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प्रशासन की अनदेखी से नाराज़ किसान: इंद्रावती नदी बचाने अब स्वयं करेंगे बोरी बंधान” “बस्तर में उबाल: डेमों की मरम्मत न होने पर किसानों ने कलेक्टर घे

प्रशासन की अनदेखी से नाराज़ किसान: इंद्रावती नदी बचाने अब स्वयं करेंगे बोरी बंधान”


“बस्तर में उबाल: डेमों की मरम्मत न होने पर किसानों ने कलेक्टर घेराव का ऐलान”


बस्तर जिले में इंद्रावती नदी की गिरती स्थिति और जर्जर डेमों को लेकर इंद्रावती नदी बचाओ संघर्ष समिति एवं क्षेत्रीय किसानों में भारी रोष व्याप्त है। समिति के सदस्य इन दिनों गांव-गांव जाकर इंद्रावती नदी पर निर्मित डेमों का निरीक्षण कर रहे हैं। निरीक्षण के दौरान अधिकांश डेम जर्जर स्थिति में पाए गए हैं, जिन पर न तो मरम्मत हुई है और न ही पानी रोकने की कोई समुचित व्यवस्था है। पानी लगातार बह रहा है और सिंचाई के लिए आवश्यक जलसंग्रह नहीं हो पा रहा, जिससे किसान गहरी चिन्ता में हैं। किसानों का कहना है कि 10 नवंबर को प्रशासन को ज्ञापन देकर इंद्रावती नदी का पानी रोकने और डेमों की मरम्मत कराने की मांग की गई थी। इसी तारीख को किसानों ने अपर कलेक्टर को मक्का के न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित मांग भी सौंपी थी। ज्ञापन के बाद किसानों को उम्मीद थी कि प्रशासन त्वरित कार्रवाई करेगा, लेकिन कई दिनों बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण किसानों का धैर्य टूट गया है। प्रशासनिक निष्क्रियता के चलते अब किसान स्वयं स्थिति का आकलन करने निकल पड़े हैं। संघर्ष समिति के सदस्यों के साथ क्षेत्र के ग्रामीण भी डेमों का जायजा लेने के लिए गांव-गांव घूम रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यदि समय पर डेमों की मरम्मत कर दी जाती, तो आज खेतों तक पर्याप्त पानी पहुँच पाता और फसलों को नुकसान नहीं होता। लगातार पानी बह जाने से सिंचाई पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इसी नाराजगी के बीच इंद्रावती बाजार संघर्ष समिति मंगलवार को प्रस्तावित कलेक्टर घेराव की तैयारी में क्षेत्रभर में बैठकों का आयोजन कर रही है। किसानों का आरोप है कि बरसात खत्म होने के बावजूद प्रशासन ने डेमों की मरम्मत में कोई रुचि नहीं दिखाई। उनका कहना है कि प्रशासन किसानों के हितों के प्रति संवेदनशील नहीं है, जिसके कारण फसलों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है—एक ओर पानी उपलब्ध नहीं है और दूसरी ओर उत्पादन पर संकट गहराता जा रहा है। संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी लक्ष्मण बघेल ने बताया कि प्रशासन से किसानों की उम्मीद अब पूरी तरह टूट चुकी है। उन्होंने कहा कि उड़ीसा के जोरा नाला क्षेत्र से लेकर चित्रकोट तक संघर्ष समिति ने बिना किसी सरकारी मदद के पानी रोकने के वैकल्पिक उपाय अपनाने का निर्णय लिया है। समिति का कहना है कि ग्रामीणों और वादियों के सहयोग से बोरी बंधान की व्यवस्था की जाएगी और यदि आवश्यकता पड़ी तो किसान स्वयं बोरी खरीदकर डेमों को बाँधेंगे। बघेल ने यह भी बताया कि प्रशासन की उदासीनता समझ में आने के बाद ही समिति ने अपनी रणनीति बदलते हुए स्वयं डेमों की मरम्मत और पानी रोकने की दिशा में कदम बढ़ाया है। उनके अनुसार यदि प्रशासन इसे नहीं कर सकता, तो किसान और ग्रामीण मिलकर यह कार्य करेंगे ताकि सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सके। इसी क्रम में युवा किसान समूहों ने इंद्रावती नदी पर बने सभी डेमों का निरीक्षण कर स्थिति का आकलन करने का निर्णय लिया है। मंगलवार को युवा किसान जल संसाधन विभाग तथा जिला प्रशासन को निरीक्षण रिपोर्ट से अवगत कराएँगे। उनका कहना है कि यदि प्रशासन अब भी सक्रिय नहीं होता, तो किसान अपने संसाधनों व सहयोग राशि से पानी रोकने की पूरी व्यवस्था स्वयं करेंगे। ग्राम पंचायत भौंड के पंच कृपालु कश्यप ने भी किसानों की मांगों को उचित बताते हुए कहा कि शासन का रवैया किसानों के प्रतिकूल है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसानों की उम्मीद अब शासन और प्रशासन से पूरी तरह खत्म हो चुकी है। कश्यप ने बताया कि ग्रामीणों और किसानों ने मिलकर सहयोग राशि जुटानी शुरू कर दी है और उसी राशि से वे डेमों पर बोरी बंधान कर पानी को रोकने की व्यवस्था करेंगे। किसानों ने साफ कहा है कि यदि सरकार उनकी बात नहीं सुन रही, तो वे अपने दम पर इंद्रावती नदी को बचाने का अभियान जारी रखेंगे। उनका कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ फसल और पानी की नहीं बल्कि बस्तर की खेती को बचाने की लड़ाई है, जिसे वे हर हाल में लड़ते रहेंगे।
भोंड सरपंच जलंधर कश्यप, सुभाष कश्यप,मनी बघेल ,दिनेश मौर्य, सहदेव बघेल, लच्छू राम बघेल, कंवल बघेल,बामदेव बघेल ,कमलचंद ठाकुर, चंदन ठाकुर, समदु बघेल, फाल्गुनी बघेल, परदेशी मौर्य, आसमन बघेल एवं अन्य किसान उपस्थित थे।

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