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प्रतिभाशाली बाल लेखक पार्थ को ‘वैदिक रामानुज वार्षिकी सम्मान 2025’, साहित्य और कला के क्षेत्र में कम उम्र में रचा इतिहास


चंडीगढ़/हरिद्वार। प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती—इस कथन को चंडीगढ़ स्थित चितकारा इंटरनेशनल स्कूल के कक्षा आठ के छात्र पार्थ ने अपने सृजनात्मक कौशल और निरंतर मेहनत से सार्थक कर दिखाया है। एक विलक्षण बाल लेखक, चित्रकार और नवोदित साहित्यकार के रूप में पार्थ ने बहुत कम आयु में वह मुकाम हासिल किया है, जिसकी कल्पना बड़े-बड़े रचनाकार वर्षों की साधना के बाद करते हैं। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए पार्थ को हाल ही में देश के प्रतिष्ठित मंच पर सम्मानित किया गया, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी रचनात्मक प्रतिभा को विशेष पहचान मिली है। दिनांक 7 दिसंबर 2025 को देवभूमि उत्तराखंड की पावन नगरी हरिद्वार में वैदिक प्रकाशन द्वारा आयोजित भव्य साहित्यिक सम्मान समारोह में पार्थ को ‘वैदिक रामानुज वार्षिकी सम्मान 2025’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें एक उत्कृष्ट बाल लेखक के रूप में हिंदी साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान, सृजनात्मक सोच, भावनात्मक अभिव्यक्ति और भाषा पर मजबूत पकड़ के लिए प्रदान किया गया। समारोह में देशभर से आए ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों, शिक्षाविदों, लेखकों और कला-संस्कृति से जुड़े गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को और भी गरिमामय बना दिया। समारोह के दौरान वक्ताओं ने पार्थ की लेखन प्रतिभा की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुए कहा कि आज के डिजिटल युग में जब बच्चे मोबाइल और तकनीक में अधिक उलझे रहते हैं, ऐसे समय में पार्थ जैसे बाल लेखक नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक संवेदना, बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ और सकारात्मक सोच स्पष्ट रूप से झलकती है। पार्थ की उपलब्धियाँ केवल राष्ट्रीय मंच तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है। जापान से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बाल पत्रिका ‘हीमावारी’ द्वारा उन्हें दो विशिष्ट सम्मानों—‘बाल चित्रकार सम्मान’ एवं ‘हीमावारी सूरजमुखी सम्मान’—से सम्मानित किया जा चुका है। यह सम्मान इस बात का प्रमाण हैं कि पार्थ की रचनात्मक सोच भाषा और सीमाओं से परे जाकर वैश्विक स्तर पर भी सराही जा रही है। लेखन के साथ-साथ चित्रकला में उनकी दक्षता उन्हें एक बहुआयामी प्रतिभा के रूप में स्थापित करती है। साहित्यिक जगत में पार्थ की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि उस समय सामने आई जब विशिष्ट संकलन ‘अग्रणी’ को उसकी अनूठी अवधारणा और साहित्यिक गुणवत्ता के कारण एक विश्व रिकॉर्ड में स्थान मिला। इस प्रतिष्ठित संकलन में पार्थ की रचनाओं का शामिल होना उनके लेखन स्तर, विचारों की परिपक्वता और सृजनात्मक क्षमता का जीवंत प्रमाण है। इतनी कम उम्र में विश्व रिकॉर्ड से जुड़ा होना किसी भी रचनाकार के लिए गर्व का विषय माना जाता है। अपनी इस ऐतिहासिक सफलता पर पार्थ ने पूरी विनम्रता के साथ इसका श्रेय अपने परिवार को दिया, जिनके निरंतर सहयोग, प्रोत्साहन और विश्वास ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने अपने विद्यालय चितकारा इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंधन, प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों का भी आभार व्यक्त किया, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और हर कदम पर उन्हें मार्गदर्शन प्रदान किया। विद्यालय के सकारात्मक शैक्षणिक वातावरण और साहित्यिक गतिविधियों ने पार्थ की रचनात्मक यात्रा को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। इसके अतिरिक्त पार्थ ने वैदिक प्रकाशन की संस्थापिका एवं प्रकाशिका आदरणीया प्रशस्ति सचदेव जी का विशेष रूप से धन्यवाद किया, जिनके प्रयासों से उन्हें प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच प्राप्त हुआ। साथ ही ‘हिंदी की गूँज’ की संस्थापिका आदरणीया डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा मैम के प्रति भी उन्होंने कृतज्ञता व्यक्त की, जिनके मार्गदर्शन, प्रेरणा और स्नेह ने पार्थ के साहित्यिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साहित्यप्रेमियों और शिक्षाविदों का मानना है कि पार्थ जैसे बाल रचनाकार आज की पीढ़ी में रचनात्मकता, संवेदना और भाषा के प्रति प्रेम को जीवित रखने का कार्य कर रहे हैं। उनकी सफलता यह संदेश देती है कि यदि बच्चों को सही दिशा, प्रोत्साहन और मंच मिले, तो वे न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश का नाम रोशन कर सकते हैं। पार्थ की यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार और विद्यालय के लिए गर्व का विषय है, बल्कि समूचे साहित्यिक समाज के लिए भी आशा की किरण है। आने वाले समय में उनसे और भी उत्कृष्ट रचनाओं की उम्मीद की जा रही है, जो निश्चित रूप से हिंदी साहित्य और बाल साहित्य को नई ऊँचाइयों तक ले जाएँगी।

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