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अतिक्रमण के नाम पर रसूखदारों को राहत और गरीबों की आफत , आबादी भूमि पर बनी पांच मंजिला इमारत छोड़ झोपड़ियां तोड़ने पहुंचा प्रशासनिक महकमा

अतिक्रमण के नाम पर रसूखदारों को राहत और गरीबों की आफत , आबादी भूमि पर बनी पांच मंजिला इमारत छोड़ झोपड़ियां तोड़ने पहुंचा प्रशासनिक महकमा

वरिष्ट पत्रकार राजेश विश्वकर्मा की कलम से...
डिंडोरी जिला मुख्यालय में यह पहली दफा नही है जब राजस्व और नप कर्मियों ने पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में गरीब परिवारों के आशियाने तोड़े हो,बल्कि इससे पहले भी इनके द्वारा ऐसे कारनामे किए जाते रहे है। मंगलवार के दिन भी कुछ ऐसा ही किया गया और तहसीलदार डिंडोरी के आदेश पर सुबखार और जेल बिल्डिंग के पास से अवैध अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की गई। लेकिन तहसीलदार और नप यह भूल गए की नगर की बेशकीमती आबादी भूमियों पर बहुमंजिला इमारतें भी नगर परिषद के संज्ञान में रहते खड़ी कर दी गई, और जब सच सामने आया तो रसूखदार पर कार्यवाही को लेकर मीडिया को भ्रमित करने नोटिस - नोटिस का खेल खेला जा रहा है। क्यों और किसके दबाव में..? यह तो यही अधिकारी बेहतर तरीके से बता सकते हैं। लेकिन हालिया कार्यवाही से यह तो तय हो चला है की राजस्व और नप दोनो ही रसूखदारों को राहत पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

मिलीभगत से खड़ी हुई पांच मंजिला इमारत -- बता दें की जिले के एक नामी व्यापारी उमेश जैन द्वारा कंपनी चौक पुरानी डिंडोरी के मुख्य मार्ग पर एक कच्चे मकान के मलबे की रजिस्ट्री कराई गई थी, और फिर नगर परिषद से लाइसेंस प्राप्त वास्तुविदों से लगभग 2000 वर्ग फुट का नक्शा वगैरह तैयार कर मलबे की रजिस्ट्री से संबंधित दस्तावेज नगर परिषद में अनुज्ञा हेतु प्रस्तुत किए गए थे, और तत्कालीन सी एम ओ एवं राजस्व निरीक्षक ने वास्तुविदों एवं व्यापारी से मिलीभगत कर अनुज्ञा जारी भी कर दी। अब मुख्य नगर पालिका अधिकारी डिंडोरी और मौजूदा स्टाफ स्वयं आश्चर्य चकित है की भला यह कैसे मुमकिन हो सकता है..? लेकिन जब तलक हम सच प्रशासनिक महकमे के संज्ञान में लाते तब तलक मौके पर पांच मंजिला इमारत खड़ी हो चुकी थी। हालाकि मुख्य नगर पालिका अधिकारी ने खबर संज्ञान में आते ही कार्य पर रोक तो लगाई और साथ ही उन वास्तुविदों को भी तलब किया, जिन्होंने इस पूरे कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने में व्यापारी की मदद की थी। लेकिन तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी और राजस्व निरीक्षक को भी तो तलब किया जाना था,जो की नही किया गया।

नप क्यों निरस्त नहीं कर रही लाइसेंस ..? -- बता दें जिस स्थल में आबादी भूमि पर बहुमंजिला इमारत का निर्माण किया गया ,आज उस भूमि की कीमत लगभग एक करोड़ है।जो वास्तुविदों और तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी एवं राजस्व निरीक्षक ने मिलीभगत कर व्यापारी के नाम कर दी थी। कायदा और कानून तो यह कहता है की मामले की निष्पक्ष जांच कर तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी ,राजस्व निरीक्षक के खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित करते हुए दोषी वास्तुविदों के लाइसेंस निरस्त किया जाना चाहिए।इसके अलावा यह पड़ताल भी की जानी चाहिए की इनके द्वारा नगर परिषद में अब तलक कितने आवेदन प्रस्तुत किए गए ? और किस आधार पर ..? हो सकता है की वास्तुविदों के साथ नगर परिषद का यह खेला काफ़ी लंबे समय से चला आ रहा हो।

भू - धारणाधिकार में भी हुआ खेला -- बता दें की राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना भू - धारणाधिकार अंतर्गत नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि पर बसे लोगों को 30 वर्ष के लिए स्थाई पट्टा दिया जाना था , सूत्रों की माने तो नगरीय क्षेत्र में भी चीन्ह - चीन्ह कर ऐसे लोगों को पट्टे ,बतौर रबड़ी वितरित कर दी गई जो की रसूखदार थे।इतना ही नहीं, सूत्र तो यह भी बता रहे है की यदि भूमि पर 1500 सौ वर्ग फीट में कब्जा है तो उसे महज 1000 वर्गफूट का दर्शाते हुए पट्टे की कार्यवाही कर दी गई। मतलब शेष 500 वर्गफुट का जो राजस्व राज्य सरकार को मिलना चाहिए था ,उससे सरकार वंचित रह गई। और इस पट्टा वितरण में नगर परिषद की एन ओ सी एवं विद्युत विभाग की एन ओ सी में मीटर - मीटर का खेला भी हुआ है।क्यों और कैसे ..? यदि इस मामले में छानबीन हो जाए तो निःसंदेह राज्य सरकार के खजाने में इजाफा तो होगा ही ,साथ ही ऐसे दोषी अधिकारी - कर्मचारी भी सामने आएंगे,जिन्होंने मिलकर राज्य सरकार को करोड़ों की चपत लगाई है।

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