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नेताओ को हमने नही बल्कि सिस्टम ने चुना है

कई बार हमें कहा जाता है कि नेताओ को जनता ने चुना है।

जबकि सत्य ये है कि नेताओ को हमने नही बल्कि सिस्टम ने चुना है।

जनता सिर्फ एक जरिया है या निमित्त मात्र है….

जब भी चुनाव होते है तब क्या जनता से ये पूछा जाता है कि चुनाव करवाये या न करवाये?????

क्या जनता को राइट टू रिजेक्ट या राइट टू रेकॉल का अधिकार दिया गया है????

क्या नोटा की भूमिका बढ़ाई गई है???

अगर जनता चुनाव का बहिष्कार करने की कोशिश करे तो उस पर लाठियां भांजी जाती है।

कई क्षेत्रों को किसी खास जाति वाला क्षेत्र घोषित किया गया है जबकि उन क्षेत्रों में उस खास जाति के लोगो की आबादी 25% भी नही है,तो फिर प्रश्न उठता है कि किस से पूछकर उन क्षेत्रों को एक जाति का क्षेत्र घोषित किया गया?????

क्या जब कोई कानून बनता है तो उसमें जनता को भागीदार बनाया जाता है????

खासकर वो कानून जिसका सीधा सबंध जनता से होता है….. कई बार टैक्स को लेकर बनाये गए कानून ,जिनका संबंध जनता से होता है ,क्या उनमे जनता की राय ली जाती है????

जब जनता को किसी कानून में भागीदार ही नही बनाया जाता तो फिर लोकतंत्र कैसे कहा जा सकता है??

अगर ये लोकतंत्र है तो फिर जनता को कोई बड़ा आंदोलन करने से पहले पुलिस की इजाजत क्यों लेनी पड़ती है????

शांतिपूर्वक आंदोलनो में लाठीचार्ज किस हक से किया जाता है????

लोकतंत्र में अदालत की अवमानना जैसे कानूनों को खत्म क्यों नही किया गया???



लोकतंत्र में जनता मांग क्यों नही मानी जाती???

और जो मांग जनता नही करती वो तुरंत लागू हो जाती है… ।

लोकतंत्र में अगर सब बराबर है तो देश मे 40000 वीआईपी कैसे??????

लोकतंत्र में किसी भी मुद्दे पर आम आदमी की राय क्यों नही ली जाती?????

लोकतंत्र में आजतक भ्रष्ट हाई कोर्ट,सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान क्यों नही है????

लोकतंत्र के सिद्धांत क्यों नही बनाये गए????

संविधान में लोकतंत्र के सिद्धांत हेतु जगह क्यों नही है????

कोई नेता अगर किये गए वादे को नही निभा पाता तो उसकी कुर्सी छिनने वाला कानून क्यों नही बना????

अगर सब बराबर है तो नेताओ को पेंशन क्यों मिलति है????

आम आदमी को पेंशन क्यों नही मिलती???

लोकतंत्र में आजतक एक कड़क लोकपाल क्यों नही आया????



लोकतंत्र के सोच का दायरा सीमित क्यों है????

जनता की वाजिब मांग पूरी न होने पर नेताओ या संबंधित केंद्रीय मंत्रियों को कड़ी सजा क्यु नही दी जाती??

नेताओ के खर्चो पर नियंत्रण करने का अधिकार जनता को क्यु नही दिया गया???

अब तक पिछले 70 सालों में कितने नेताओ को भ्रष्टाचार के आरोप में फाँसी या उम्रकैद हुई??

जनता अगर संविधान को नही मानना चाहती तो संविधान बदला क्यों नही जाता??

लोकतंत्र में जनता का असली गुनाहगार किसे माना जाए???

क्यों उच्च पदों पर बैठे भष्ट लोगो को सजा दिलाने हेतु कानून नही है….हारे हुये नेता किस हक से मंत्री बन जाते है??

अगर न्यायपालिका या संसद ,संविधान की हत्या करते है तो ऐसी कौन सी संवैधानिक संस्था है जो इन दोनों संस्थाओं पर लगाम लगा सके???

लोकतंत्र में आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार देने के अलावा कौन से ऐसे अधिकार दिए गए कि वो भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ शीघ्र और कड़ी कार्यवाही कर सके…,

किसी भी राष्ट्र में सर्वोच्च स्थान देश की जनता का होता है,दूसरा स्थान उस परिषद का होता है जिसका निर्माण जनता करती है जिसे संसद कहते है,और तीसरा स्थान न्यायपालिका का होता है….

जनता द्वारा निर्मित संविधान जनता से सर्वोपरि नही हो सकता… फिर क्यों कभी न्यायपालिका,तो कभी संसद जनता का गला दबाते है???

अगर नेता जनता के प्रतिनिधि है तो फिर प्रतिनिधि के कर्तव्यों एवम उनसे संबंधित नियमो को संविधान में शामिल क्यों नही किया गया??

हम किसे वोट देंगे,ये हम तय करेंगे…फिर चुनाव आयोग ने किस हक से किसी खास जाति, लिंग के व्यक्ति के नाम चुनाव क्षेत्र आरक्षित किये???

कुल मिलाकर देश की जनता नही बल्कि देश का सिस्टम नेताओ को चुनता है।

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