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हमारा पहला काम पर्यावरण,पानी ,हवा, मिट्टी की शुद्धता है*
#RAJENDER KUMAR
पटना शहर भी गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहीं गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म स्थान भी है। इसके पास ही गुरु गोबिंद सिंह जी की बाल लीला से संबंधित गुरुद्वारा कंगणघाट भी सुशोभित है।
हम जानते हैं कि जीवन तथा प्राचीन सभ्यताएं भी नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं। पानी ही हमारे जीवन का आधार है। गुरु नानक देव जी ने भी कहा है "पहला पानी जियो है, जित हरया सब कोए।"अर्थात पानी ही जीवन(सजीव)का आधार है। विभिन्न कालों में नदियों के किनारे ही सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक गतिविधियों का विकास भी हुआ है। उत्तर भारत का मैदानी इलाका जिसको "अन्न का कटोरा " भी कहा जाता है यह नदी घाटियों का इलाका ही है। जिसमें गंगा नदी की भूमिका प्रमुख है।
हमारे महापुरुषों, सूफी तथा भक्तिकालीन संतो ने अपने आचरण को सुधारने पर ज्यादा जोर दिया है। जैसे कि भक्त रविदास जी ने कहा है कि " मन चंगा तो कठौती में गंगा" बाबा फरीद ने कहा है
"काले मैंडे कपड़े काला मैंडा वेस ।
गुनाही भरिया मैं फिरां लोक कहन दरवेश।
बाबा बुल्ले शाह ने भी कहा है
"बाहरों धोते हड्डां गोडे अंदर रही पलीती" अर्थात बाहर से हाडगोडे धोने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा अगर आपके मन के अंदर मैल है।
गुरु नानक देव जी ने भी आचरण की शुद्धता पर जोर देते हुए कहा है
"गलीं असी चंगियां आचारी बुरियां
मनो कुसुधां कालियां बाहर चिट्टवियां ।"
अर्थात हम बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी करते हैं लेकिन हमारा आचरण सही नहीं होता है हमारे मन काले होते हैं लेकिन बाहर से हम सफेद बने हुए होते हैं अर्थात कथनी और करनी में फर्क को उन्होंने बुरा कहा है।
बाबा फरीद ने मन के इसी अंतरद्वंद्व के बारे में कहा है कि
"गलिए चिक्कड़ दूर घर नाल प्यारे नेह।
जावां तां भिजे कंबली रहां तां टुटे नेह।"
अर्थात गलियों में कीचड़ है बरसात हो रही है प्रीतम को मिलने के लिए जाना है अगर जाएं तो कंबली भीग जाएगी न जाएं तो प्रेम टूट जाएगा।
"पंज सनाना" जिसका पंजाबी संस्कृति में बहुत महत्व है जिसमें दो हाथ, दो पैर और मुंह अर्थात पांच अंगों का स्नान भी समय स्थान के अनुसार उचित समझा जाता है। इसी के अनुसार ही पांच स्नान करके गंगा के सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व को नमन किया।
गुरु नानक जी की वाणी में पवन और पानी तथा पूरी धरती को संभालने, बचाने की बात कही गई है। अपनी वाणी में उन्होंने उच्चारण किया है कि
"पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत"अर्थात पवन गुरु है पानी पिता है और धरती माता है। इसलिए हमारा जो पहला काम मानव, पर्यावरण,हवा, पानी, मिट्टी, की शुद्धता आदि की रक्षा करना है उसमें अपना कुछ योगदान दे दूं ताकि अगले जन्म (अगली पीढ़ी) को साफ पर्यावरण दे सकूं।