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विषय मां के लिए एक खत

विषय मां के लिए एक खत

मां की याद आई तो एक खत लिख दिया


कितने बरसो बीत गए न देखा मां तेरा मुखड़ा है
बेटा बेटी फर्क नही मां के लिए बच्चे जिगर का टुकड़ा है
जब जब सवेरे उठती हूं याद मां तेरी आ जाती है
कॉल पे मैं अक्सर ज्यादा बोल नही आपसे पाती हूं
नन्हे कदमों से चलना आपने मुझे सिखाया था
जब भी बिखरी टूटी मैं खुद सही राह दिखाया था
आज अकेली पथ पर निकली तमाम ठोकरें खाती हूं
गुस्सा होती खुद से न चीख चिल्ला मैं पाती हूं
जब सुबह जल्दी से स्कूल पढ़ाने को निकल जाती हूं
लेट लतीफ के चक्कर में टिफिन भूल मैं जाती हूं
याद आता वो दिन जो टिफिन की याद दिलाती थी
हर जन्मदिन मेरे पसंदीदा भोजन आप बनाती थी
सबसे प्यारी दोस्त मेरी जो आप ही कहलाती थी
आप से तो मैं कुछ भी न छिपा पाती थी
इतना दूर है आपसे हर दिन हाथ पीले करने की बातें कहती हो
बेटी से दूर जाने का दुख मां अंदर अंदर सहती हो
कुशल सब है घर में खुद का ख्याल तो रख पाती हो
या सबकी चिंता में खुद को, भूल तो न जाती हो
दवा,समय पे लेना मैया मैं नही हूं घर पे है भैया
कोई बात हो अगर तो मुझे बताना
,खत भेज रही इसे पढ़ आसूं न बहाना।।
मानसी सविता
कानपुर

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