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गोधरा कांड पर मोदीजी की ग़लत बयानी

लोकसभा चुनाव के लिये 19 व 26 अप्रैल को हुए दो चरणों के मतदान में पिछड़ने के अंदेशे से घिरी हुई भारतीय जनता पार्टी का डर साफ़ नज़र आने लगा है। इसके चलते पार्टी के स्टार प्रचारक व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब वर्ष 2002 में उनके गृह राज्य गुजरात में हुआ कुख्यात गोधरा कांड भी लेकर आ गये हैं। पिछले दिनों नरेंद्र मोदी अपने चिर परिचित हथियार यानी कि हिन्दू-मुस्लिम का मसला लेकर आ ही चुके हैं, तो गोधरा का अगर वे उल्लेख न करते तो आश्चर्य ही होता लेकिन उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए कालक्रम का जैसा घालमेल किया उससे ज़ाहिर है कि उनका उद्देश्य ध्रुवीकरण करना ही है। स्पष्ट है कि समयावधि का तारतम्य उनसे भूलवश नहीं गड़बड़ाया वरन यह एक सायास उपक्रम था जिसके दोहरे लक्ष्य थे- एक तो साम्प्रदायिकता का कार्ड खेलना और दूसरे, जिस ज़मीन पर खड़े होकर उन्होंने इस बात को उठाया वहां के अपने प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करना।
शनिवार को बिहार के दरभंगा की प्रचार सभा में उन्होंने कहा कि गोधरा में कारसेवक रेल यात्रियों के हत्यारों को रेल मंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव ने बचाने का प्रयास किया था। मोदी के अनुसार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू ने रेल विभाग में एक कमेटी बनाई थी जिसने आरोपियों को निर्दोष बतलाया था परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया था। उन्होंने अपने भाषण में राहुल गांधी के साथ लालू यादव के पुत्र तेजस्वी को ‘शहज़ादे’ बतलाते हुए अपमानित तो किया ही, उन्होंने जो टिप्पणी गोधरा कांड को लेकर की वह हैरत में डालने के लिये काफी है। उनके बयान में जो कहा गया, उससे यह भी सवाल उठता है कि क्या वे हालिया संसदीय इतिहास से इतने अनभिज्ञ हैं कि वे यह भी नहीं जानते कि 2002 में स्वयं भाजपा की केन्द्र में सरकार थी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी कर रहे थे। इतना ही नहीं, तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार थे जो तब समता पार्टी के रूप में भाजपा के गठबन्धन नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) का हिस्सा थे। संयोग यह भी है कि नीतीश बाबू अब भी एनडीए के हिस्सा हैं।
पहले भी कई मौकों पर मोदी अपने भाषणों में ऐतिहासिक घटनाओं के सन्दर्भों में घालमेल करते रहे हैं। तो क्या वैसी ही उन्होंने यह भी एक गलती की है? तथ्य तो यह है कि वाजपेयी सरकार के 2004 में पराजित होने के बाद जब यूनाइटेड प्रगतिशील मोर्चा (यूपीए) सरकार बनी थी, लालू को उसमें रेल मंत्री बनाया था और जिस रिपोर्ट का ज़िक्र मोदीजी ने अपने भाषण में किया वह 2006 में आई थी। वह घटना और उसके कारण गुजरात में हुए दंगे आज भी देश के धर्मनिरपेक्ष चेहरे पर कलंक के रूप में याद किये जाते हैं जिसने भारत का सिर शर्म से झुका दिया था। असली और बड़ा तथ्य तो यह है कि खुद मोदीजी जी उस दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस घटना ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत बदनामी दी थी। यहां तक कि कुछ देशों ने तो उनके प्रवेश पर पाबंदी लगाते हुए उन्हें अपने यहां आने से मना भी कर दिया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने इस घटना की प्रतिक्रिया में राज्य में हुए दंगों में अल्पसंख्यकों को बचाने की कोशिशें नहीं कीं। आईपीएस संजीव भट्ट ने इसी आशय का खुलासा किया है। सभी जानते हैं कि श्री भट्ट को जेल में डाल दिया गया है। उन्हें एक पुराने मामले में लम्बी कैद की सुनाई गई है।
मतदान के शुरुआती दो चरणों में मोदी के अनेक तीर खाली जा चुके हैं। दस वर्षों तक शासन करने वाली भाजपा व मोदी का ख्याल था कि राम मंदिर का मामला काम करेगा। इसलिये आनन-फानन में आधे-अधूरे मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा 22 जनवरी को मोदी के हाथों करवा ली गयी थी ताकि तीन-चार माह इस मामले को भरपूर भुनाया जा सके। उम्मीदों के विपरीत यह मामला ज़ोर पकड़ने के पहले ही बासी हो गया। हिन्दू-मुसलमान विमर्श के तहत मंगलसूत्र छीनकर मुस्लिमों को देने वाला उनका बयान भी पिट गया है। इसी क्रम में चुनावी लोभ हेतु गोधरा कांड को लाया गया है, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक ओर तो इसके जरिये मोदीजी का साम्प्रदायिक चेहरा अवश्य सामने आया था परन्तु दूसरी ओर कट्टर सोच वाले हिन्दू इसी के चलते मोदी जी से प्रभावित होते रहे हैं। आज भी मोदी जी को हिन्दू हृदय सम्राट का कुछ लोग जो दर्जा देते हैं, तो उसके पीछे इस वारदात का बड़ा हाथ है। हालांकि लोग इस बात को भूल जाते हैं कि गोधरा कांड के बाद, जिसमें कई लोगों की जानें गयी थीं, महिलाओं के साथ बलात्कार किये गये थे, अल्पसंख्यकों की सम्पत्तियां नष्ट की गयी थीं तथा बड़ी संख्या में वे गुजरात छोड़ गये थे, उसे लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने मोदीजी को ‘राजधर्म का पालन’ करने को कहा था।
मोदीजी सम्भवतः ‘विकास पुरुष’ की स्वाहा हो चुकी अपनी छवि की राख से पुनः ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ की इमेज गढ़ना चाहते हैं ताकि चुनाव जीत लें। तो भी उन्हें याद रखना होगा कि ऐसे प्रसंगों को पुनर्जीवित कर वे चुनावी लाभ तो पा भी लें, लेकिन देश और लोकतंत्र के लिये वह घातक होगा।

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