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वेदों का संदेश—सुख-दुख का सत्य और धर्म जागरण का उदय:_स्वामी ज्योतिर्मयानंद

बेमेतरा/छत्तीसगढ़ 10 दिसंबर 2025।
कृषि उपज मंडी परिसर में चल रहे सुबह से शाम तक भक्तिमय गौ-यज्ञ और शिव महापुराण ज्ञानामृत धार्मिक आयोजन में प्रतिदिन आस्था और अध्यात्म संगम देखने को मिल रहा है। 6 से 14 दिसंबर तक चल रहे इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्वामी ज्योतिर्मयानंद सरस्वती जी के दिव्य प्रवचनों का लाभ ले रहे हैं। स्वामी जी आज के प्रवचन में जीवन के मूल प्रश्न—
सुख और दुख—के वेदसम्मत अर्थ को सरल भाषा में समझाया।

आज मनुष्य का जीवन दुख और सुख की दो राहों पर खड़ी है जहां तय नहीं हो पाता हम किधर चलें।इलाके लिऐ सर्वोत्तम उपाय है वेद वेदों की ओर चलें।

स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी ने कहा कि वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि “अनुकूल वेद नियम सुखम्, प्रतिकूल वेद नियम दुखम्।” अर्थात जब मनुष्य वेदों के अनुकूल आचरण करता है, तो जीवन में सुख की प्राप्ति होती है, और वेद-विरुद्ध आचरण करने पर दुख अनिवार्य रूप से आता है। वेदों के अनुसार सुख एक अनुकूल क्षण है, जबकि दुख प्रतिकूल क्षण है, और दोनों ही मनुष्य के कर्म और धर्माचरण से जुड़े हैं। स्वामी जी ने कहा कि दुख से मुक्ति का मार्ग भी धर्मशास्त्रों में पूर्ण रूप से वर्णित है_
धर्म पालन, सत्य, यज्ञ, सेवा और सदाचार ही दुःख निवारण के वास्तविक साधन हैं।

वेद—समस्त मानवता के लिए
स्वामी जी ने अपने प्रवचन में यह भी कहा कि वेद किसी एक व्यक्ति, वर्ग या जाति के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए हैं। वेद मानव धर्म का सार्वभौमिक मार्गदर्शन करते हैं और जीवन को संतुलित, शांत और सार्थक बनाने का पवित्र संदेश देते हैं।

धर्म जागरण का नया युग
जनचौपाल-36 के संपादकीय स्वर में स्वामी जी के प्रवचनों की सारगर्भित पंक्तियाँ हमें भारत के धर्म-जागरण की याद दिलाती हैं। वह समय जब विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी संस्कृति संकट में थी, तब राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती और विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने देश में धार्मिक चेतना जगाई और समाज को नए धर्म, नए कर्म और नए आत्मविश्वास की राह दिखाई।

आज का यह धार्मिक आयोजन उसी जागृति की पुनरावृत्ति जैसा प्रतीत होता है। वेद-धर्म न केवल अध्यात्म का आधार है, बल्कि यह देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक स्वाभिमान का भी संरक्षक है। धर्म और वेद-पथ पर चलकर ही मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है—यही संदेश स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी ने श्रद्धालुओं को प्रदान किया।

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