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विषय डरावनी गुड़िया

विषय डरावनी गुड़िया
बचपन में जब खेला करते थे गुड़िया से
सजाते उसको पहनाते थे नई चूड़ियां
रात में देख उसे बड़ी भयानक सी बन जाती
लाल आंखे उसकी जैसे चूड़ी भी घनघनाती
हौले हौले से लगता जैसे वो मेरे पास आती
मेरी चीख से डर कर वो वापस है सो जाती
रातों में भी जाकर उसको मैं देखा करती थी
वो मानो सच मुझसे बाते जैसे करती थी
मैं डर के कारण अपनी मां से भी न कह पाती
डरावनी गुड़िया के संग मैं बचपन में रह जाती
एक समय अचानक वो गायब सी हो जाती है
पता नही कहां वो डरावनी गुड़िया खो जाती है।।
मानसी सविता
कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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