
उत्तराखंड: नई टिहरी बोराड़ी स्टेडियम में शनिवार 1 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा उत्तराखंड का पारंपरिक त्यौहार इगास बग्वाल (बूढ़ी दिवाली),,,
रिपोर्ट : मनोज शाह ( शिवम् )
नई टिहरी ( उत्तराखंड ) बोराड़ी स्थित स्टेडियम में उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल मनाने को नगरपालिका परिषद टिहरी द्वारा तैयारी जोरों में है इसकी जानकारी नगर पालिका के अध्यक्ष श्री मोहन सिंह रावत द्वारा दी गई इसमें सह आयोजक की भूमिका नवयुवक रामकृष्ण लीला समिति 1952 द्वारा की जाएगी इसकी जानकारी समिति के अध्यक्ष श्री देवेंद्र नौडियाल द्वारा दी गई जिसमें उन्होंने कहा रंगोली प्रतियोगिता करवाई जाएगी जिसमें शहर के सभी स्कूल तीन केटेगिरी में प्रतिभाग करेंगे और साथ में समिति द्वारा पारंपरिक रासो नृत्य सहित भेला खेलने का आयोजन किया जाएगा , नगर पालिका द्वारा पारंपरिक पकवान पकौड़ी स्वाला सहित ढोल दामाऊं का आयोजन होगा,
इगास बग्वाल, जिसे 'बूढ़ी दिवाली' भी कहा जाता है, उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक लोकपर्व है। यह मुख्य दिवाली के ठीक 11 दिन बाद, हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।
यह त्योहार क्यों मनाया जाता है, इसकी कई मान्यताएँ हैं:
भगवान राम का देर से आगमन: एक कथा के अनुसार, जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो यह खबर पहाड़ों में बसे गढ़वाल क्षेत्र तक 11 दिन बाद पहुँची। इसलिए, लोगों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए 11वें दिन दिए जलाकर दिवाली मनाई।
वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी की जीत: एक अन्य मान्यता यह है कि 17वीं सदी में गढ़वाल के सेनापति माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत युद्ध में विजय प्राप्त की थी, लेकिन वे दिवाली के 11 दिन बाद अपने घर लौटे। उनकी जीत और वापसी की खुशी में, पूरे गढ़वाल क्षेत्र में दिवाली मनाई गई।
भगवान विष्णु का जागरण: हरिबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के शयनावस्था के बाद जागृत होते हैं। इस दिन उनकी पूजा का विशेष विधान है, और यह त्योहार इसका भी प्रतीक है।
उत्सव का तरीका
इगास बग्वाल का उत्सव पारंपरिक रीति-रिवाजों से भरपूर होता है:
भैलो खेल: इस दिन चीड़ की लकड़ी से बनी मशालें (जिन्हें 'भैलो' कहते हैं) जलाकर घुमाई जाती हैं। यह अंधकार को दूर करने और समृद्धि का आशीर्वाद पाने का प्रतीक माना जाता है।
लोक नृत्य और गीत: लोग पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं और पर्व का उल्लास मनाते हैं।
पारंपरिक पकवान: इस दिन घरों में पारंपरिक व्यंजन, जैसे पूड़ी, स्वाला और पकौड़े बनाए जाते हैं।
पशुओं की पूजा: इस दौरान पशुओं की भी पूजा की जाती है और उन्हें पकवान खिलाए जाते हैं।
पटाखों का कम उपयोग: मुख्य दिवाली की तुलना में इस पर्व में पटाखों का इस्तेमाल लगभग नहीं होता है।
इगास बग्वाल उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे आज भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।