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"उत्तराखंड आंदोलन के अग्रदूत दिवाकर भट्ट का निधन, उत्तराखंडियत को अपूरणीय क्षति"


देहरादून/हरिद्वार, 25 नवंबर 2025
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रमुख नायकों में से एक और उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के संस्थापक नेताओं में शामिल दिवाकर भट्ट जी का सोमवार को हरिद्वार में निधन हो गया। 79 वर्षीय दिवाकर भट्ट लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन की खबर से पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। राज्य आंदोलन की रीढ़ माने जाने वाले भट्ट को अंतिम विदाई देने हेतु हरिद्वार के खड़खड़ी श्मशान घाट में बड़ी संख्या में समर्थक, आंदोलनकारी और जनप्रतिनिधि पहुँचे।

“उत्तराखंडियत के लिए हम सब उनके कर्जदार रहेंगे” — जनभावना

लोगों का कहना है कि दिवाकर भट्ट ऐसा व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन उत्तराखंड की अस्मिता, पहाड़ों के हक और पलायन जैसे मुद्दों के लिए समर्पित कर दिया।
कई वरिष्ठ आंदोलनकारियों ने कहा—

> “जिसने अपना सब कुछ उत्तराखंड के लिए कुर्बान किया, ऐसे महापुरुष को हमारा कोटि-कोटि नमन।”

दिवाकर भट्ट को लोग प्यार से ‘फील्ड मार्शल’ के नाम से भी जानते थे — एक ऐसा उपनाम जिसे उन्होंने अपने संघर्ष, त्याग और नेतृत्व से जीता था।

सुपार गाँव से उठी आवाज, जिसने बदल दिया पहाड़ का भविष्य

1946 में टिहरी जनपद के सुपार गाँव में जन्मे दिवाकर भट्ट युवावस्था से ही पहाड़ों की समस्याओं, बेरोजगारी, पलायन और अधिकारों के मुद्दे पर सक्रिय हो गए थे।
उन्होंने “तरुण हिमालय” संगठन की स्थापना की, जिसके जरिए पहाड़ी युवाओं, किसानों और सामाजिक मुद्दों पर जनआंदोलन खड़े किए गए।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में निर्णायक भूमिका

दिवाकर भट्ट उन नेताओं में थे जिन्होंने उत्तराखंड आंदोलन को ताकत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) की स्थापना में शामिल रहे।

1990 के दशक में उनकी अगुवाई में कई ऐतिहासिक आंदोलनों ने गति पकड़ी।

श्रीयंत्र टापू से लेकर खैट पर्वत तक उनके उपवास और संघर्षों ने राज्य आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया।

आंदोलनकारियों का कहना है कि—

> “अगर दिवाकर भट्ट जैसे नेता न होते, तो आंदोलन की दिशा और ताकत अलग होती। वे पहाड़ की आवाज थे।”

राजनीतिक सफर — विधायक और मंत्री

2007 में दिवाकर भट्ट देवप्रयाग से विधायक चुने गए और बाद में राजस्व मंत्री बने।
मंत्री के रूप में उन्होंने

भू-कानून,

भूमि संरक्षण,

स्थानीय संसाधनों के अधिकार
जैसे संवेदनशील मुद्दों पर काम किया।

हालाँकि बाद के वर्षों में दलगत राजनीति में उतार-चढ़ाव आए, फिर भी उनकी पहचान हमेशा एक पहाड़ी अस्मिता के प्रहरी के तौर पर बनी रही।

अंतिम विदाई — पूरे राज्य में शोक

दिवाकर भट्ट को अंतिम विदाई देते समय आंदोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, विभिन्न दलों के नेता और आम लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
उनकी मृत्यु पर पूरे राज्यभर से श्रद्धांजलियों का सैलाब उमड़ पड़ा।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार,
“दिवाकर भट्ट का जाना सिर्फ एक नेता का जाना नहीं, बल्कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के एक युग का अंत है।”

क्यों अमर रहेगा दिवाकर भट्ट का नाम?

पहाड़ की अस्मिता के लिए जीवनभर संघर्ष

जन अधिकार, जमीन और संसाधनों के लिए लगातार आवाज

राज्य आंदोलन के स्तंभ

पहाड़ी अस्मिता और स्थानीय पहचान के सबसे मजबूत योद्धा

दिवाकर भट्ट आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहेंगे कि—
“संघर्ष ही पहाड़ की असली पहचान है।”

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