
कंटकारी (छोटी कटेरी)
Solanum xanthocarpum
पंचांग आधारित औषधि-रचना
🌿 भाग 111 —
कंटकारी (छोटी कटेरी)
Solanum xanthocarpum
पंचांग आधारित औषधि-रचना
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छंद — 1 : कंटीली परंतु औषधि-मणि
कंटकारी वन की रानी—कंटक-बद्ध पर सुविचार,
छोटी कटेरी की झाड़ियों में—छिपा अमृत का भंडार।
वात-कफ शमन में प्रथम द्रव्य—चरक सूची का मान,
आयुर्वेद-अग्रणी यह वनस्पति—रोगों का उत्थान।
कांटे इसके जैसे प्रहरी—औषधि-रक्षा में तत्पर,
पीत-पुष्प, नीले फल लेकर—तन-मन को करें सुस्थिर।
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छंद — 2 : पत्ती का गुण — कफ-वात शांत
पत्ती कंटकारी की तीक्ष्ण—कफ-दोष को झट हर लेती,
वात-बाधा, जकड़न, दर्द—क्षण में शांति दे देती।
छाती में जमती बलगम को—इसके रस से राह मिले,
सांसों की गति सुधर जाती—श्वास तंत्र के द्वार खुले।
ज्वर-दाह में पत्ती-लेप—चर्म-विकार हर लाता,
वन-औषधि का यह अंश भी—सत्व का दीप जलाता।
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छंद — 3 : फूल — सूक्ष्म पर तीक्ष्ण प्रभाव
पीत रंग के छोटे पुष्प—औषधि-तेज के दूत,
कफ-श्वास-विकारों में यह—अति उत्तम उत्तम कृत।
फूलों का क्वाथ बनाकर—श्वास नलिकाएँ स्वच्छ हों,
गले की खराश, कंठ-शूल—क्षण में शांत विलोप हों।
ज्वर-रोध, बल-वृद्धि में—सूक्ष्म पर प्रभाव बड़ा,
वन-वन में यह पुष्प कली—रोग-अंधेरा दूर करे खड़ा।
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छंद — 4 : फल — कटु-तीक्ष्ण और रोग-निवारक
नील-कृष्ण छोटे फल इसके—कफ-दमन में श्रेष्ठ,
अस्थमा, खांसी, श्वास-रोग में—फल-चूर्ण बने विशेष।
उदर-दोष, कृमि-विकार—फल-रस खटक से हट जाए,
अग्नि-दीपन, पाचन-वृद्धि—रोग-द्वार स्वयं बंद हो जाए।
फल की तीक्ष्णता अमृत-सी—मधुर नहीं, पर गुण भारी,
वन-मातृ की इस देन में—जीवन-शक्ति है न्यारी।
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छंद — 5 : जड़ — श्वास और प्रतिरक्षा की धुरी
जड़ कंटकारी की मुख्य—अस्थमा-रोधक सर्वोत्तम,
बलगम-स्फीत छाती में—जड़-रस बनता संजीवतम्।
ब्रोंकाइटिस, जुकाम-ज्वर—सबमें यह प्रथम उपचार,
अवरोधित श्वास-मार्गों में—नयी वायु का संचार।
जड़ में तत्व एंटीऑक्सीडेंट—प्रतिरक्षा को दृढ़ कर जाए,
रोगों की भीड़ उतर जाती—जब वन-शक्ति साथ आए।
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छंद — 6 : तना — तीक्ष्णता और पाचन-दीपक गुण
तना इसका कटु-स्वभाव—कफ-पित्त का संतुलन धरे,
पेट-सूजन, भारीपन में—काढ़ा बन रोगों को करे परे।
वात-जन्य वेदनाओं में—तना-स्वरूप हितकारक,
मांसपेशी-जकड़न दूर करे—वन-रस बनकर तारक।
तना जैसे औषधि-स्तंभ—तन-धरा को आधार दे,
पंचांग में इसका महत्व—अति ऊँचा, अमर अदे।
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छंद — 7 : बीज — कृमिघ्न और अग्नि-प्रदीपन
बीज कंटकारी के सूक्ष्म—पर गुणों में दृढ़ प्रहार,
कृमि-दोष और पेट-रोगों में—यह करता सीधा वार।
बीज चूर्ण से अग्नि जगे—भोजन पचे सहज,
उदर-शूल, अपचन, उलझन—सब हों शांत निःसंदेह।
रक्त-शुद्धि में बीज-प्रभाव—सुक्ष्म रंध्रों तक जाए,
वन-दत्त यह बीज अमृत बन—तन को संतुलित कर जाए।
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छंद — 8 : संपूर्ण पंचांग — रोग-शमन का बल
पत्ती कफ-दमन करे, फूल—श्वास-पथ को स्वच्छ,
फल गाढ़े कफ को काटे—जड़ दे जीवन-रक्षा सख्त।
तना दीपक-अग्नि बढ़ाए—बीज कृमि का शमन,
पंचांग से कंटकारी बनती—वन-आयुर्वेद का नंदन।
प्रतिरक्षा-बल, पाचन-धर्म—सबमें श्रेष्ठ प्रमाण,
पर्यावरण को भी यह शुद्ध करे—धरा बने कल्याण।
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डिस्क्लेमर:
यह रचना कवि 🖌️🖌️ सुरेश पटेल सुरेश की मौलिक छंद-शैली कृति है; इसके भाव, विचार एवं प्रस्तुति पूर्णत: लेखक के स्वत्वाधिकार में सुरक्षित हैं।
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