
कागमाला को क्यों किया अनदेखा ?
कागमाला, जालोर। राजस्थान के जालोर जिले में स्थित ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गांव 'कागमाला' आज एक अनदेखी और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो गया है। स्टेट हायवे 31 पर पड़ने वाले इस गांव में हाल ही में बनाए गए बस स्टैंड पर गांव का नाम तक अंकित नहीं किया गया है। इस पर न केवल गांववासियों में आक्रोश है, बल्कि क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान के सवाल भी खड़े हो गए हैं।
भीनमाल और रानीवाड़ा के बीच स्थित कागमाला सिर्फ एक सामान्य गांव नहीं है, यह वह धरती है जहाँ से प्रसिद्ध श्री सुंधा माताजी शक्तिपीठ मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यही नहीं, राजस्थान का एकमात्र भालू अभ्यारण भी इसी क्षेत्र में मौजूद है। राज्य सरकार द्वारा घोषित और करोड़ों की लागत से बन रहा स्टेट हायवे 31 इसी गांव से होकर गुजरता है और गुजरात से आने वाले हजारों श्रद्धालु इसी मार्ग से सुंधा माता के दर्शन के लिए जाते हैं।
बस स्टैंड बना, पर नाम मिटा दिया गया
हाईवे के पुनर्निर्माण कार्य के अंतर्गत जिन गांवों में बस स्टॉप बनाए गए हैं, उनमें कागमाला भी शामिल है। लेकिन विडंबना यह है कि यहाँ बने बस स्टॉप पर कागमाला का नाम छोड़ कर डाडोकी और चांडपुरा अंकित किया गया है। यह स्थिति तब और अधिक गंभीर हो जाती है जब यह ज्ञात हो कि डाडोकी, आखराड़ ग्राम पंचायत का भाग है और चांडपुरा कागमाला पंचायत का एक छोटा सा गांव है। जबकि पूरा बस स्टॉप गांव कागमाला की मुख्य सीमा में स्थित है।
यह उल्लेखनीय है कि कागमाला स्वयं एक स्वतंत्र ग्राम पंचायत है और क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन और जनसुविधाओं की दृष्टि से अग्रणी स्थान पर है। यहां राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, बिज़ली बोर्ड, आंगनवाड़ी केंद्र और पंचायत भवन जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं। इसके अलावा जनसंख्या और भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से भी कागमाला इन दोनों गांवों – डाडोकी और चांडपुरा – से कहीं बड़ा है।
करोड़ों की लागत से बन रहा है हायवे
स्टेट हायवे 31 का निर्माण कार्य वर्तमान में जोरशोर से चल रहा है, जिसकी अनुमानित लागत सेंकड़ों करोड़ों है। यह हायवे रामसीन, भीनमाल, रानीवाड़ा और आगे गुजरात को जोड़ता है। ऐसे में इस मार्ग पर पड़ने वाले गांवों की पहचान और ठहराव बिंदुओं को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है ताकि यात्रियों को कोई असुविधा न हो और गांवों की प्रतिष्ठा भी बनी रहे।
गौर करने वाली बात यह है कि इसी हायवे पर जहां-जहां बस स्टॉप बनाए गए हैं, वहां वहां स्थानीय गांव का नाम स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है। परंतु कागमाला के साथ यह अन्याय क्यों?
ग्रामीणों में रोष, आंदोलन की चेतावनी
बस स्टॉप पर गांव का नाम न होने से पूरे गांव में भारी आक्रोश व्याप्त है। स्थानीय युवाओं, किसानों, व्यापारियों व बुजुर्गों सभी ने एक स्वर में इसे गांव की पहचान मिटाने की साजिश बताया है। ग्रामवासियों का कहना है कि वर्षों से इस गांव का इतिहास रहा है और यह समूचे क्षेत्र के विकास का केंद्र रहा है। फिर ऐसे गांव का नाम ही मिटा देना क्या केवल एक तकनीकी चूक है या जानबूझकर की गई उपेक्षा?
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही इस बस स्टॉप पर गांव का सही नाम कागमाला अंकित नहीं किया गया तो वे विरोध प्रदर्शन, जनआंदोलन और प्रशासनिक शिकायत की राह अपनाएंगे। कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर भी इस विषय को उठाया है। गांव के वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि यह केवल एक नाम की बात नहीं है, यह गांव की पहचान और सम्मान से जुड़ा हुआ मुद्दा है। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्थानीय जनप्रतिनिधि गांव-गांव जाकर विकास की बात करते हैं, तब एक प्रशासनिक निर्णय से किसी गांव की अस्मिता को मिटाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता।
एक ओर सरकार गांवों के विकास और पहचान को सशक्त करने की दिशा में कार्य कर रही है, वहीं दूसरी ओर ऐसी लापरवाहियां जनता की आस्था और सम्मान को ठेस पहुंचाती हैं। कागमाला जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गांव को उसका हक़ मिलना चाहिए - और सबसे पहली मांग यही है कि बस स्टॉप पर गांव का नाम लिखा जाए।