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अजमेर: नए कोर्ट में 'जगह' की जंग - 2000 वकील और सिर्फ 78 चैंबर! आखिर क्यों अटका है शिफ्टिंग का मामला?

न्यूज़ डेस्क | अजमेर
​अजमेर में न्यायपालिका के नए पते को लेकर एक बड़ा पेंच फंस गया है। करोड़ों की लागत से बना नया न्यायालय भवन तैयार है, लेकिन वहां जाने वाले वकीलों ने अपना बोरिया-बिस्तर बांधने से साफ़ इनकार कर दिया है। मामला सिर्फ जिद का नहीं, बल्कि अव्यवस्था का है।
​अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA) पिछले 5 महीनों से पुराने कोर्ट परिसर की 12.32 बीघा जमीन का कब्जा लेने का इंतज़ार कर रहा है, लेकिन वकीलों की दलील है कि जब तक बैठने की पूरी व्यवस्था नहीं होती, पुराना भवन नहीं छोड़ेंगे।
​वकीलों का सवाल: 2000 लोग 78 कमरों में कैसे बैठेंगे?
​जिला बार एसोसिएशन और एडीए के बीच का यह विवाद आंकड़ों को देखने पर समझ आता है। रिपोर्ट के अनुसार:
​वकीलों की संख्या: वर्तमान में जिला न्यायालय में करीब 2000 वकीलों को चैंबर की आवश्यकता है।
​नए भवन में व्यवस्था: नए हाईटेक कोर्ट भवन में केवल 78 चैंबर ही बनकर तैयार हैं।
​जिला बार अध्यक्ष अशोक सिंह रावत और पूर्व लोक अभियोजक विवेक पाराशर ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक सभी वकीलों के लिए चैंबर और बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं हो जाती, वे पुराना भवन खाली नहीं करेंगे।
​क्या था एडीए और कोर्ट का सौदा (MoU)?
​यह पूरा विवाद एक पुराने समझौते (MoU) पर टिका है।
​करीब 10 साल पहले एडीए ने संयोगिता नगर में नए कोर्ट भवन के लिए जमीन दी थी।
​इसके बदले में यह तय हुआ था कि शहर के बीचों-बीच स्थित पुराने कोर्ट परिसर की 12.32 बीघा जमीन एडीए को सौंपी जाएगी।
​शर्त यह भी थी कि पुराने भवन को समतल करके एडीए को दिया जाएगा।
​एडीए ने 6 महीने पहले पत्र लिखकर कब्जा माँगा था, लेकिन अब तक उन्हें खाली हाथ ही रहना पड़ा है।
​'हेरिटेज' और 'हाईकोर्ट बेंच' का नया दांव
​इस मामले में अब राजनीति और विरासत का मुद्दा भी जुड़ गया है। वकीलों का एक धड़ा चाहता है कि पुराने भवन में अधिवक्ताओं के लिए चैंबर बनें या फिर वहां हाईकोर्ट की अजमेर बेंच स्थापित की जाए।
​वहीं, शहर जिला कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष और पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल ने एक नई मांग रख दी है। उन्होंने विधि केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को पत्र लिखकर मांग की है कि:
​पुराने जिला न्यायालय परिसर को 'हेरिटेज संपत्ति' घोषित किया जाए।
​क्रिस्टोफर जैकब, जो अजमेर के पहले जिला एवं सत्र न्यायाधीश थे, के समय के इस भवन के पुरातत्व महत्व को समझा जाए।
​इसे तोड़ने या समतल करने के बजाय संरक्षित किया जाए।
​आगे क्या?
​फिलहाल स्थिति 'तारीख पे तारीख' वाली बनी हुई है। एक तरफ एडीए अपनी बेशकीमती जमीन का इंतज़ार कर रहा है, तो दूसरी तरफ वकील सुविधाओं की कमी का हवाला देकर डटे हुए हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन नए भवन में अतिरिक्त निर्माण करवाता है या फिर पुराने भवन को लेकर कोई नया फैसला लिया जाता है।
​ताज़ा अपडेट्स के लिए जुड़े रहें आईमा न्यूज़ (Aima News) के साथ।

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