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“नांदेड़ मर्डर केस: जब प्यार हारा, और जातिवादी पाखंड की क्रूर जीत हुई — समाज के हर तबके को हिला देने वाली सच्चाई”

“नांदेड़ मर्डर केस: जब प्यार हारा, और जातिवादी पाखंड की क्रूर जीत हुई — समाज के हर तबके को हिला देने वाली सच्चाई” क्या यही है तथाकथित अम्बेडकरवादियों का समतामूलक चेहरा:-

✍️ डॉ. महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल की कलम से

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में 22 वर्षीय सक्षम ताटे की हत्या ने पूरे समाज के सामने एक बड़ा और कड़वा सवाल खड़ा कर दिया है।तीन वर्षों से चल रहे प्रेम संबंध को सिर्फ जाति की दीवार ने निगल लिया। 20 वर्षीय आंचल ममिलवार और उसके प्रेमी सक्षम ने कोर्ट मैरिज का निर्णय लिया था—लेकिन आंचल के परिवार ने इसे “जाति पर हमला” मानकर प्रेमी की बेरहमी से हत्या कर दी।
हत्या के तरीके ने सभ्यता का हर नकाब उतार दिया—पहले पीटा, फिर सीने में गोली मारी, और अंत में पत्थरों से सिर कुचल दिया।लेकिन समाज को झकझोर देने वाली असली तस्वीर तब सामने आई,
जब आंचल अपने मृत प्रेमी के शव के पास पहुँची,उसने उसी शव के साथ शादी की रस्में निभाईं—मंगलसूत्र पहना, मांग में सिंदूर भरा और कहा—“जिंदा हो या मुर्दा… आज से मैं तुम्हारी विधवा हूँ।”

जातिवादी पाखंड की पोल खोलती यह हत्या : यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं,यह उस मानसिकता का पर्दाफाश है जो दिन में समानता, न्याय और संविधान की बातें करती हैऔर रात में अपनी ही जाति के नाम पर किसी की जान लेने में हिचकिचाती नहीं।आज सवाल किसी एक समाज पर नहीं—पूरे समाज पर है।
जब SC, ST, OBC या General—कोई भी समुदाय अपनी बेटियों-बेटों को “जाति की इज्जत” के नाम पर मारने लगे,तो दोष जाति का नहीं, उस जहरीली सोच का है जो अभी भी जिंदा है।

क्या कानून केवल हथियार है, जिम्मेदारी नहीं?जिस परिवार ने इतनी सुनियोजित हत्या की,वही परिवार अब कानून की आड़ में “पीड़ित” बनकर खड़ा हो सकता है—यही सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है:क्या कानून सुरक्षा के लिए है, या हथियार बन गया है?

समाज की हर जाति को आईना दिखाती घटना: यह प्रकरण साबित करता है—जातिवादी सोच सिर्फ किसी एक जाति में नहीं,हर वर्ग में फैली बीमारी है।
• समानता की बातें करना आसान है,उसे अपने घर में लागू करना कठिन है।
• संविधान का नाम लेना सरल है,उसके मूल्यों पर चलना चुनौती है।

समाज को नहीं, जातिवादी सोच को कटघरे में खड़ा करो: नांदेड़ की यह हत्या किसी एक परिवार का अपराध नहीं—यह पूरे सिस्टम के सामने खड़ा हुआ आईना है,जो दिखाता है किजब प्रेम और इंसानियत हारती है,तो जीत सिर्फ और सिर्फ—जातिवादी अहंकार की होती है।
यह केस मांग करता है—
• तेज़ सुनवाई
• कड़ी सज़ा
• और जातिवादी अपराधों को लेकर समान कानून और समान जवाबदेही।

जो आज सवर्ण समाज पर जातिवादी होने का रात दिन लांछन लगते रहते हैं, है क्या इनके पास कोई जवाब, इसलिए पहले खुद का घर सही करो बाद में पडोशी के यहाँ झांको तभी सच्चा परिवर्तन होगा, सादी विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है और सभी समाज अपने अपने हिसाब से करते हैं जिसको बदल पाना इतना आसान नहीं है अगर बदलना है तो पहले पहले जाकर यादव की जाटव के यहाँ, जाटव की बाल्मिकी के यहाँ, बाल्मीकि की पटेल के यहाँ, पटेल की जाटव, प्रजापति, कुशवाहा, सब एक दूसरे की बेटी और बेटों के साथ सादी करके समानता का परिचय दो तब पता चलेगा, ये एक सामाजिक व्यवस्था है और सभी जातियों ने अपने अपने हिसाब से बना रक्खी है और ये ऐसे ही चलेगा ....इसको कोई नहीं बदल सकता और जो अपनी स्वेक्षा से कर रहे हैं वो कर रहे हैं........कहना आसान है हकीकत कुछ और है...........

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