मारक कहा गया, उसी के सहारे अब सफलता की खोज

✍️ हरिदयाल तिवारी

केंद्र सरकार संसद के आगामी सत्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी बिल’ करने से संबंधित एक नया विधेयक पेश करने की तैयारी में है। यह प्रस्ताव ऐसे समय सामने आ रहा है, जब वही योजना, जिसे कुछ वर्ष पहले तक “विफलता का स्मारक” कहकर उपहास का विषय बनाया गया था, आज ग्रामीण भारत में सरकार की नीतिगत सफलता की सबसे मजबूत आधारशिला मानी जा रही है।

मनरेगा की शुरुआत वर्ष 2005 में ग्रामीण बेरोजगारी से निपटने और गरीब परिवारों को न्यूनतम आय सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। यह योजना केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि कानून के रूप में ग्रामीण नागरिकों को रोजगार का अधिकार देने का प्रयोग थी। शुरुआती दौर में इस योजना ने लाखों परिवारों को सहारा दिया, गांवों में क्रयशक्ति बढ़ाई और स्थानीय स्तर पर परिसंपत्तियों के निर्माण में योगदान दिया।

हालांकि, सत्ता परिवर्तन के बाद मनरेगा को लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण में तीखा बदलाव देखने को मिला। कई वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से इसे पिछली सरकार की नाकामी का प्रतीक बताया। कभी इसे भ्रष्टाचार से जोड़ा गया, तो कभी यह कहा गया कि यह योजना ग्रामीणों को काम के बजाय “मुफ्त की आदत” डाल रही है। संसद से लेकर चुनावी रैलियों तक मनरेगा आलोचना का स्थायी विषय बना रहा।

लेकिन समय ने करवट ली।
कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की जड़ों को हिला दिया। शहरों में रोजगार खत्म हुआ, उद्योग बंद हुए और करोड़ों प्रवासी मजदूर गांवों की ओर लौटे। उस अभूतपूर्व संकट के समय मनरेगा ही एकमात्र ऐसा ढांचा साबित हुआ, जो तुरंत सक्रिय किया जा सकता था। रिकॉर्ड संख्या में ग्रामीणों ने काम की मांग की और सरकार को मजबूरन बजट आवंटन बढ़ाना पड़ा। जिस योजना को खत्म करने की बातें होती थीं, वही योजना ग्रामीण भारत की जीवनरेखा बन गई।

यहीं से मनरेगा के प्रति सरकारी भाषा और दृष्टिकोण में बदलाव साफ दिखाई देने लगा। अब इसे “ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सुरक्षा कवच” कहा जाने लगा। प्रस्तावित नाम परिवर्तन को भी इसी बदले हुए संदर्भ में देखा जा रहा है। सरकार का कहना है कि महात्मा गांधी केवल किसी योजना का नाम नहीं, बल्कि श्रम की गरिमा, स्वावलंबन और ग्राम स्वराज के प्रतीक हैं। ‘पूज्य बापू’ नाम जोड़कर योजना को गांधीवादी विचारधारा से और अधिक मजबूती से जोड़ा जाएगा।

सरकार समर्थक इसे वैचारिक पुनर्परिभाषा मान रहे हैं। उनका तर्क है कि योजना की आत्मा को सही सम्मान देना आवश्यक है और नाम परिवर्तन उसी दिशा में एक कदम है। साथ ही यह भी संकेत दिए जा रहे हैं कि नए बिल के तहत कार्यों की गुणवत्ता, डिजिटल निगरानी और परिसंपत्ति निर्माण पर विशेष जोर दिया जाएगा।

वहीं विपक्ष इस कदम को राजनीतिक अवसरवाद का उदाहरण बता रहा है। उनका कहना है कि नाम बदलने से जमीनी सच्चाई नहीं बदलती। आज भी कई राज्यों में मजदूरी भुगतान में देरी, कम मजदूरी दर और पर्याप्त काम की कमी जैसे मुद्दे बने हुए हैं। विपक्ष यह सवाल भी उठा रहा है कि जिन नेताओं ने कभी मनरेगा को “विफलता का स्मारक” कहा था, वे आज उसी योजना को गांधी के नाम से जोड़ने में संकोच क्यों नहीं कर रहे।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बदलाव सरकार की व्यावहारिक स्वीकारोक्ति को दर्शाता है। ग्रामीण भारत में मनरेगा की पहुंच और लोकप्रियता इतनी व्यापक है कि उसे पूरी तरह नकारना अब संभव नहीं। चुनावी राजनीति में भी ग्रामीण मतदाता की भूमिका निर्णायक होती जा रही है। ऐसे में मनरेगा जैसे कार्यक्रम से दूरी बनाना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है।

यह भी उल्लेखनीय है कि मनरेगा केवल रोजगार योजना नहीं रह गई है। जल संरक्षण, सड़क निर्माण, तालाब खुदाई और भूमि सुधार जैसे कार्यों के माध्यम से इसने ग्रामीण बुनियादी ढांचे को भी मजबूत किया है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि मनरेगा ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पलायन को कम करने में भूमिका निभाई है।

फिर भी मूल प्रश्न बना हुआ है—क्या नाम परिवर्तन के साथ नीति में भी वास्तविक सुधार होंगे? या यह कदम केवल प्रतीकात्मक रहेगा? ग्रामीण भारत को नाम से अधिक समय पर काम, उचित मजदूरी और सम्मानजनक जीवन की आवश्यकता है।

मनरेगा से ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी बिल’ तक की यह यात्रा भारतीय राजनीति के उस अंतर्विरोध को उजागर करती है, जहां एक ही नीति समय के साथ आलोचना, उपेक्षा और अंततः स्वीकार्यता के दौर से गुजरती है। जिसे कभी विफलता का स्मारक कहा गया, वही आज सफलता की खोज का माध्यम बन रहा है।

अब निगाहें संसद की बहस पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि यह बदलाव केवल शब्दों तक सीमित रहेगा या वास्तव में ग्रामीण भारत के जीवन में कोई ठोस, दूरगामी परिवर्तन लेकर आएगा।

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