
“दूध सी सफेदी लाए... बीजेपी निरमा! – सिद्धांतों की पार्टी अब ‘सत्ता धुलाई केंद्र’ बन गई है”
कभी ‘अटल-आडवाणी की विचारधारा’ से चलने वाली बीजेपी आज ‘कांग्रेसमय’ हो चुकी है; सवर्ण समाज महसूस कर रहा खुद को ठगा और उपेक्षित।
एक समय था जब घर-घर में एक जिंगल गूंजता था — “वॉशिंग पाउडर निरमा, दूध सी सफेदी लाए...” आज वही पंक्ति भारतीय राजनीति पर सटीक बैठती है, बस फर्क इतना है कि अब ‘निरमा’ की जगह ‘बीजेपी’ ने ले ली है। फर्क सिर्फ नाम का है — धुलाई वही, चमक वही। कभी भारतीय जनता पार्टी अपने सिद्धांतों, राष्ट्रवाद और चरित्र की राजनीति के लिए जानी जाती थी। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर की बीजेपी एक विचार थी — न कि सिर्फ सत्ता का माध्यम। लेकिन आज वही पार्टी कांग्रेस के पदचिन्हों पर चल पड़ी है। जो कल तक कांग्रेस में ‘भ्रष्ट’, ‘देशद्रोही’ या ‘अयोग्य’ कहे जाते थे, वे जैसे ही बीजेपी में शामिल होते हैं — मानो “वॉशिंग पाउडर बीजेपी” में धुलकर दूध से सफेद हो जाते हैं। यह दृश्य अब आम हो गया है — एक ‘राजनीतिक धुलाईघर’ बन चुकी है बीजेपी, जहाँ सब कुछ जायज़ है, बशर्ते आप सत्ता के रंग में रंग जाएँ। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो सवर्ण समाज कभी तन, मन और धन से बीजेपी के साथ खड़ा था — वही अब खुद को ठगा और अपमानित महसूस कर रहा है। आज हालत यह है कि बीजेपी शासित राज्यों में ही सवर्ण वर्ग सबसे ज्यादा पीड़ा झेल रहा है। आरक्षण की राजनीति और जातिगत तुष्टीकरण ने बीजेपी को वहीं ला खड़ा किया है जहाँ कभी कांग्रेस खड़ी थी।
अब सवाल यह है कि क्या सवर्ण समाज यूँ ही मौन रहेगा?समय आ गया है जब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जैन, सिंधी और सिख समाज को एकजुट होकर विचार करना होगा कि आने वाला भविष्य कैसा होगा। यदि अब भी यह समाज नहीं चेता, तो निकट भविष्य में उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। यह भी एक कड़वा लेकिन सत्य वाक्य है कि भारत में कोई भी पार्टी सवर्ण समाज के सहयोग के बिना सत्ता में नहीं रह सकती।इसलिए अब या तो सरकारें SC/ST एक्ट और जातिगत आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करें, या फिर आगामी चुनावों में जनता उन्हें उसी सड़क पर उतार दे — जहाँ आम नागरिक रोज़ चलता है।
✍️ — महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल