
चार एकड़ से शुरू हुई मेहनत की कहानी: कीरतपुर आज बना 13 एकड़ में फैला मत्स्य उत्पादन का बड़ा केंद्र
कभी महज चार एकड़ के छोटे तालाब से शुरू हुई कीरतपुर गांव की यात्रा आज तरक्की की मिसाल बन गई है। गांव में आठ बड़े तालाब न केवल मत्स्य उत्पादन का केंद्र बने हैं, बल्कि यह मेहनत और निरंतर प्रयासों की प्रेरक कहानी भी बयां करते हैं। यहां मछली पालन को व्यवसाय नहीं, बल्कि रोजमर्रा की साधना के रूप में अपनाया गया, जिसने एक साधारण गांव को जिले के सबसे बड़े मत्स्य उत्पादन क्षेत्रों में बदल दिया।
13 एकड़ में फैले इन तालाबों में मत्स्य उत्पादक मलखान सिंह रोहू, कतला, पंगेसियस और ग्रास कार्प जैसी प्रजातियों का उत्पादन करते हैं। हर वर्ष लगभग दो हजार क्विंटल मछली अलग–अलग बाजारों में भेजी जाती है, जो जिले की कुल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा है।
गांव में इस कार्य से रोजगार भी पैदा हुआ है। चार स्थानीय लोग पूरे साल तालाबों की देखरेख में लगे रहते हैं। चारा, श्रम और रखरखाव पर 70–80 लाख रुपये सालाना निवेश होता है, जबकि इससे 20–25 लाख रुपये की शुद्ध आय प्राप्त होती है। खास बात यह है कि व्यापारियों के गांव तक पहुंच जाने से परिवहन और बिचौलियों का खर्च बच जाता है।
1986 में शुरू हुआ सफर, आज बनी मिसाल
कीरतपुर में मत्स्य पालन की शुरुआत 1986 में चार एकड़ के तालाब से हुई थी। उस समय मछली 20 रुपये किलो बिकती थी, जबकि आज यह 95 से 150 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। तालाबों के विस्तार, बेहतर प्रजातियों और तकनीक के उपयोग ने गांव को बड़े उत्पादन केंद्र में बदल दिया।
सर्दी में चुनौती बनता तापमान
सर्द मौसम में तालाबों का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाना मछलियों के लिए घातक हो सकता है। इसलिए रात के समय तालाबों में ताजा पानी छोड़कर तापमान नियंत्रित किया जाता है, जिससे अतिरिक्त मेहनत और खर्च बढ़ जाता है, लेकिन उत्पादन की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक कदम है।
“39 साल की मेहनत रंग ला रही है” — मलखान सिंह
मलखान सिंह बताते हैं कि चार दशक पहले उन्होंने चार एकड़ भूमि में तालाब बनाकर शुरुआत की थी। आज की सफलता वर्षों की मेहनत और धैर्य का परिणाम है।
“किसानों के लिए प्रेरक मॉडल” — संजय छिम्वाल
सहायक निदेशक मत्स्य संजय छिम्वाल का कहना है कि मलखान सिंह जिले के सबसे बड़े मछली उत्पादक हैं और उनका प्रयास दिखाता है कि योजनाओं और तकनीकी सहायता के साथ ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी आर्थिक गतिविधि विकसित की जा सकती है। यह मॉडल अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणादायक है।