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हर दिन है मातृत्व का उत्सव: एक पुकार दिल से दिल तक

हर दिन है मातृत्व का उत्सव: एक पुकार दिल से दिल तक
आज सारा विश्व मातृत्व दिवस मना रहा है। स्मार्टफोन की गैलरी में माँ के साथ ली गई उस पुरानी तस्वीर को ढूँढने की होड़ मची है। व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर माँ के लिए स्टेटस और डीपी लगाकर लोग अपने प्यार का इजहार कर रहे हैं। लेकिन क्या यह सब सिर्फ एक दिन की रस्म अदायगी बनकर रह गया है? क्या 365 दिनों में सिर्फ एक दिन माँ को याद करके हम अपने उस अटूट ऋण को चुका सकते हैं, जो माँ ने हमें जन्म देकर, पाल-पोसकर, और अपने सपनों को हमारे लिए कुर्बान करके चुकाया है?
जरा ठहरकर सोचिए... माँ, जिसके आँचल की छाँव में हमने जिंदगी के पहले कदम रखे। माँ, जिसकी गोद में हर दर्द भूल जाता है। माँ, जिसकी एक पुकार में सारी दुनिया की खुशियाँ समा जाती हैं। क्या उस माँ के प्रेम को, उसकी ममता को, उसके बलिदानों को सिर्फ एक तस्वीर, एक स्टेटस, या एक दिन में समेटा जा सकता है? क्या हमारी भारतीय संस्कृति, जो माता-पिता को भगवान से भी ऊँचा स्थान देती है, हमें यही सिखाती है कि माँ को सिर्फ एक दिन याद किया जाए और फिर भूल जाया जाए?
हमारी संस्कृति में तो हर साँस, हर पल मातृत्व का उत्सव है। माँ के बिना तो जीवन की कल्पना ही अधूरी है। वह माँ, जो हमारे दूर होने पर भी अपने दिल में हमें बसा रखती है। वह माँ, जिसकी एक फोन कॉल हमारे दिन को रोशन कर देती है। वह माँ, जिसकी दुआएँ हमें हर मुश्किल में संभाल लेती हैं। फिर क्यों हम पाश्चात्य संस्कृति की नकल में अपने मूल्यों को भूलते जा रहे हैं? क्यों हम उस राह पर चल पड़े हैं, जहाँ माँ-पिता के लिए समय निकालना एक औपचारिकता बनकर रह गया है?
पश्चिमी देशों में बच्चे माता-पिता से अलग रहते हैं। उनके लिए माँ-बाप से मिलने का एक दिन तय करना शायद जरूरी हो, क्योंकि वहाँ रिश्तों में वह गर्माहट, वह अपनापन कम है। लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति तो अलग है। यहाँ माँ का स्थान मंदिर की उस घंटी की तरह है, जिसकी आवाज़ दूर-दूर तक गूँजती है। यहाँ माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है। फिर क्यों हम धीरे-धीरे अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं? क्यों हमारी नई पीढ़ी उस पाश्चात्य चकाचौंध में खो रही है, जो रिश्तों को एक दिन की औपचारिकता तक सीमित कर देती है?
आज हर भारतीय को यह सवाल खुद से पूछना चाहिए: क्या एक दिन माँ की तस्वीर लगाने से हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं? क्या एक स्टेटस अपडेट करके हम माँ के उस प्रेम को चुका सकते हैं, जिसने हमें हर कदम पर संभाला? नहीं, मातृत्व दिवस एक दिन का दिखावा नहीं, बल्कि हर दिन का सच्चा सम्मान है। यह वह पल है, जब हमें रुककर सोचना चाहिए कि क्या हम अपनी माँ को वह समय, वह प्यार, वह सम्मान दे रहे हैं, जिसकी वह हकदार है?
आइए, इस मातृत्व दिवस पर एक संकल्प लें। संकल्प यह कि हम हर दिन अपनी माँ को वही प्यार, वही आदर देंगे, जो वह हमारे लिए हर पल बरसाती है। आइए, हम अपनी संस्कृति की उस मिट्टी को फिर से सींचें, जिसमें माता-पिता के लिए प्रेम और सम्मान की गहरी जड़ें हैं। माँ का आँचल हमारी सबसे बड़ी ताकत है, और उस ताकत को हमें हर दिन, हर पल गले लगाना है।
क्योंकि माँ सिर्फ एक शब्द नहीं, एक पूरी दुनिया है। और उस दुनिया का हर दिन, हर पल मातृत्व दिवस होना चाहिए।
अनिल स्वर्णकार
आँवा, टोंक

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1 comment  
  • Manoj Kumar

    बहुत ही सुन्दर अनिल जी