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ग्राम रोजगार सेवक पर भ्रष्टाचार का मुकदमा, मनरेगा फंड में गबन का आरोप—कई अफसरों की भूमिका पर उठे सवाल

(लखीमपुर खीरी)। ईसानगर ब्लॉक की ग्राम पंचायत कबिरहा में मनरेगा योजना के तहत तालाब खुदाई और सफाई कार्य में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायत सामने आई है। इस मामले में ग्राम रोजगार सेवक रामकुमार के खिलाफ ग्राम पंचायत सचिव की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई है। आरोप है कि रामकुमार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में प्राथमिक विद्यालय के पीछे कराए जा रहे कार्य में फर्जी हाजिरी भरकर सरकारी धन का गबन किया। ताज्जुब की बात यह है कि मौके पर काम करते श्रमिकों की तस्वीरों में किसी के भी हाथ में फावड़ा या अन्य औजार नहीं दिखा, जिससे कार्य की वास्तविकता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
ग्राम पंचायत सचिव ने रामकुमार को दो नोटिस जारी किए हैं। पहले नोटिस में मस्टर रोल संख्या 196, 197, 198 और 199 पर 10-10 श्रमिकों की फर्जी उपस्थिति दर्ज करने का आरोप लगाया गया है, जबकि दूसरे नोटिस में यह कहा गया है कि जब उच्चाधिकारियों द्वारा निरीक्षण की सूचना दी गई तो रामकुमार न केवल कार्यस्थल से अनुपस्थित रहे बल्कि किसी भी प्रकार का संपर्क तक नहीं किया। यह आचरण सीधे तौर पर उच्चाधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की श्रेणी में आता है। नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि यदि रामकुमार ने निर्धारित समय में संतोषजनक जवाब नहीं दिया तो मनरेगा अधिनियम के तहत उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी, जिसमें सेवा समाप्ति तक की प्रक्रिया शामिल है।
खंड विकास अधिकारी ईसानगर द्वारा 07 मई 2025 को जारी पत्रांक 377 / मनरेगा / रिकवरी /2025-26 के तहत भी रामकुमार के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। पत्र में साफ कहा गया है कि उन्होंने योजनागत कार्य में अनियमितता बरती, फर्जी हाजिरी लगाई और निरीक्षण के समय अनुपस्थित रहे। ग्राम रोजगार सेवक के साथ-साथ ग्राम प्रधान और सचिव को भी नोटिस भेजते हुए कहा गया है कि वे गबन की गई धनराशि का अनुपातिक हिस्सा शासन के खाते में जमा करें।
हालांकि इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या दोष सिर्फ ग्राम रोजगार सेवक का है? अगर उन्होंने फर्जी हाजिरी भरी, निरीक्षण के समय अनुपस्थित रहे और विभागीय नोटिस का जवाब नहीं दिया तो वे निश्चित रूप से जिम्मेदार हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इस पूरे भ्रष्टाचार की जवाबदेही केवल एक व्यक्ति की है? जब मनरेगा योजना का संचालन ग्राम रोजगार सेवक, ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव, तकनीकी सहायक, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी, कंप्यूटर ऑपरेटर, एनआरपी और खंड विकास अधिकारी मिलकर करते हैं, तो फिर भुगतान प्रक्रिया में हुई अनियमितता के लिए सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराना कितनी बड़ी न्यायसंगतता है?



यह भी सामने आया है कि पेमेंट की प्रक्रिया खण्ड विकास अधिकारी तथा एनआरपी के डोंगल से की जाती है, जिसे पहले लगाने का काम एनआरपी करते हैं। तकनीकी सहायक की रिपोर्ट के बिना कोई कार्य पास नहीं किया जा सकता, और मास्टर रोल कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा सिस्टम में फीड किया जाता है। ऐसे में अगर मास्टर रोल में फर्जी हाजिरी थी तो पूरे सिस्टम की जवाबदेही बनती है, केवल एक व्यक्ति की नहीं। जब मुख्य विकास अधिकारी खीरी का स्पष्ट आदेश है कि प्रतिदिन अटेंडेंस चेक की जाए, तो फिर यह लापरवाही कई स्तरों पर कैसे हुई?



नाम न छापने की शर्त पर कुछ कर्मचारियों ने बताया कि ब्लॉक स्तर पर अधिकांश ग्राम पंचायत सचिव अपने कार्य मुंशी से कराते हैं। वही नकल, साइन, फाइन से लेकर परिवार रजिस्टर तक के कामकाज देखते हैं, क्योंकि सचिव महीनों कार्यालय नहीं आते। ऐसे में जब शासन का स्पष्ट निर्देश है कि विभागीय कार्य सिर्फ शासकीय कर्मियों द्वारा किए जाएं, तो क्या ब्लॉक प्रशासन की नजर इस पर नहीं जाती? यदि जाती है तो फिर चुप्पी क्यों?

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