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औद्योगिक क्षेत्र सेलाकुई बना कूड़ा नगरी कूड़े के ढेर ने नेताओं के दावों एवं वादों की निकाल दी हवा ऐसी जो दीवाना बना दे

मुस्कुराइए आप कूड़ानगरी सेलाकुई मे है

: नवनियुक्त नगर पालिका अध्यक्ष सुमित चौधरी के वादों की हवा सेलाकुई में जगह-जगह लगे कूड़े के ढेरों ने निकाल दी

देहरादून, 25 अक्टूबर 2025 – औद्योगिक नगरी सेलाकुई, जो कभी विकास की चमक से जगमगाती थी, आज कूड़े के अम्बारों और प्रदूषण की बदबू से सांस लेना मुश्किल कर रही है। देहरादून-पांवटा राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर शहर के भीतरी रास्तों तक, जगह-जगह बिखरे कचरे के ढेर न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि स्थानीय निवासियों और हजारों मजदूरों की सेहत पर भारी पड़ रहे हैं। चुनावी वादों में नगर पालिका सेलाकुई के नेताओं ने 'कूड़ा मुक्त सेलाकुई' का सपना दिखाया था, लेकिन हकीकत में शहर की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि गोवंश तक प्लास्टिक खाकर जान गंवा रहे हैं।
स्थानीय निवासी वीरेन्द्र सिंह रावत ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने सेलाकुई के एनएच-72 पर भारी वाहनों की अंधाधुंध आवाजाही, ध्वनि प्रदूषण और कूड़े की समस्या को उठाते हुए जिलाधिकारी और ट्रैफिक पुलिस से कार्रवाई की गुहार लगाई। "रात में ट्रकों के हॉर्न से नींद उड़ जाती है, और सड़कों पर कूड़े के ढेरों से दुर्गंध फैल रही है। क्षेत्र की नालिया शिविर के पानी से ओवरफ्लो हो रही है बच्चे-बुजुर्ग परेशान हैं, लेकिन नगर पालिका प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा," उन्होंने बताया।
शहर की सड़कों पर कूड़े का राज, गोवंश की जान पर बन आई
सेलाकुई के मुख्य मार्गों पर दिनभर गोवंश को प्लास्टिक और कूड़ा खाते देखा जा सकता है। स्थानीय किसान और पशुपालक बताते हैं कि पिछले एक साल में दर्जनों पशु इसी वजह से मर चुके हैं। "पॉलीथीन और प्लास्टिक बैग पशुओं के पेट में चले जाते हैं, जो घातक साबित हो रहे हैं। प्रशासन ने कूड़ा उठाने के लिए वाहन तो भेजे, लेकिन वे हफ्तों गायब रहते हैं," एक स्थानीय ने शिकायत की।
देहरादून नगर निगम की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, शहर में कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था चरमरा गई है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में देहरादून को जीरो नंबर मिले, क्योंकि पुराने कूड़े का समय पर निपटान नहीं हो पाया। सेलाकुई जैसे उपनगरीय इलाकों में स्थिति और भी खराब है, जहां औद्योगिक कचरा घरेलू कूड़े में मिल जाता है। शीशमबाड़ा ट्रेंचिंग ग्राउंड पर विकासनगर, सेलाकुई और आसपास के क्षेत्रों का कचरा डंप किया जाता है, लेकिन क्षमता से अधिक लोड होने से समस्या बढ़ गई है।
चुनावी दावों का सच: हवा में गोली चलाने वाले वादे
पिछले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले तमाम नेताओं ने सेलाकुई को 'प्रदूषण मुक्त' बनाने का वादा किया था। नगर पालिका प्रत्याशी सुमित चौधरी ने जनवरी 2025 में ट्वीट कर "कूड़ा मुक्त सेलाकुई" का नारा दिया था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद ये वादे हवा-हवाई रह गए। स्थानीय स्तर पर कुछ स्वच्छता अभियान चले, जैसे आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी ने अक्टूबर 2025 में चोरखाला और बायाखाला गुरुद्वारे में सफाई कार्यक्रम आयोजित किए, लेकिन ये छिटपुट प्रयास साबित हो रहे हैं।
नेशनल हेल्थ मिशन ने अगस्त 2025 में सिडकुल सेलाकुई में डेंगू-मलेरिया जागरूकता सत्र चलाया, जिसमें औद्योगिक स्वच्छता पर जोर दिया गया। लेकिन कूड़े के ढेरों से फैलने वाली बीमारियां – मलेरिया, डेंगू और श्वसन रोग – बढ़ रही हैं। देहरादून में वायु प्रदूषण का स्तर (AQI) 100 के पार पहुंच गया है, जिसमें कूड़ा जलाने और धूल का बड़ा हाथ है।
इंडस्ट्री एरिया भी कचरे की चपेट में, क्या है समाधान?
सेलाकुई का इंडस्ट्रियल एरिया, जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, खुद कचरे के जाल में फंस गया है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला अपशिष्ट सीवर लाइनों को चोक कर रहा है, जिससे नालियां लबालब हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कूड़ा प्रबंधन के लिए स्मार्ट सिस्टम, रिसाइक्लिंग सेंटर और जैविक-अजैविक कचरा अलग करने की अनिवार्यता जरूरी है। नगर आयुक्त नमामी बंसल ने कहा, "जल्द ही पृथक्करण अनिवार्य होगा, और सफाई में कोताही पर सख्ती बरती जाएगी।"
लेकिन स्थानीयों का सवाल वाजिब है – वादों से आगे बढ़कर कब होगा असली काम? सेलाकुई को साफ-सुथरा बनाने के लिए प्रशासन, उद्योगपतियों और नागरिकों का सामूहिक प्रयास जरूरी है। अगर अब भी सुस्ती बनी रही, तो यह औद्योगिक हब 'बीमारियों का अड्डा' बन जाएगा।

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