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हरियाणा में विपक्ष दिग्भ्रमित सा दिख रहा है।


देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं हरियाणा में इसी माह की 25 को वोटिंग होती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष को इन चुनावों देखकर ऐसा लग रहा है कि भा.ज.पा. के लिये दस की दस सीट जीतना एक चुनौती बण चुका है तो विपक्ष को समझ ही नहीं आ रहा की सरकार से नाराज वोटों को कैसे बटोरे?
प्रदेश की राजनैतिक हालात बहुत अफसोसनाक रही हैं। दस साल से कुव्यवस्था, रिकॉर्डतोड़ भ्रष्ठाचार, अनियंत्रित अफसरशाही, बेलगाम अपराध, गली गली बिकता नशा,
खाकी के आशिर्वाद से बेखौफ अपराधी से हरियाणा त्रस्त है।
हरियाणा की चकाचक सङकें कभी देश में एक मिसाल हुआ करती थी, आज आम ग्रामीण सङकों की हालत बेहद खस्ताहाल हैं इन्हें समारणे के लिये भारी बजट भी खर्च होता है लेकिन सब ऊपर की ऊपर भ्रष्ठाचारियों की जेबों में चला जाता है।
सङकों में गढ्ढे बरकरार हैं।
ग्रामीण सडङकें ही नहीं बल्कि राजपथों की हालात तो और भी सोचनिय हैं।
टोल टैक्स सरकारी रंगदारी के अड्डे बण चुके हैं। टोल टैक्स रोङ से बेहतर तो हरियाणा में पहले आम सङकें होती थी।
यानि कदम कदम पर किसी न किसी तरंह की रंगदारी, दिशा और दशाहीन विपक्ष का दंश हरियाणा झेल रहा है।
सत्तापक्ष के नेता अपनी अपणी तिजोरियों को ठसाठस नोटों से भरणे में लगें हैं। आये दिन दफ्तरों पर छापे रिश्वतखोरी के आरोपों में गिरफ्तार अधिकारी और कर्मचारी इस बात के गवाह हैं कि आकाओं की छत्रछांया में कमीशनखोरी, रिश्वतखोरी का धंधा सरेआम चल रहा है।
जो अधिकारी, कर्मचारी, नेता आरोपों के घेरे में आते हैं वह कुछ समय बाद ही सेटिंग वेटिंग कर पुन: मैदान में आ जाते हैं। सरकार अपने ही नेताओं की आपसी खिंचता में उलझी रही है।
उसी के कारण केंद्र ने पीछा छुड़ाने के लिये नेतृत्व परिवर्तन किया। चहेते को केंद्र में ले जाने का रास्ता दे दिया तो विज को एक तरफ कर दिया गया
लेकिन विडंबना यह है कि विपक्ष इन तमाम लक्षणों का कोई लाभ नहीं उठा पा रहा इसका सबसे पहला कारण विपक्ष के नेता भी घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों का दंश झेल रहे हैं। प्रदेश में साफ सुथरी छवि का एक भी नेता जनता को नजर नहीं आता। ई. डी. , सी.बी.आई. का भय रात को बिना पिये सोणे नहीं देता। अगर एक आध नेता ने थोङा सा चुं चपङ करणे की कोशिश की तो जालंधर से ई. डी. और चंडीगढ से सी.बी.आई. एक चक्कर लगाती हैणऔर नेता जी एक चोर की भांति दुबक जाते।
आम जनता बेबसी में राजनैतिक नूरा कुश्ती को देख रही है। और अब जब चुनाव आये तो एक उम्मीद जगी कि कुछ होगा?लेकिन जो राजनैतिक मंजर सामणे आया वह बहुत हैरान करणे वाला है। सत्ता सुख भोगने वाले नेता भविष्य की तलाश में इधर से उधर छलांग मारते दिखे । एक दूसरे को चोर,ठग,लुटेरा बता रहे थे वह अब एक बैंच पर बैठकर एक दूसरे को चाट रहें हैं।
अधिकतर नेता अपना वजूद कायम करणें में लगे हैं ताकि आनेवाले विधान सभा में अपनी औलाद को मुख्यमंत्री की दौड़ में खड़ा कर मुनाफा कमाया जा सके। जब विरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस में जा कर अपने पुत्र के लिये टिकट न मिलणे के बाद यह ब्यान दिया है कि उसका लाडला मुख्यमंत्री की दौङ में है तब से हुडा, शैलजा, सभी चौटाला, आप और सभी राजनैतिक बेटों के बाप सकते में आ गये हैं और अब वह लोकसभा के ट्रैक को छोड़ विधानसभा के ट्रैक पर खुरिये काटण लाग गे। अब पता चला है कि जात-पात, धर्म, वर्ग की राजनीति करणे वाले असमंजस में पड़ गये हैं कि मैदान में कैसे खेलें?जहां भा.ज.पा. को लग रहा है कि मोदी है तो मुमकिन है। और वही बेड़ा पार कर देंगें।
कांग्रेसी बेचारे अपने नेताओं की हिचकोले खाती नैया को देखकर परेशान हैं कि चुनाव में धन खर्च करें या नहीं , क्योंकि जब से भा. ज. पा. एक बार फिर केंद्र में सरकार बना रही है यह साफ हो चला है तो चुनाव में होणे वाले खर्च की उगाही क्यूकर होगी?मोदी तो होण ना दे? आप पार्टी के लिये और भी विकट स्थिति है। जिनको उसके नेता कल तक चोर बता रहे थे आज न केवल उनके गुगे गा रहे हैं बल्कि खुद भी भ्रष्ठाचार के आरोपों में बंदर बणे अंदर हैं।
किसान आंदोलन भी काम नहीं आया बल्कि कढी बिगाड़ सौदा बण ग्या। क्यूंकि किसान दो फाङ हो गया ।हरियाणा में मुस्लमान ना के बराबर है इसलिए यहां की राजनीति भी अलग है ।
अब यहां का मतदाता की जाट और गैर जाट में अटकता जा रहा है । विपक्ष की हालत देश और प्रदेश में जो है उसे देखते हुए । लगता है कि तो भा.ज.पा. खुद को मजबूत समझ रही है लेकिन प्रदेश की समस्याओ को देखते हुए लगता नहीं कि राह इतनी सुगम हैं काश कि प्रदेश में चौ. देवीलाल सा कदावर नेता की रहनुमाई में एक मजबूत विपक्ष होता?
जगदीश

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