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3 दिनों की जांच नही हो पाई 3 महीनों में पूरी जिला दिव्यांग पुनर्वास केन्द्र का फर्जी नियुक्ति की चल रही जांच

दमोह. दिव्यांग पुनर्वास केंद्र में बिना नियुक्ति के फर्जी तरीके से दो दशक से तीन लोगों के नौकरी किए जाने का मामला सामने आया है. न्यायालय आयुक्त निःशक्त जन मध्य प्रदेश के स्पष्ट आदेश के बाद भी मामले की जांच पूरी नहीं की गई है. हालांकि कलेक्टर का कहना है कि शीघ्र कार्रवाई की जाएगी.
दमोह जिले में एक बड़ा ही अजीबोगरीब और भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. जिसमें बिना नियुक्ति, बिना दस्तावेजों के तीन लोगों के द्वारा करीब दो दशक से फर्जी तरीके से नौकरी किए जाने का मामला उजागर हुआ है. कई शिकायतों के बाद जब न्यायालय आयुक्त नि:शक्तजन मध्य प्रदेश ने मामले की जांच के आदेश उप संचालक सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण समूह को दिए तो भी मामले की जांच 3 महीने में पूरी नहीं की गई. मात्र 15 दिन में यह जांच करके संबंधितों पर कार्रवाई की जाना थी, लेकिन जिला पंचायत के अधिकारी ही इस पूरे मामले को दबाने में लगे हुए हैं. वह बार-बार मामला जांच में होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ रहे हैं या फिर यह कहे कि वह संबंधित तीनों कर्मचारियों को फर्जी और कूट रचित दस्तावेज बनाने का समय दे रहे हैं? बही इस मामले में आखिर 3 महीनों से आखिर जांच को क्यो टाला जा रहा था इस मामले में पूर्व के अधिकारियों और राजनीतिक लोगों का संरक्षण प्राप्त होगा इसमें कोई दो मत नहीं है.

18 साल से ले रहे वेतन
दरअसल दिव्यांग पुनर्वास केंद्र में करीब 18 वर्षों से फिजियोथैरेपिस्ट डॉक्टर रियाज कुरैशी, लेखपाल कम स्टोर कीपर धर्मेंद्र परिहार तथा अटेंडर कम भृत्य प्रदीप नामदेव बिना नियुक्ति के नौकरी कर रहे हैं. वह लगातार वेतन का आहरण भी कर रहे हैं. इसके संबंध में जब भी शिकायत की गई तो जिला पंचायत के अधिकारियों ने तत्काल ही मामले में लीपा पोती करके पूरा मामला दबा दिया. परेशान होकर मामले की शिकायत न्यायालय आयुक्त निश:क्तजन मध्य प्रदेश को की गई. जिसके बाद नि:शक्तजन मध्य प्रदेश के सहायक संचालक सुनील शर्मा ने मामले की बारीकी से जांच के आदेश सामाजिक न्याय एवं दिव्यांग जन सशक्तिकरण उपसंचालक को दिए. यह आदेश 23 जनवरी 2024 को जारी किए गए थे. जिसमें स्पष्ट रूप से 15 दिन के भीतर जांच करके कार्रवाई से अवगत कराने के निर्देश दिए गए थे.

3 महीने में भी पूरी नहीं हुई जांच

इस आदेश के बाद जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जितेंद्र जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन किया. इसमें बतौर सदस्य के रूप में एवं अतिरिक्त पेंशन अधिकारी दीपक जैन तथा समग्र सामाजिक सुरक्षा विस्तार अधिकारी यशस्वनी गजोरिया को शामिल किया गया. जिला पंचायत के सीईओ ने यह आदेश 1 फरवरी 2024 को जारी किया था, लेकिन 3 महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी जांच अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. इस बीच में ईटीवी भारत के हाथ मे

नियुक्ति के दस्तावेज ही नहीं

कुछ अहम दस्तावेज भी लगे हैं. जिसमें जिला पंचायत सीईओ की भूमिका पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं? उन्होंने एक पत्र जारी किया है जिसमें आरोपित कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया है. उसमें कहा गया है कि यदि उनके पास नियुक्ति प्रमाण पत्र या उससे संबंधित कोई दस्तावेज हो तो वह लेकर उनके समक्ष उपस्थित हो. जबकि इसके पूर्व जब जांच की गई थी तब उसमें उपरोक्त तीनों ही कर्मचारी लिखित में यह जवाब दे चुके हैं कि उनके पास किसी तरह का कोई नियुक्ति प्रमाण पत्र नहीं है. वहीं विभाग के एक पत्र से इस बात का खुलासा हुआ है कि उपरोक्त तीनों कर्मचारियों की नियुक्ति संबंधी कोई भी फाइल या महत्वपूर्ण दस्तावेज विभाग में है ही नहीं. तो इसका आशय तो यही हुआ कि उपरोक्त तीनों कर्मचारी फर्जी तरीके से अब तक नौकरी करते आ रहे हैं, और हर महीने मोटा वेतन भी ले रहे हैं. इस पूरे मामले में एक बात और भी सामने आई है जिसमें नियुक्ति प्रक्रिया 2005 का हवाला दिया गया है. उसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि सीनियर फिजियोथैरेपिस्ट के लिए उस फील्ड में पोस्ट ग्रेजुएट और 5 साल का अनुभव होना अनिवार्य है. इसके अलावा क्लेरीकल स्टाफ के लिए बीकॉम या एसएएस तथा 2 साल का अनुभव और भृत्य के लिए 8 वीं पास होना आवश्यक है. लेकिन इनमें से एक भी दस्तावेज तीनों कर्मचारियों के मौजूद नहीं है. इस मामले में एक बात और जो सामने आई है उसके अनुसार फिजियोथैरेपिस्ट के लिए संविदा आधार पर अधिकतम 20500, लेखपाल के लिए 14000 तथा भृत्य के लिए अधिकतम 9500 रुपए का मानदेय ही दिया जा सकता है. लेकिन इन तीनों कर्मचारियों को इससे कहीं अधिक मानदेय मिल रहा है. प्राप्त दस्तावेजों से एक बात और भी निकल कर सामने आई है जिसमें यह भी पता चला है कि यह तीनों कर्मचारी न तो नियमित रूप से भर्ती किए गए हैं और न ही यह संविदा आधार पर कार्य पर रखें गए हैं.. क्योंकि यदि यह संविदा आधार पर कार्यरत होते तो अन्य सभी कर्मचारियों की भांति प्रतिवर्ष इनका संविदा कार्यकाल अनुबंध के आधार पर आगे बढ़ाया जाता है, लेकिन पिछले 18 वर्षों में एक बार भी इनका संविदा का कार्यकाल आगे नहीं बढ़ाया गया. अब इस मामले का खुलासा होने के बाद अधिकारी स्वयं ही पूरे मामले को दबाने में लगे हुए हैं.


चुपचाप बैठे रहे जांच समिति के अध्यक्ष
इस संबंध में जब जांच समिति के अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जितेंद्र जैन से उनका पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. आधे घंटे तक वह केवल अपना कार्य ही करते रहे. सूत्रों से जो जानकारी सामने आई है उसमें पता चला है कि इन तीनों कर्मचारियों को लगातार जांच में एक्सटेंशन देने का कारण यही है कि वह किसी तरह से कूट रचित दस्तावेज बैक डेट में तैयार कर कर समिति के समक्ष उपलब्ध करा दे ताकि उनकी नौकरी बच सके.



जांच रिपोर्ट आने पर होगी कार्रवाई

इस मामले में कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर का कहना है कि यह मामला उनके संज्ञान में है और अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए हैं. इस सप्ताह तक जांच पूरी होने की उम्मीद है. इस तरह के गंभीर मामलों की मॉनिटरिंग वह स्वयं करते हैं. उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे. यह पूछे जाने पर की यदि उन्हें पद से हटाया जाता है तो क्या उनसे वेतन की वसूली की जाएगी? इस पर श्री कोचर ने कहा कि अभी तक उनके पास जांच प्रतिवेदन नहीं आया है. जैसे ही जांच प्रतिवेदन सामने आएगा वह नियमानुसार कार्रवाई करेंगे.

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