यह लेख नहीं है यह चेतावनी है, अगर अरावली मर गई, तो उत्तराखंड कौन बचाएगा, आज उत्तराखंड में जब कोई आपदा आती है, तो हम उसे “कुदरत का कहर” कहकर आगे बढ जाते हैं, लेकिन सच यह है कि, यह कहर कुदरत ने नहीं हमने खुद बुलाया है, जब अरावली के पहाडों पर मशीनें चलती हैं, जब जंगलों को मिट्टी में मिला दिया जाता है, तब सिर्फ पत्थर नहीं टूटते, हिमालय की नींव दरकती है, अरावली हिमालय से दूर जरूर है, लेकिन उसका दिल हिमालय में धडकता है, वह वह पहली सांस है, जो मानसून को थामती है, वह वह पहला हाथ है, जो पानी को बेकाबू होने से रोकता है, जब अरावली कटती है, तो बारिश पागल हो जाती है, वह बरसती नहीं, टूट पडती है, और जब वह टूट पडती है, तो उसका सबसे पहला शिकार बनता है, उत्तराखंड, तभी तो रातों-रात गांव नक्शे से मिट जाते हैं, तभी तो माएं मलबे में अपने बच्चे ढूंढती हैं, तभी तो देवभूमि, श्मशान में बदलती दिखाई देती है, यह संयोग नहीं है, यह हिसाब है, अरावली एक बांध है, जो पानी को जमीन में उतारती है, उसे जीवन बनाती है, लेकिन जब यह बांध तोड दिया जाता है, तो पानी रास्ता नहीं ढूंढता, वह रास्ता तोडता है, पहाड ढहते हैं, सडकें बह जाती हैं, मंदिरों तक की राह नहीं बचती, और फिर हम कहते हैं, “उत्तराखंड कमजोर है”, नहीं, उत्तराखंड कमजोर नहीं है, उसे कमजोर किया जा रहा है, जब अरावली के जंगल खत्म होते हैं, तो जानवर बेघर होते हैं, वे हिमालय की ओर भागते हैं, और फिर उत्तराखंड में, इंसान और जंगल आमने-सामने खडे हो जाते हैं, कभी खेत उजडता है, कभी जान जाती है, और हम कहते हैं, “वन्यजीव समस्या है”, नहीं, समस्या इंसान है, जब अरावली कटती है, तो धरती का ताप बढता है, और जब धरती गरम होती है, तो हिमालय के ग्लेशियर, चुपचाप मरने लगते हैं, कोई शोर नहीं, कोई हेडलाइन नहीं, लेकिन जिस दिन वे पूरी तरह टूटे, उस दिन नदियां शोक नहीं मनाएंगी, विनाश बनेंगी, आज जो बाढ केदारनाथ में कहर है, कल वही हरिद्वार से आगे जाएगी, और परसों, हम सब तक पहुंचेगी, याद रखिए, अगर अरावली नहीं बची, तो हिमालय नहीं बचेगा, अगर हिमालय नहीं बचा, तो उत्तराखंड नहीं बचेगा, और अगर उत्तराखंड नहीं बचा, तो भारत की आत्मा अधूरी रह जाएगी, यह विकास नहीं है, यह भविष्य की हत्या है, अब भी वक्त है, मशीनें रोकी जा सकती हैं, पहाड बचाए जा सकते हैं, गलतियों को सुधारा जा सकता है, लेकिन अगर अब भी चुप रहे, तो आने वाली पीढी हमसे पूछेगी, “जब पहाड मर रहे थे, तब तुम क्या कर रहे थे”, और हमारे पास, कोई जवाब नहीं होगा, अरावली बचाओ, हिमालय बचाओ, उत्तराखंड बचाओ, क्योंकि यह लडाई, सिर्फ पहाडों की नहीं, हमारे अस्तित्व की है