
नंदा अष्टमी की खुशियां और चमोली का दर्द: नंदा नगर का बैंड बाजार भूस्खलन से बेघर परिवार
*चमोली थराली और उत्तरकाशी-धराली तक फैली आपदा की चिंता*
"जब प्रदेश नंदा अष्टमी लोक पर्व की उमंग में डूबा था, उसी वक्त चमोली जिले के नंदा नगर का बैंड बाजार भूस्खलन की चपेट में आ गया। 30 से अधिक परिवारों ने अपने आशियाने खो दिए। थराली से लेकर उत्तरकाशी-धराली तक बार-बार दोहराई जा रही ऐसी प्राकृतिक त्रासदियां हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हम पहाड़ों की चेतावनियों को अब भी अनसुना कर रहे हैं?"
*Kedar Singh Chauhan 'Pravar'
एक ओर पूरा उत्तराखंड नंदा अष्टमी जैसे लोक पर्व की धार्मिक आभा और सांस्कृतिक ऊर्जा में सराबोर था। गांव-गांव में श्रद्धा के गीत गूंज रहे थे, महिलाओं के स्वर देवभूमि की परंपराओं को जीवन दे रहे थे। लेकिन दूसरी ओर चमोली जिले के नंदा नगर (बैंड बाजार व कुंवर कॉलोनी क्षेत्र) के लोग अपनी आंखों के सामने घरों को दरकते देख रहे थे। यह विडंबना ही है कि जहां पर्व का उल्लास होना चाहिए था, वहीं भय, अनहोनी और आंसुओं की नदी बह रही थी।
यह केवल चमोली की त्रासदी नहीं है। थराली के पहाड़, उत्तरकाशी-धराली का गंगोत्री धाम मार्ग और देवभूमि के अनेक गांव आज भी भूस्खलन, भूधंसाव और आपदाओं के साये में जी रहे हैं।
यह लेख इसी विरोधाभास, त्रासदी और भविष्य की दिशा को लेकर विस्तृत विमर्श है।
नंदा अष्टमी की आस्था और उसके बीच आई त्रासदी
नंदा अष्टमी उत्तराखंड का एक प्रमुख लोक पर्व है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक एकजुटता और लोकजीवन की सामूहिक स्मृतियों का प्रतीक भी है। इस दिन घर-घर में विशेष पूजन होता है, महिलाएं नंदा देवी की आराधना करती हैं और लोकगीतों के स्वर वातावरण को पवित्र बना देते हैं।
लेकिन इस वर्ष, जब चमोली में नंदा अष्टमी मनाई जा रही थी, उसी समय बैंड बाजार और कुंवर कॉलोनी में भूधंसाव ने 30 से 40 परिवारों के सपनों को जमींदोज कर दिया।
लोगों ने अपनी आंखों के सामने घरों की दीवारों को दरकते देखा। प्रशासन ने तुरंत घर खाली करवाए, लेकिन उन आंखों से टपकते आंसुओं और भविष्य की चिंता को कौन भर पाएगा?
चमोली: बैंड बाजार भूस्खलन का घटनाक्रम
रिपोर्टों के अनुसार:
पलपाणी तोक क्षेत्र में करीब 100 मीटर का भूभाग दरकने लगा।
एक मकान और चार गोशालाएं पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं।
करीब 25 दुकानें खतरे की जद में आ गईं।
34 परिवारों को तुरंत शिफ्ट किया गया।
प्रभावित लोग रिश्तेदारों के घरों और अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।
उप नायब तहसीलदार राकेश देवली के मुताबिक लगातार हो रही बारिश और पहाड़ी की ढलानों में दरारें इस आपदा का कारण बनीं।
यह भूधंसाव चमोली की पुरानी संवेदनशीलता की याद दिलाता है। बद्रीनाथ, जोशीमठ और अब नंदा नगर—लगातार हो रही भूगर्भीय हलचलों ने पूरे जनपद को आपदा-प्रवण क्षेत्र बना दिया है।
त्रासदी का मानवीय पहलू
सबसे बड़ी चोट पत्थरों और दीवारों से नहीं, बल्कि मन से लगी है।
कोई अपनी दुकान टूटते देख रहा है।
कोई अपने पैतृक मकान को दरारों में बिखरता देख रहा है।
महिलाएं पूजा की थालियाँ छोड़कर बच्चों को सुरक्षित स्थानों तक ले जा रही हैं।
बुजुर्गों की आँखों में सवाल है: “अब हम कहाँ जाएंगे?”
यह केवल आर्थिक नुकसान नहीं है, बल्कि सामाजिक और मानसिक आघात भी है। एक पूरी पीढ़ी के सपनों का ताना-बाना यहां बिखर गया है।
थराली: बार-बार दोहराई जाने वाली आपदाओं का इतिहास
चमोली का थराली क्षेत्र भी भूस्खलन और आपदाओं से अछूता नहीं रहा।
बरसात के दिनों में यहां कई गांवों को बार-बार खाली करना पड़ा।
कर्णप्रयाग-थराली सड़क मार्ग कई बार ध्वस्त हो चुका है।
नदी किनारे बसे गांव हर साल मानसून में भय के साये में जीते हैं।
थराली, जहां से नंदा देवी की लोक यात्रा भी निकलती है, वहीँ प्राकृतिक असंतुलन की वजह से लोग अपनी जड़ों से उखड़ते जा रहे हैं।
यह प्रश्न खड़ा करता है कि क्या विकास योजनाओं में भूगर्भीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन को पर्याप्त स्थान मिल रहा है?
उत्तरकाशी-धराली: गंगोत्री धाम मार्ग और आपदा की मार
धराली और उसके आसपास का इलाका गंगोत्री धाम मार्ग का प्रमुख हिस्सा है। यह स्थान धार्मिक पर्यटन के लिए विश्वविख्यात है, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं ने यहां भी गहरी चोट दी है।
गंगोत्री यात्रा मार्ग कई बार भूस्खलन से बाधित होता है।
धराली और हर्षिल क्षेत्र आपदा संवेदनशील ज़ोन घोषित किए जा चुके हैं।
2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से यहां की हर बारिश स्थानीय लोगों को भयभीत कर देती है।
धराली में बसने वाले परिवार न केवल पर्यटन पर निर्भर हैं, बल्कि उनका जीवन गंगा की धारा से भी जुड़ा है। जब भी सड़कें बंद होती हैं या भूस्खलन से खतरा बढ़ता है, तो उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
उत्तराखंड का आपदा चक्र: प्रकृति और मानवीय हस्तक्षेप
उत्तराखंड का भौगोलिक स्वरूप ही ऐसा है कि यहां की ढलानें, जलवायु और नदियाँ भू-संरचना को संवेदनशील बनाती हैं। लेकिन इसके साथ-साथ:
अनियंत्रित सड़क निर्माण,
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई,
बेतरतीब शहरीकरण और
बिना अध्ययन के हाइड्रो प्रोजेक्ट्स
ने इस संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है।
नतीजा यह है कि पर्वतीय क्षेत्र अब आपदा से बचने के बजाय आपदा को आमंत्रित कर रहे हैं।
धार्मिक आस्था और आपदा की चेतावनी
नंदा अष्टमी, गंगोत्री धाम यात्रा और अन्य पर्व केवल परंपरा नहीं हैं, बल्कि यह हमें पहाड़ों और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने का भी संदेश देते हैं।
जब हम पर्व मनाते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि पर्वों का असली संदेश है: प्रकृति का सम्मान, संतुलन और आस्था के साथ संरक्षण।
भविष्य की राह और प्रशासनिक चुनौतियां
प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया। राहत शिविर बनाए गए, लेकिन यह केवल तात्कालिक समाधान है।
जरूरी है कि:
दीर्घकालिक पुनर्वास योजना बनाई जाए।
भूगर्भीय सर्वेक्षण कर स्थायी रूप से संवेदनशील इलाकों की पहचान की जाए।
स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण दिया जाए।
रिवर बफर जोन और हिल सेफ्टी जोन बनाए जाएं।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
समाज और युवाओं की भूमिका
केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। समाज और युवाओं को भी आपदा प्रबंधन में अपनी भूमिका निभानी होगी।
स्थानीय स्तर पर निगरानी समितियां बनाई जा सकती हैं।
पारंपरिक जल स्रोतों और वनों का संरक्षण जरूरी है।
सामुदायिक एकजुटता से विस्थापित परिवारों को सहारा दिया जा सकता है।
सरकार से अपील:
चमोली, थराली और उत्तरकाशी-धराली जैसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों को विशेष संवेदनशील जोन घोषित किया जाए।
प्रभावित परिवारों के लिए स्थायी पुनर्वास और आजीविका योजनाएं बनाई जाएं।
प्रशासन से अपील:
स्थानीय स्तर पर माइक्रो लेवल सर्वेक्षण कर तुरंत खतरे की जद में आने वाले क्षेत्रों को खाली कराया जाए।
आपातकालीन स्थिति में डिजिटल अलर्ट सिस्टम (SMS/WhatsApp आधारित) सक्रिय किया जाए।
समाज और युवाओं से अपील:
विस्थापित परिवारों की मदद के लिए स्थानीय राहत कोष बनाया जाए।
पारंपरिक पर्व (नंदा अष्टमी, गंगा दशहरा आदि) को केवल धार्मिक न मानकर पर्यावरणीय जागरूकता पर्व भी बनाया जाए।
पाठकों से अपील:
यदि आप सुरक्षित क्षेत्र में हैं, तो स्थानीय राहत कार्यों में सहयोग करें।
प्रभावित परिवारों के लिए कपड़े, राशन और आर्थिक सहयोग करें।
सोशल मीडिया पर सही सूचना साझा करें, अफवाह नहीं।
उत्तराखंड के पर्व और उसकी त्रासदियां साथ-साथ चलती प्रतीत होती हैं। एक ओर पर्व लोकजीवन में उल्लास भरते हैं, तो दूसरी ओर प्रकृति की चेतावनी हमें सजग रहने को बाध्य करती है।
चमोली के नंदा नगर बैंड बाजार का भूस्खलन केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक आईना है—जो दिखाता है कि हमें अब विकास और पर्यावरण के बीच नया संतुलन बनाना ही होगा।
यदि हम अभी नहीं जागे, तो नंदा अष्टमी के गीतों की गूंज के बीच आंसुओं की धार और गहरी होती जाएगी।